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बढ़िया कथा ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस रचना पर आदरणीया वर्षा जी
अच्छी लघु कथा है बहुत बहुत बधाई वर्षा जी
"भिखारी"
वो भिखारी सूर्य उगते ही शहर के सबसे बड़े विश्वविद्यालय के बाहर जाकर खड़ा हो गया| उसे विश्वास था, परीक्षाओं के चलते वहां से अच्छी भीख मिल जायेगी|
इतने में कुछ छात्रों का एक दल नारे लगाता हुआ आया, "विश्वविद्यालय प्रशासन हाय-हाय! हमारी मांगें पूरी करो, कठिन प्रश्नपत्र के बोनस मार्क्स दो|" नारे लगाते वो दरवाजे के एक तरफ बैठ गये|
यह देख भिखारी हैरान हो गया|
फिर छात्रों का एक और दल आया, वो भी नारे लगा रहे थे, "हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिये, लोकतंत्र की यह मांग है|", चिल्लाते हुए वो दरवाज़े के दूसरी तरफ बैठ गए|
भिखारी अब हँसने लगा|
फिर छात्रों का एक अन्य दल नेताओं के साथ आया, और वो दरवाजे के ठीक बाहर खड़े होकर नारे लगाने लगे, "कुलाधिपति से मांग है, छात्र अतिरिक्त गतिविधियाँ नहीं करें| बिना अनुमति गतिविधि करने वाले दण्डित हों|"
भिखारी की हँसी और भी तेज़ हो गयी|
इतने में विश्वविद्यालय के कुलपति की गाड़ी सनसनाती हुई आई, वो तुरत-फुरत में बाहर निकले और हर दल से शांति की मांग करने लगे|
यह देख कर तो वो भिखारी कहकहे लगाने लगा|
कुलपति के इशारे पर वहीँ खड़े एक पुलिसकर्मी ने उस भिखारी को डंडा दिखाते हुए कहा, "ऐ, भाग यहाँ से... हँस तो ऐसे रहा है जैसे यूनिवर्सिटी तेरी है?"
अब हँसी भिखारी के चेहरे पर फ़ैल गयी, उसने हथेली को ऊपर की तरफ कर, अपना हाथ उन सभी की तरफ किया और लगभग चिल्लाते हुए कहा, "ये पढ़े-लिखे गुरूजी, बच्चे और सारे नेता मेरे ही तो साथी हैं...."
कहते-कहते उसकी हंसी की तीक्ष्णता बढ़ गयी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
अदभुत..... आदरणीय चंद्रेश जी, लघुकथा अपने मर्म को बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में सफल है. आपने समसामयिक घटनाक्रम को बहुत ही शानदार ढंग से अभिव्यक्त करते हुए लघुकथा को कालजयी बना दिया है. इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई
रचना के मर्म तक जाकर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय मिथिलेश जी|
रचना लिखने की मेरी भावनाएं भी यही थीं आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, कि शिक्षित और सक्षम को किसी भी तरह से मांगने की आवश्यकता क्यों है? आपने टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु हृदय से आभारी हूँ|
अब हँसी भिखारी के चेहरे पर फ़ैल गयी, उसने हथेली को ऊपर की तरफ कर, अपना हाथ उन सभी की तरफ किया और लगभग चिल्लाते हुए कहा, "ये पढ़े-लिखे गुरूजी, बच्चे और सारे नेता मेरे ही तो साथी हैं...."
............................. वाह , आदरणीय चंद्रेश जी क्या खूब ही आपने चित्रण किया , अंत मे जोरदार पंच ।
रचना की पंचलाइन आपको पसंद आई और आपने टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु हृदय से आभारी हूँ, आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी |
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