For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 100वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| पिछले आठ वर्षों से अधिक समय से अनवरत होने वाला यह आयोजन अब अपने सौवें पायेदान पर पहुँच चुका है| इस मील के पत्थर पर पहुंचना, बिना आप सबकी सहभागिता और समर्पण के संभव नहीं था| इस बार के आयोजन को विशेष और यादगार बनाने के लिए नियम और शर्तों में कुछ छूट दी गई है, आप सभी इसे अवश्य ध्यान से पढ़ लें| मिसरा -ए-तरह जनाब समर कबीर साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"सब्र करना तो आ गया है मुझे"

2122            1212              112/22
फ़ाइलातुन      मुफ़ाइलुन        फ़इलुन/फ़ेलुन

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)

रदीफ़ :-गया है मुझे 
काफिया :- (मिला, बुला, हटा, पा, दिखा, भुला, सता, सिखा, जता, बता, पिला  आदि)

मुशायरे की अवधि तीन  दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 19 अक्टूबर दिन  शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 21 अक्टूबर दिन रविवार  समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम  तीन ग़ज़लें प्रस्तुत की जा सकेगी लेकिन एक दिन में केवल एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी| 
  • प्रत्येक ग़ज़ल में से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी लिपि में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें  और दिन में एक बार संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें|

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 अक्टूबर दिन  शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12624

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

(तीसरी प्रस्तुति)

दर्द जो भी दिया गया है मुझे
वो ही शाइर बना गया है मुझे

उस जगह से बिखर गया हूँ मैं
जिस जगह से छुआ गया है मुझे

मैंने पहुँचाया अर्श पे जिसको
मिट्टी में वो मिला गया है मुझे

वो न मुझको ख़रीद पाया फिर
बेच कर जो चला गया है मुझे

रक्खा मैख़ाने में शराब सा था
पर नमक सा चखा गया है मुझे

कल दिवानों के शहर में यारो
आयतों सा पढ़ा गया है मुझे

गांधी के तीन बन्दरों सा हूँ
लाल फीता दिया गया है मुझे

मेरे अन्दर का आदमी मरा कब?
देवता जब कहा गया है मुझे

खट्टे अंगूर सा है ये कहना
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"

उम्र भर ज़िन्दगी से लड़ती रही
फिर भी औरत कहा गया है मुझे

(मौलिक व अप्रकाशित)

उस जगह से बिखर गया हूँ मैं
जिस जगह से छुआ गया है मुझे

वाह वाह आदरणीय महेंद्र कुमार जी क्या उम्दा शेर है , , इस तीसरी शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

सुखन नवाज़ी का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गुरप्रीत जी। हार्दिक आभार। सादर।

//दर्द जो भी दिया गया है मुझे
वो ही शाइर बना गया है मुझे// मतला अच्छा हुआ है. 

//उस जगह से बिखर गया हूँ मैं
जिस जगह से छुआ गया है मुझे// लाजवाब कहन.

//मैंने पहुँचाया अर्श पे जिसको 
मिट्टी में वो मिला गया है मुझे// मिट्टी को ख़ाक कर लेना बेहतर होगा 

//वो न मुझको ख़रीद पाया फिर = फिर न मुझको ख़रीद पाएगा

बेच कर जो चला गया है मुझे// 

//रक्खा मैख़ाने में शराब सा था
पर नमक सा चखा गया है मुझे// ये शेअर भर्ती का है, इसके बगैर भी काम चल सकता है.

कल दिवानों के शहर में यारो = काफ़िरों के नगर में कल यारो 

आयतों सा पढ़ा गया है मुझे

//गांधी के तीन बन्दरों सा हूँ
लाल फीता दिया गया है मुझे// "गांधी" हो "गांध" की तरह महल किया गया है जो  हर्फ़ गिराने की छूट के तहत तकनीकी रूप से तो ठीक है. मगर किसी महत्वपूर्ण शख्सियत ने नाम के साथ ऐसी छेड़छाड़ क़तई जायज़ नही है.  

मेरे अन्दर का आदमी मरा कब?

देवता जब कहा गया है मुझे// ऊला बेबह्र है. क्या इसे "मर गया आदमी मेरे अन्दर"  कर देना बेहतर न होगा?

//खट्टे अंगूर सा है ये कहना
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"// गिरह अच्छी है.

//उम्र भर ज़िन्दगी से लड़ती रही = हर क़दम ज़िन्दगी से लड़ती हूँ

फिर भी औरत कहा गया है मुझे// = फिर भी अबला कहा गया है मुझे

 

इस भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें भाई महेंद्र कुमार जी.

आपकी इस विस्तृत टिप्पणी से अभिभूत हूँ सर। यह मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं। आपके इन सुझावों से सहमत हूँ साथ ही पिछली ग़ज़ल में दिए गए सुझावों से भी। सादर अनुरोध है कि इन्हें संशोधित कर दिया जाए। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हृदय से आभार। सादर।

कल संशोधन कर दिया जायेगा भाई महेंद्र कुमार जी. 

बहुत-बहुत शुक्रिया सर। सादर।

आदरणीय महेंद्र जी, ये प्रस्तुति भी बहुत अच्छी है. शेष बातों के बारे में योगराज जी विस्तार से कह चुके हैं. हार्दिक बधाई.

 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी। जी, सहमत हूँ सर से। सादर।

बढ़िया गजल आद्रणीय बागी जी, बधाइयाँ। 

बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मनन जी। हार्दिक आभार। सादर।

दर्द जो भी दिया गया है मुझे
वो ही शाइर बना गया है मुझे

उस जगह से बिखर गया हूँ मैं
जिस जगह से छुआ गया है मुझे

आदरणीय महेंद्र कुमार जी उम्दा गज़ल कही आपने .... आदरणीय योगराज सर ने फ़ाइन टच देकर गज़ल में चार चाँद लगा दिये ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on मिथिलेश वामनकर's blog post बालगीत : मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर बाल गीत। रिबन के विभिन्न रंगो के चमत्कार आपने बता दिए। बहुत खूब आदरणीय।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, क्या ही खूब ग़ज़ल कही हैं। एक से बढ़कर एक अशआर हुए हैं। इस…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service