परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 105वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब
असरार-उल-हक़ मजाज़ "लखनवी" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"जिन्हें इंसाँ नहीं कहते उन्हें इंसाँ कर दें "
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )
१. पहला रुक्न फाइलातुनको फइलातुन अर्थात २१२२ को ११२२भी किया जा सकता है
२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है|
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आद ० राजेश कुमारी साहिबा बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल कीजिये
आद० मुनीश तनहा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया नवाज़िश
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। बढ़िया और उम्दा ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
आद० सुरेन्द्र नाथ भैया आपका दिल से बेहद शुक्रिया नवाज़िश
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ। सादर
मिथिलेश भैया आपका बहुत बहुत शुक्रिया गज़ल आपको पसंद आई .
ग़ज़ल
2122,1122,1122,22/112
दिल में अरमान जो हैं आज नुमायाँ कर दें
देश की आन पे इस जान को क़ुरबां कर दें//1
जिनको मालूम नहीं है कि ख़ुशी क्या शै है
उनकी भी ज़ीस्त पे अब थोड़ा सा अहसां कर दें//2
ख़्वाब सुनसान अंधेरों में डरे बैठे हैं
उनके आँगन में भी अब चाँद को महमाँ कर दें/3
हर तरफ़ ज़ुल्म ओ फ़सादात के जो हामी हैं
उनके घर की तरफ़ इक बार तो तूफ़ां कर दें//4
प्यार सिखला के बदल डालें हम उनकी दुनिया
"जिन्हें इंसां नहीं कहते उन्हें इंसां कर दें"//5
इश्क़ ही जुस्तजू हो इश्क़ हो ईमान अपना
इश्क़ की लौ से चलो दुनिया चरागां कर दें//6
जश्न ए उल्फ़त में 'कमर' भूल ही जाए गर्दिश
वो अगर प्यार में इक बार फ़क़त हाँ कर दें//7
--क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'जिनको मालूम नहीं है कि ख़ुशी क्या शै है'
'शै' को "शय"लिखा करें ।
'उनके घर की तरफ़ इक बार तो तूफ़ां कर दें'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,'तरफ़' का वज़्न 12 होता है, और 'तूफ़ाँ करदें' भी गलत जुमला है, देखियेगा,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'उनके घर में भी बपा आप ये तूफ़ाँ कर दें'
'इश्क़ ही जुस्तजू हो इश्क़ हो ईमान अपना'
इस मिसरे में 'ईमान' शब्द की वजह से लय बाधित हो रही है,इसे "ईमाँ" कर लें ।
बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब इस्लाह और हौसला आफ़ज़ाई के लिए।
मोहतरम तरफ़ इक में वस्ल है। 112 पर।
बाकी सुधार की कोशिश करता हूँ।
''उनके घर की तरफ़ इक बार तो तूफ़ां कर दें'
इस मिसरे की अलिफ़ वस्ल के साथ तक़ती'अ करें?
उनके21 घर की 22 तरफिक बा 1122 र इशारा 1122 कर2 दें2
'त-रफ़ इक'
में अलिफ़ वस्ल अजीब लग रहा है ।
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