साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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दीप बनकर जलूँ निरंतर मैं
जुगनू देकर दुआ गया है मुझे//
ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास हुआ है, उक्त शेर का मिसरा सानी देख लें, बात कुछ बन नहीं रही, बधाई इस प्रस्तुति पर.
अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया वन्दना जी| हार्दिक बधाई|
बोलना जब से आ गया है मुझे
चुप रहूँ ये कहा गया है मुझे
.
मेरी सूरत बिगाड़ने वाला
आइना कल दिखा गया है मुझे
धोका, रुसवाई, दर्द, तन्हाई
चाहा क्या, क्या दिया गया है मुझे
सहरा सहरा भटक रहा हूँ अब
इश्क़ पागल बना गया है मुझे
वक़्त का आज फिर कोई लम्हा
आँसुओं में डुबा गया है मुझे
जाना तो मुझको चाहिए था मगर
छोड़ कर वो चला गया है मुझे
जो कहानी कहीं पे ख़त्म न हो
इश्क़ है वो बता गया है मुझे
फल मिलेगा न जाने कब देखो
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"
उसने मुझको कभी पढ़ा ही नहीं
जिसकी ख़ातिर लिखा गया है मुझे
कोई मुझको समझ न पाएगा
इतना आसाँ बना गया है मुझे
(मौलिक व अप्रकाशित)
आ. महेंद्र कुमार जी अच्छा प्रयास हुआ है हार्दिक बधाई आपको
हौसला अफ़ज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी। हार्दिक आभार। सादर।
जनाब महेंद्र साहिब ,
अच्छी ग़ज़ल कही, मुबारकबाद आपको,,
हार्दिक आभार आदरणीय अफ़रोज़ 'सहर' साहब। बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर।
आदरनीय महेंद्र जी, बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई हो
उत्साहवर्धन के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। हार्दिक आभार। सादर।
आ. महेंद्र जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है..
मतले के ऊला और सानी को आपस में बदल लें...
बोलना जब से आ गया है मुझे
चुप रहूँ ये कहा गया है मुझे
ये ज़ियादा प्रभावोत्पादक है
बधाई
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर। आपका सुझाव अनुकरणीय है। संशोधन हेतु अनुरोध कर दिया है। हार्दिक आभार। सादर।
जबाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले पर जनाब निलेश जी का सुझाव अच्छा है ।
गिरह उम्दा हो गई अब ।
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