साथियों,
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय गुरप्रीत जी। दूसरा शेर ख़ास तौर से पसन्द आया। मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र कुमार जी
रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र कुमार जी
//जब से अपना बना गया है मुझे ।
खौफ़ ए फुर्कत ही खा गया है मुझे ।// वाह वाह वाह ! ये खौफ जायज़ भी भाई गुरप्रीत सिंह जी।
//अब उमीदों का मुझ पे बोझ नहीं ,
हारना रास आ गया है मुझे ।// खूब, अच्छा शियर हुआ है।
//जीने के सीख लूँगा और भी ढंग ,
"सब्र करना तो आ गया है मुझे।"// गिरह भी ज़बरदस्त लगाईं है, वाह।
//कैसे उस अजनबी को ग़ैर कहूँ ,
वो जो मुझसे मिला गया है मुझे ।// अच्छा शेअर हुआ है।
//तेरी तस्वीर - चहरा हँसता हुआ ,
आज फ़िर से रुला गया है मुझे ।// क्या कहने हैं, वाह वाह।
//सुनने आया था वो कहानी मेरी ,
अपना क़िस्सा सुना गया है मुझे ।// पहला मिसरा लय में नहीं है। "/सुनने आया था वो कथा मेरी" कर देना बेहतर होगा।
//ईश्क ए नाकाम का फ़साना हूँ ,
ख़ूब लिक्खा पढ़ा गया है मुझे । // जियो भाई जियो, ये शेअर तो हासिल-ग़ज़ल हो गया। बहुत बहुत दाद और मुबारकबाद भाई गुरप्रीत सिंह जी।
आदरणीय योगराज सरजी , बहुत बहुत शुक्रिया , क्या कहूँ आपने हमेशा मेरा ऐसे ही उत्साहवर्धन किया है और बहुत कुछ सिखाया है आपने मुझे ।
आद० गुरप्रीत जी बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है दिल से दाद हाज़िर है
शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
आदरणीय गुरप्रीत जी, अच्छी ग़ज़ल पर दिल से दाद लें>
जब से अपना बना गया है मुझे ।
खौफ़ ए फुर्कत ही खा गया है मुझे ............ बहुत ही बढ़िया
अब उमीदों का मुझ पे बोझ नहीं ,
हारना रास आ गया है मुझे .................... वाह वाह वाह
जीने के सीख लूँगा और भी ढंग ,
"सब्र करना तो आ गया है मुझे।" ........ ग़िरह के दोनों मिसरों में जो तालमेल होना चाहिए, उसका सुन्दर प्रदर्शन हुआ है.
कैसे उस अजनबी को ग़ैर कहूँ ,
वो जो मुझसे मिला गया है मुझे ................ आपकी व्यंजना का भी ज़वाब नहीं, आदरणीय
तेरी तस्वीर - चहरा हँसता हुआ ,
आज फ़िर से रुला गया है मुझे .............. भावमय करता हुआ एक बहुत खूबसूरत शेर
सुनने आया था वो कहानी मेरी ,
अपना क़िस्सा सुना गया है मुझे ............ मनोविज्ञान को जानने-समझने वाले इस शेर की गहराई को सहज ही समझ लेंगे. .
ईश्क ए नाकाम का फ़साना हूँ , ..... इश्क़
ख़ूब लिक्खा पढ़ा गया है मुझे । .............. आखिरी शेर भी पूरा अर्थवान हुआ है.
दिल की गहराइयों से बधाई आदरणीय
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ सर जी नमस्कार , ऐसी विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया , आपको ग़ज़ल पसंद आई , दिल को तसल्ली हुई ।
आ. भाई गुरप्रीत जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
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