आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हा हा हा हा ...... ये हुई न बात कथा पर साहित्यिक दृष्टिकोण की ! बहुत -बहुत आभार आपका आदरणीय सौरभ जी इस कथा की कमजोर कड़ी को इंगित करके विस्तृत समीक्षा के लिए . मैं आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी की प्रतिक्रया पाकर भी बेहद अभिभूत हुई हूँ .अब जाकर मुझे भी इस रचना में " लघुकथा की आत्मा " का विलोप होना दिखाई दे रहा है और इस कृत्रिमता का आभास ने चिंतन में एक नई दिशा दी है .
यही है वो सटीक प्रतिक्रया जो लेखन को सही दिशा की ओर लेकर जाता है . मैं स्वयं भी इस वाह -वाही की राजनितीकरण से बेहद दुखी हूँ .
यहाँ साहित्यिक क्षेत्र में भी भाई -भतीजे वाद का प्रकोप ऐसा मुंह फाड़ रहा है कि हम जैसे नव प्रशिक्षु जो लेखन के सब पहलुओं को जानने के इच्छुक है कई -कई बार भ्रमित हो उठते है . ऐसे में सही आचरण सीखने - सीखाने के लिए क्या हो ? कई बार तो नव लेखक प्रश्न पूछने से डरते भी है अपने वरिष्ठजनों से ! .
मेरा स्वयं के लेखन में आज के सम्प्रेषण में त्रुटी भी इसी का हिस्सा है .मेरी खुद की हर कथा पर गलत वाह -वाही होना चकित करता है मुझे भी , क्योंकि कोई भी कथा कभी भी मुक्कमल नहीं होती है . सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी ही रहती है . लेकिन कौन ले ये जबाबदारी , सबको अपना -अपना भाईचारा निभाना जो है !
कथा पर सही दिशा -निर्देश ना मिलना कारण है कि अथक प्रयास , पठान -पाठन के बावजूद लेखन त्रुटियाँ इंगित होती है क्योंकि थ्योरिटिकल और प्रेक्टिकल में बहुत अंतर होता है . तकनीकों को महज जान लेना ही लेखन को सही दिशा नहीं देता है . जो सीखना चाहता है उसे तो कम से कम सही मार्गदर्शन मिले अपने वरिष्ठजनों द्वारा ! खैर जो लिखेगा वो ही त्रुटियाँ भी करेगा और लेखन में तो तमाम उम्र ही सीखना जारी रहता है क्यूंकि इसकी कोई एक रेसिपी नहीं होती है कि इतने शक्कर में इतनी चाशनी बनेगी ! :))
फेसबुक लेखन व् फेसबुकिया एटिट्युड वाली बात भी आपने खूब संदर्भित किये है . वहाँ फेसबुक पर तो बड़े -बड़े दिग्गज साहित्यकार भी अब ऐसे मोह के चंगुल में फंस गए है कि उनको भी लगता है कि सब उनका ही गुणगान करें ,
समीक्षात्मक प्रतिक्रया से बचने की कोशिश करते हुए बस फरमान सुना आते है कि कथा सही नहीं है , लेकिन उनसे मार्गदर्शन पाने के लिए तो उनके खेमे का "पास " और" वी. आई . पी . टिकट " का उनके पास होना बेहद जरूरी होता है .
सादर !
आपने मेरे कहे का मर्म समझा अतः सादर धन्यवाद आदरणीया कान्ताजी.
अब विश्वास है, कथाक्रम में आपकी दृष्टि एक विशेष आयाम के साथ गंभीरता को और समझेगी.
//यहाँ साहित्यिक क्षेत्र में भी भाई -भतीजे वाद का प्रकोप ऐसा मुंह फाड़ रहा है कि हम जैसे नव प्रशिक्षु जो लेखन के सब पहलुओं को जानने के इच्छुक है कई -कई बार भ्रमित हो उठते है . ऐसे में सही आचरण सीखने - सीखाने के लिए क्या हो ? कई बार तो नव लेखक प्रश्न पूछने से डरते भी है अपने वरिष्ठजनों से ! . //
मैंने महसूस किया है, ऐसा कुछ शब्द-वाक्य बदल-बदल कर आप बार-बार कहती हैं. आपको पता है कि ऐसा कुछ ओबीओ पर हमेशा नकारा गया है. बल्कि सही कहूँ, तो इन्हीं अटिट्युड आदि के विरुद्ध ओबीओ का भौतिक स्वरूप साकार हुआ है. फिर भी आप ऐसे इंगितों की ओर साग्रह कहती हैं तो आश्चर्य भी होता है.
