1.
शमअ देखी न रोशनी देखी ।
मैने ता उम्र तीरगी देखी ।
देखा जो आइना तो आंखों में,
ख़्वाब की लाश तैरती देखी ।
टूटे दिल का हटाया मलबा तो,
आरज़ू इक दबी पड़ी देखी ।
एक इक पल डरावना सा लगा,
इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी ।
मैने इंसानियत रह ए हक़ पर,
दो कदम चल के हांफती देखी
2.
आप ने क्या कभी परी देखी ।
मैने यारो अभी अभी देखी ।
उसकी आँखों में सुब्ह सी देखी,
और ज़ुल्फ़ों में शाम भी देखी ।
लब थे अंगार आँख थी बिजली,
फ़िर भी चहरे पे सादगी देखी ।
उस से ज्यूँ ही नज़र मिली यारो,
गिरती मैने तो बर्क़ सी देखी ।
उस नज़र सा सुरूर फ़िर ना हुआ,
हर तरह की शराब पी देखी ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ. भाई गुरप्रीत सिह जी, सादर अभिवादन । दोनों गजलें अच्छी हुई हैं । हार्दिक बधाई ।
'उससे ज्यूँ ही नज़र मिली यारो'
वाह सर जी । बहुत बहुत धन्यवाद
//उस से इक पल निगाह टकराई //
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'उससे ज्यूँ ही नज़र मिली यारो'
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अजय तिवारी जी
आदाब समर सर जी । ग़ज़ल की सरहना के शुक्रिया । ये मिसरा ऐसे ठीक रहेगा क्या
' उस से इक पल निगाह टकराई '
जी बहुत दिनों बाद obo पर आ पाया । क्या बताएं सर जी
दुनियादारी ने ऐसे उलझाया है ।
ख़ुद के लिए भी वक़्त नहीं मिल पाया है ।
आदरणीय गुरप्रीत जी, ख़ूबसूरत अशाआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़लें ओबीओ पर पढ़ने का मौक़ा मिला,कहाँ रहे भाई?
दोनों ग़ज़लें अच्छी हुई हैं,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'उस से इक पल नज़र मिली शायद,'
इस मिसरे से "शायद" शब्द निकालें ।
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