For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-117

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 117वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  जलील ’आली’ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"एक दिन में कहाँ अंदाज़-ए-नज़र बनता है "

2122       1122   1122    22

 

फाइलातुन      फइलातुन         फइलातुन       फेलुन

(बह्र:  रमल मुसम्मन मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- बनता है।
काफिया :- अर( नज़र, सफर, सर, क़मर, हुनर, बशर आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6881

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

  • जनाब अरमान साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई लाजवाब मतला। बधाई स्वीकार करें।

मुह तरमा रचना साहिबा, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

वाह वाह जनाब  Tasdiq Ahmed Khan साहिब, क्या कहने, बधाई हो 

ग़म भी पड़ते हैं मुहब्बत में उठाने यारो
यूँ किसी का न कोई जान ए जिगर बनता है l

बहुत ख़ूब, सादर 

जनाब राज साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

2122, 1122, 1122, 22


1)हौसला बढ़ता है मज़बूत जिगर बनता है|
इश्क़ जो करता है यारो वो निडर बनता है |

2)जड़ पकड़ लेता है ये दिल की ज़मीं पर फ़ौरन
इश्क़ का पौधा बड़ी जल्दी शजर बनता है |

3)इश्क़ है ऐसा समंदर कि बताएं क्या अब
तैरने जाओ तो हर क़तरा भँवर बनता है |

4)चाँद तो छोड़ो बना लेंगे तुम्हें हम दिलबर
प्यार में इक दिया भी तुमसे अगर बनता है |

5)ज़िन्दगी उसने बना दी है जहन्नुम मेरी
हाँ वही ख़ुद जो बड़ा दस्त ए हुनर बनता है |

6)छोड़ जाएगा तुम्हें देखना मुश्किल में वो
शख़्स जो आज बड़ा सीना सिपर बनता है |

7)ज़िन्दगी कितनी है दुश्वार यहाँ पर यारो
सांस रह जाती है गिनती की तो घर बनता है |

गिरह
उम्र लग जाती है सारी ये हुनर आने में
"एक दिन में कहां अंदाज ए नज़र बनता है |"

मौलिक अप्रकाशित

आ. भाई अनीस जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

जनाब लक्ष्मण धामी साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

जनाब अनीस 'अरमान' जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'चाँद तो छोड़ो बना लेंगे तुम्हें हम दिलबर 
प्यार में इक दिया भी तुमसे अगर बनता है'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'ज़िन्दगी उसने बना दी है जहन्नुम मेरी 
हाँ वही ख़ुद जो बड़ा दस्त ए हुनर बनता है'

इस शैर के ऊला में 'जहन्नुम' को "जहन्नम" कर लें,सानी अभी मिहनत मांगता है,'दस्त-ए-हुनर' यानी हुनर का हाथ, ग़ौर करें ।

जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

चाँद तो छोड़ो बना लेंगे तुम्हें हम दिलबर
प्यार में इक दिया भी तुमसे अगर बनता है | 

इस शेर में ये कहने की कोशिश थी, हुस्न आशिक़ से कह रहा है कि मेरे मेरे इश्क़ में तुम चाँद बनाने की बातें करते हो तुम एक दिया बना लो तो हम तुम्हें दिलबर मान लेंगे, शायद सही तरीके से कह नहीं पाया, अगर कुछ सुझाव हो तो दीजियेगा|

दस्त ए हुनर वाले शेर में आपने सही कहा कोशिश करता हूँ सुधारने की  

आदरणीय अनीस अरमान जी, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही ।

बधाई स्वीकार करें ।

आ. रचना भाटिया जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
57 minutes ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
59 minutes ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
1 hour ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  हृदयस्पर्शी रचना ! हाल ही वह घटना मुझे याद आ गयी, सटीक शब्दों में मन को…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विश्वासधात- दोहे*****रिश्तों में विश्वास का, भले बृहद आकाश।लेकिन उस पर घात की, बातें करे…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"प्रदत्त विषय पर अच्छी अतुकांत रचना हुई है रक्षिता सिंह जी। आजकल ब्रेक-अप, पैच-अप, लुक-अप और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर अभिवादन।"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"प्रणाम आदरणीय   "
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"गीतिका छंद के विषय में जानकारी इंटरनेट से प्राप्त की है। इसमें कुछ त्रुटियाँ हो सकती हैं।…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"स्वप्न सतरंगी सुहाना संग जिसके था बुनावो जिसे था ज़िंदगी भर के लिए साथी चुनासोच थी निर्माण होगा सुख…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service