पिछले आयोजन में भी आपने ऐसा ही कुछ कहा था जिसपर आदरणीय मिथिलेशजी ने इस भाव के विरुद्ध आपसे सीधा संवाद स्थापित किया था. या तो आप समस्याओं का सामान्यीकरण करने के क्रम में कुछ जनरल वाक्य लिख जाती हैं या आप ’समझ’ रही हैं कि आप क्या कह रही हैं और किसे ’सुनाना’ है. यदि ऐसा है तो स्पष्ट कहें, आदरणीया.
एक बात बताऊँ.. साहित्य के क्षेत्र में आपको वाकई अभी बहुत मेहनत करनी है. मुख्य यह है कि आपका उत्साह और प्रयास दीर्घकालिक तौर पर बना रहे. लेकिन यह भी सही है कि आपको लेखन का मर्म अभी आत्मसात करना बाकी है. और, हम हृदयतल से चाहते हैं कि ऐसा आप करें. क्योंकि आपमें भाव-संप्रेषण की अद्भुत क्षमता है. बस आपको अपनी क्षमता को अनावश्यक उतान करने से या उतान करवाने के मोह से विलग रखना होगा.
आदरणीया, भाव-प्रदर्शन ही लेखन और संप्रेषण का मुख्य तत्त्व है. परन्तु अधिक भाव-प्रदर्शन लेखन तत्त्व के अ-गरिमामय होने का कारण भी हो जाता है. आप इस तथ्य को अवश्य समझिये. आपको मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत ही गंभीर प्रयासकर्ता के रूप में देखता हूँ.
किताबें लिख लेना या फिर यहाँ-वहाँ प्रकाशित हो जाना बहुत ही सामान्य सी बातें हैं. वह भी आज के दौर में ! मुख्य, किन्तु, यह है कि लेखन का तत्त्व लेखक में पगा है कि नहीं..
आदरणीया, आपकी टिप्पणी की शुरुआत ’हा हा हा हा’ से हुई है.
मेरे उपर्युक्त निवेदन में कोई ’चुटकुला तत्त्व’ दिख गया था क्या ? ऐसा यदि हुआ है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. मेरा आशय वैसा कभी नहीं था.
पुनः, आपको एक गंभीर प्रयास कर्ता मानता हूँ, इसी कारण मैंने आपसे इतनी बातें कीं.
सादर
आदरणीया कान्ता रॉय जी, आयोजन के श्रीगणेश करने और पिता-पुत्र की एक ऐसी तस्वीर, जो पुत्र के बदलते रंगों को चित्रित करने में पूर्ण सफल है, को अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत करने हेतु सादर बधाई|
बहुत बढ़िया रचना विषय पर, पिता और पुत्र दोनों के बदलते रूप दिख गए इसमें| बधाई इस रचना के लिए
--"टी.आर.पी"--
"ये देखो सिद्धार्थ! चारो ओर सूखे की मार, प्यासी धरती, घरो में खाली बर्तन, बिन नहाये गंदले से बच्चे ये तस्वीरे देखो....
अरे ,कहाँ गए ! ये सब किसकी तस्वीर ले रहे हो तुम ....! "
घुटनो तक साड़ी चढाए खुदाई करती मज़दूरन की, तो कही स्तनपात कराती आदिवासी खेतिहर मज़दूर, तो कही उघाडी पीठ के साथ रोटी थेपती महिला की ...कैमरा हटाओ ! "
यह सब थोडे ही ना हमे कवरेज करना था। हमे सुखाग्रस्त ग्रामीण ठिकानों का सर्वे कर उस पर रिपोर्ट तैयार करनी है।"
"तुमको इन सब के साथ रिपोर्ट तैयार करना होगा , वरना...!"
“ वरना क्या सिड...? "
"वरना मैं दूसरे चैनल वाले के साथ..."
"तुम मर्द भी ना.....! "
"मुझे ताना मत दो रश्मि! अगर हमने इन तस्वीरों के साथ रिपोर्ट तैयार नही की तो चैनल का टी.आर.पी कैसे ...?"
" हाँ , टी.आर.पी .......मेरे सपने तुम्हारे सपनों से ज्यादा ऊँचे है।"
मौलिक एंव अप्रकाशित
आदरणीया नयना जी, बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर
आज के बदलते दौर में मिडिया के होते पतन को दर्शाती उम्दा कथा ,हार्दिक बधाई आपको।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |