आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत खूब आदरणीय कालीपद जी । लघुकथा सार्थक संदेश देते हुए प्रदत्त विषय को पूर्णरेपण तुष्ट कर रही है। प्रधान संपादक के संशोधन के बाद कथा और भी निखर गई है। सादर शुभकामनाएं
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपका हार्दिक आभार
आ. कालीपद प्रसाद जी योगराज सर जी की टिप्पणी के बाद कुछ भी कहना बेमानी है. बधाई आपको रचना व सहभागिता के लिए
धन्यवाद आ नयना कानिटकर जी
प्राश्चित को सार्थक करती बढ़िया रचना.
आदरणीय ओमप्रकाश जी आपका हार्दिक आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय कालीपद प्रसाद जी! अपने कुकर्मों के प्रायश्चित को अंजाम देने का तरीका भी हर मनुष्य का अपने ढंग से होता है! प्रदत्त शीर्षक को पूर्ण रूप से दर्शाती रचना!
बहुत ही बढ़िया विषय के साथ कही गयी लघुकथा हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय कालिपद जी| आदरणीय योगराज जी सर ने भी रचना में संशोधन कर इसे उच्चता प्रदान कर दी है| पुनः हार्दिक बधाई|
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