For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-139

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 139वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब बशीर बद्र  साहब की गजल से लिया गया है|

"अब उसे देखे हुए, कितने ज़माने हो गए"

  2122          2122        2122        212

फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन     फ़ाइलातुन     फ़ाइलुन

बह्र: बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

रदीफ़ :-  हो गए

काफिया :- आने(पुराने, सयाने, तराने, जाने, दाने, सुहाने आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 जनवरी दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 29 जनवरी  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जनवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6269

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मुहतरम समर कबीर साहिब का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उनकी अनुपस्थिति में आज के मुशायरे का शुभारंभ करता हूँ, और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ। सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का स्वागत है। 

जी आदरणीय अमीर जी आपका दिल से शुक्रिया

ख़ुदा गुरु जी को जल्द से जल्द शिफ़ा याब और दुरुस्त करे यही दुआ है

कबीर सर जल्द स्वस्थ हों।

आदरणीय सर जी जल्द स्वस्थ्य हो जाएं

यही कामना करती हूँ।

2122 2122 2122 212

सोहबतों में आ के तेरी दिन सुहाने हो गये
हम तेरे या रब हाँ तेरे हम दीवाने हो गये

तेरा ये नूर ए मुजस्सम तेरा ये रुतबा जुदा
देख मामूली से मेरे लब तराने हो गये

ख़्वाब के मानिंद गढ़ती जा रही है ज़िंदगी
जब से मैं तेरा हुआ मेरे ज़माने हो गये

इक तू ही हमदर्द मेरा इक तू ही हमराज है
छोड़ कर तुझ को बस इक सारे सयाने हो गये

इश्क़ हो अल्लाह से या इश्क़ महबूबा से हो
इश्क़ तो है इश्क़ बाकी सब बहाने हो गये

तल्ख़ मौसम तल्ख़ रिश्ते तल्ख़ियों के दिन सभी
साथ जो तेरा मिला हमदम पुराने हो गये

जो भी थे पागल दीवाने, सामिईन अब गौर दें
ज़िंदगी महसूस की तो सूफ़ियाने हो गये

चाँद से महबूब में दिखने लगा हमको ख़ुदा
बात इतनी सी ही थी कितने फ़साने हो गये

वो जो कहते थे न करना इश्क़ मेरी जाँ कभी
इश्क़ के अंज़ाम के पहले निशाने हो गये

गिरह-
आँख से ओझल कभी होता नहीं था जो मिरी
अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गये

आ. आज़ी भाई,

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है. मतले के सानी में  हम का दुहराव खटक रहा है.
ग़ज़ल थोडा समय और चाहती है 
शेष शुभ 

आ नीलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई और नज़र ए क़रम करने के लिये

आप एक बार गा कर पढ़ कर देखिये ग़ज़ल आराम से

हम का दुहराव लय को सुंदर बना रहा है

ग़ज़ल समय चाहती है से समझ नहीं पाया आ ग़ज़ल में कहाँ पर ग़लती है

अगर आप शे र दर शे र मेंशन कर देंगे तो कृपा होगी

सादर

आ. आज़ी भाई,
एक पाठक के रूप में मैंने अपनी बात रखी है .. आप यदि मानकर ही बैठे हैं कि दुहराव से मिसरा सुन्दर हो गया है तो मैं आपके अपनी रचना को defend करने के अधिकार का सम्मान करता हूँ ..
ग़ज़ल वक़्त क्यूँ माँग रही है इसका उदाहरण यह वाक्य विन्यास देखें ..
.
सोहबतों में आ के तेरी दिन सुहाने हो गये.. कहा गया तेरी दिन सुनाने हो गये.. कहना चाहते हैं मेरे दिन सुहाने हो गये..
.
छोड़ कर तुझ को बस इक सारे सयाने हो गये.... इक तुझी को छोड़ कर सारे सयाने हो गये .. 
ये बारीकियाँ पकड़ेंगे यही उम्मीद है आपसे ..
सादर 

आ मैं किसी बात को पकड़ कर नहीं बैठा मुआफ़ी चाहता हूँ अगर आपको ऐसा लगा तो

लेकिन आ सोहबतों में आ के तेरी ही बोला जायेगा न

अगर मैं कहूंगा आ नीलेश जी की सोहबतों में आ के दिन सुहाने हो गये तो इसमें क्या ग़लत है मेरे समझ नहीं आया

छोड़ कर तुझ को बस इक

या

इक तुझी को छोड़कर 

बात तो दोनों एक ही हैं मैं समझ नहीं पा रहा हूँ आप क्या कहना चाहते हैं आदरणीय

आ. आज़ी भाई ..
ग़ज़ल, मिसरा, बह्र  से इतर यदि आपको किसी से कोई बात कहनी हो तो वो ऐसे कहेंगे 
छोड़ कर तुझ को बस इक सारे सयाने हो गये.... 
या ऐसे 
इक तुझी को छोड़ कर सारे सयाने हो गये ..
कौन सा  वाक्य अधिक उपयुक्त लगता है आपको??

आ दोनों अपनी जगह बेहतरीन हैं

मुझे मेरा जियादा ग़ज़ल के मुआफ़िक लग रहा है आपको अपना

आपने बात सीधी सीधी कही है

मैंने ग़ज़ल गुनगुना के 2 3 दिन तब ये लिखा है तो मुझे मेरा जियादा ग़ज़ल के अनुरूप लगा

बाकी आप अपनी जगह पर सही हैं

सादर

आदरणीय आज़ी तमाम जी, इस अच्छी ग़ज़ल से मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए मुबारकबाद। आदरणीय नीलेश सर जी से सहमत हूं। देखिए आप ने लिखा है
सोहबतों में आ के तेरी दिन सुहाने हो गए
यह लाइन असल में ऐसे होनी चाहिए
तेरी सोहबतों में आ के मेरे दिन सुहाने हो गए
लेकिन बहर निभाने के लिए आपने ऐसे लिखा
सोहबतों में आ के तेरी दिन सुहाने हो गए
जो कि व्याकरण ले लिहाज़ से उतना सही नहीं है।

इसी तरह दूसरा मिसरा ऐसे होता
बस एक तुझको छोड़कर सारे सयाने हो गए
लेकिन वही बात कि बहर निभाने के लिए लिखना पड़ा कि
छोड़ कर तुझको बस इस सारे सयाने हो गए
जो कि व्याकरण वाक्य विन्यास के लिहाज़ से उतना दुरुस्त नहीं।इसीलिए आदरणीय नीलेश जी ने सुझाया कि
इक तुझी को छोड़कर सारे सयाने हो गए
इस मिसरे में जो आप कहना चाहते हैं वही कहा गया है और ये हर लिहाज़ से दुरुस्त मिसरा भी है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
3 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service