आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आपको रचना अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ , आपका हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
वक्ती ज़रूरत पर कुछ भी कर गुज़रने वाले राजनेताओं की पोल खोलती इस रचना के विषय पर लगता है बहुत काम किया है आपने, आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, राजनीती में यह सब होता ही है, एक से गठबंधन टूट कर दूसरे से जुड़ना और फिर प्रायश्चित का नाटक करना| रचना का पंच भी बहुत अच्छा है| सादर बधाई स्वीकार करें इस रचना के सृजन हेतु|
कुछ दिन पहले टी वी में दो तीन साल पुरानी एक पार्टी के नेता को एक पूजा स्थल में बर्तन धोते देखा था , अपनी पार्टी के किसी सदस्य के कुछ शब्दों के लिए प्रायश्चित कर रहे थे , बस तभी प्रायश्चित का ये एंगल दिमाग़ में क्लिक हो गया ,, आपको प्रभावित कर पाया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ..आपका हार्दिक आभार आदरणीय चंद्रेश जी
इस गोकुल डेयरी के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया प्रतिभा जी, सादर!
प्रायश्चित - दर्शन
ताऊ जी तीर्थयात्रा कर के आज उत्तराखंड से वापस लौटे थे। आस-पास के काफी लोग मिलने आये थे। ताऊ जी अपनी लम्बी यात्रा के वृतांत्र सुना रहे थे , लोग सुन भी बड़े चाव से रहे थे। ऋषिकेश के बारे में बताते हुए बोले , " ऋषिकेश में लंका विजय के बाद राजा राम ने तप किया था , प्रायश्चित के लिए। इसीलिये इसका इतना महत्व है। "
" राजा राम ने प्रायश्चित के लिए तप किया था , क्यों " , किसी ने जिज्ञासा जताई।
" राजा राम ने रावण का वध तो उसके शत्रुवत व्यवहार के कारण किया था , पर वह एक प्रकांड विद्वान ब्राह्मण था , इसलिए उसके वध के दोष से मुक्ति के लिए प्रायश्चित स्वरुप उन्होंने वहां कठोर तप किया था। पुराने जमाने में राजा लोग किसी भी प्रकार की त्रुटि या चूक हो जाने पर तरह तरह से प्रायश्चित करते थे। "
" पुराने जमाने में , अब के शासक क्यों नहीं करते प्रायश्चित , जबकि ये भी अक्सर ऐसे काम करते हैं कि देश को काफी धन - जन क्षति उठानी पड़ती है। "
थोड़ा मुस्कुराते हुए ताऊ जी बोले , " राजा लोग प्रायश्चित करते थे , आज के शासक तो जनता के सेवक होते हैं , जनता मालिक - स्वामी होती है , सेवक थोड़े प्रायश्चित करते हैं " , थोड़ा रुक कर फिर बोले , " जनता करती है न , मालिक के रूप में , रोज ही करती , सह सह कर , गलत सेवक को चुन कर। "
माहौल अचानक शांत और गम्भीर हो गया। ताऊ जी फिर बोले , " प्रायश्चित सदैव वह करता है जो अपने उत्तरदायित्व को समझता है , प्रश्न बड़े छोटे का नहीं होता है। जो अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझता है और अपनी गलतियों का दोषारोपण दूसरों पर करता है वह होशियार नहीं होता है , वरन स्वभावतः गुलाम तुल्य होता है। "
मौलिक एवं अप्रकाशित
प्रायश्चित तो शासक ही करते हैं और आज तो जनता ही शासक है, बहुत बढ़िया रचना विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० विजय शंकर जी पहले राजा लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते थे भगवान से डरते थे तो प्रायश्चित करते थे आज किसको पड़ी है अपने दोष पर प्रायश्चित करें यही तो कलियुग है |
बहुत- बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु |
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