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यारों को यारो क्यों न कर लिया जाए?
सम्बोधनात्मक है, सो गुजारिश कर रहा हूँ.
//दूर जाओ न, रहो साथ 'सलिल' के यारों.
आओ मिलजुल के कोई बात बनायी जाए..//
इस खूबसूरत सी सार्थक संदेशपरक मुक्तिका के लिए बधाई स्वीकार करें आचार्य जी .........:))
वाह वाह आचार्य जी , खुबसूरत मुक्तिका आप ने प्रस्तुत किया है ,
चादरें मैली ही ना हुईं, तार-तार हुईं.
चादरें ज्यों की त्यों, जैसे हो तहाई जाए..
तहाई जाय, इसका प्रयोग बढ़िया लगा , तह लगाना को बोल चाल में तहाना भी कह देते है, इस र्तरह के शे'र जल्द ही दिल को छू जाते है | दाद कुबूल करे आचार्य जी |
''अपनी भी बात सुनाई जाए''
होती है मुश्किल जब बिगड़ी बात बनाई जाए
लोगों को मुश्किल से दुनिया में समझाई जाए l
कर देते हैं जीना दूभर हैवानों के गुट मिलकर
इंसानों की भी इक दुनिया अलग बसाई जाए l
बाँट लिया सबने खुद को अपने-अपने मजहब में
लहू का रंग एक है तो एक ही जाति बनाई जाए l
है गुलाम देश की जनता अब अपनों के हाथों में
तोड़ो उन हाथों को या फिर हथकड़ी लगाई जाए l
बदलो माली गुलशन के ना जानें करना रखवाली
लहू-लुहान हो रहे गुल कली-कली मुरझाई जाए l
सिसक रही भूख वहशतें करतीं रक्स गरीबी की
कैसे खत्म हो मंहगाई कोई तरकीब सुझाई जाए l
ओछी राजनीति की काली करतूतें कर दें छूमंतर
किसी जंतर-मंतर से कोई ऐसी बिधा बनाई जाए l
बुझती है जिंदगी जिनकी दुनिया से धोखे खाकर
उनकी आस के दीपक में बाती नई जलाई जाए l
हर कुर्बत से उठा भरोसा गाँठ पड़ीं जहाँ बरसों से
उम्मीदों के संग ''शन्नो'' गाँठ-गाँठ सुलझाई जाए l
-शन्नो अग्रवाल
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