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सौरभ जी,
आप कुछ भी कहें अपने बारे में लेकिन इतना तो हम सबको पता है...और सभी लोग सहमत भी होंगे इस बात पर कि आपको मुझसे बहुत ज्यादा ज्ञान है..इसलिये अब मैं एडमिन साहब के कान में फिर से कह रही हूँ कि प्लीज मेरी ग़ज़ल की लाइन ''आज अपनी भी एक ग़ज़ल बनाई जाए'' की जगह ''आज अपनी भी कलम कुछ चलाई जाए'' कर दें तो मुझ पर बड़ी मेहरबानी होगी :)
और मेरी मिस्टेक पर ध्यान दिलाने के लिये मैं आपकी बहुत शुक्रगुजार हूँ :)
अब कुछ घंटों के लिये गायब होती हूँ..और काम भी अटेंशन चाहते हैं. बाद में फिर आकर चेक करती हूँ कि लाइन बदली है कि नहीं :))
तो किसी बस्ती में ना आग लगाई जाए l
न सही कोई महल और ठाठ-बांठ उसके
खंडहर में ही अपनी दुनिया बसाई जाए
अंग्रेजी की अदा पे फिदा हुये लोग सभी
अब अपनी जुबां हर जुबां पे सजाई जाए l //
ये तीनो शेअर सब से अच्छे लगे !
//सबकी गज़लों को पढ़के हम मजा लेते हैं
आज अपनी भी एक ग़ज़ल बनाई जाए l//
ग़ज़ल कही जाती है - बनाई नहीं जाती !
//सबकी चुपचाप सुनी सारे गम अपने किये
अब जो भी सुनाये उसे आँख दिखाई जाए l //
आँख दिखाना ग़ज़ल की नर्म-ओ-नाज़ुक मिजाज़ के खिलाफ है शन्नो जी !
//वेवफाई को भी हम बुतपरस्ती कहते हैं
दिल में किसी की मूरत ना बसाई जाए l //
बुत-परस्ती तो वफ़ा/मोहब्बत की इन्तहा होती है शन्नो जी ! उसे बेवफाई कैसे कहा जा सकता है ?
//टीवी सीरियल पे है घर-घर की कहानी
आज अपने घर की कहानी सुनाई जाए l
बच्चे पढ़ते हैं कॉमिक और कार्टून बहुत
महाभारत व गीता भी तो समझाई जाए l
जो लव स्टोरी सुन-सुन के पागल होते हैं
किसी चुड़ैल की कहानी उन्हें सुनाई जाए l
बोरियत होती है घर में काम करते-करते
अब चल ''शन्नो'' कहीं गपशप लड़ाई जाए l //
मुश्किल से बनते हैं घर तिनका-तिनका
तो किसी बस्ती में ना आग लगाई जाए// बधाई स्वीकार करें.
आदरणीया शन्नो दी अग्रवाल जी ,
आभारी हूं …
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