आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आदरणीय ओमप्रकाश जी बहुत ही मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने. नम कर दिया.
बँटवारा (लघु कहानी)
75 वर्षीय पिता अमोलक चन्द के मान कंस्ट्रक्शन नाम से ठेकेदारी का कार्य छोटे बेटे ने सम्भाला जबकि बड़े बेटे ने अपने जीजा के पास जवाहरात काम सीख पिता से 25 लाख रूपये ले अपना प्रथक व्यवसाय करने लगा | वर्षों से खाली पड़ी जमीन पर बनाये आलिशान बँगले पर 60 हजार रूपये प्रति माह बैंक ऋण की क़िस्त मान कंस्ट्रक्शन फार्म से ही चुकाई जा रही थी | बड़ा बेटा घर खर्च में भी हाथ नहीं बँटा पा रहा था | पिता ने दोनों बेटों में बटवारा करने का विचार कर बड़े बेटे को पुस्तैनिं मकान और 50 लाख नकद छोटे बेटे से दिलवाने की बात कही तो बड़े बेटे ने इनकार करते हुए स्वयं बँगला लेने और छोटे भाई को पुस्तैनी मकान व स्वयं के पास से 50 लाख दो बार में 6-6 माह में देने का प्रस्ताव रखा | पिता ने मंजूर कर अब से ऋण की किस्ते चुकाने को कहा | किन्तु बड़ा बेटा क़िस्त नहीं चुका पाया और बैंक से किस्ते न चुकाने पर बँगले को नीलाम करने का नोटिस आ गया | इसपर पिता ने बड़े बेटे के साले से सलाह कर पुस्तैनी मकान बड़े बेटे के नाम और बँगला छोटे बेटे के नाम करने की रजिस्ट्री पंजीकृत कराकर छोटे बेटे से बकाया किस्ते जमा करवाई | मान कंस्ट्रक्शन फर्म से बड़े बेटे के खाते में 50 लाख जमा करा, बड़े बेटे को पुस्तैनी मकान में शिफ्ट होने को कहने पर बड़ा बेटा क्रोधित हो बोला- आप छोटे को ही चाहते हो, मै घर छोड़ जा रहा हूँ पर आज से आप मेरे पिता नहीं हो |”
बड़े बेटे की लडकी बाबा को याद करती थी | पिता ने भी पोती के जन्म दिन पर 5 लाख के फिक्स्ड डिपोजिट और ड्रेस भिवायाई | बेटी बाबा की याद में हुडक करते बीमार रहने लगी | अपने तकिये के निचे बाबा की तस्र्वीर रख सोने लगी | डाक्टर के सलाह पर बहूँ अपनी बच्ची को लेकर बाबा से मिलाने ले गई | पिता भी अपनी पोती से मिलने को बेताब रहने लगे और उन्हें भी पोती का स्मरण होने लगा |
(मौलिक व अप्रकाशित)
आजकल मेरी कंपनी में ऑडिटिंग चल रही है, वरिष्ठ ऑडिटर्स की पूरी टीम से घिरा हुआ हूँI वे लोग हर जगह मीन मेख निकालने की कोशिश कर रहे हैंI लेकिन सच कहूँ तो उन्होंने मुझे इतना नहीं उलझाया जितना आपकी इस लघुकथा ने उलझा दिया हैI लघुकथा लिखें अग्रज श्री, यह बहीखाता क्यों लिख दिया?
आ० लक्ष्मण जी,सहभागिता के लिए बधाई लेकिन माफ़ कीजिये ये प्रस्तुति लघु कथा के मानकों पर खरी नहीं उतरती| सबकी लघु कथा पढ़िए आपको खुद कमी पता लग जायेगी | सादर
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज सर, बहुत बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई
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