आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय योगराज सर, गांधी जी के चौथे बन्दर को नायकत्व प्रदान करती इस लघुकथा के कथानक की बुनावट बिलकुल नए किस्म की है. बुरा बोलने, देखने, और सुनने से मना करने वाले बन्दर, समकालीन परिस्थियों के हिसाब से भले ही आदर्शवादी लगते हों किन्तु वर्तमान परिदृश्य में इनके जीर्ण-शीर्ण वृद्ध होने की दशा में इसके आदर्श का खोखलापन स्पष्ट दिखाई दे जाता है.
आज मनुष्य के अंतर्बाह्य जीवन में घुस आई विसंगतियों, त्रासदियों और वेदनाओं में केवल तीन बंदरों की सीख से काम नहीं चलेगा. भले ही बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो लेकिन अपनी आवाज तो उठाओं. जो गलत हो रहा है, उस पर क्रोध तो दिखाओ. अपने शीर्षक को सार्थक करती इस लघुकथा का सन्देश इतना प्रगाढ़ है कि पाठक मन को भीतर तक उद्द्वेलित करता है. इंकलाबी बनाता है. उस त्रासदी को, उस खीझ को, उस गुस्से को शाब्दिक करने के क्रम में गाँधी के चौथे बन्दर का चीखना जैसे मष्तिष्क दो फाड़ कर देता है. बहुत समय तक दबाये अवसाद के फूटने का चित्र इस लघुकथा को प्रभावोत्पादक बना रहा है.
केवल आदर्शों से जीवन नहीं चलता है, तनिक यथार्थ को भी समझना होता है. लघुकथा की संप्रेषणीयता इसे एक सफल लघुकथा बनाती है. इस शानदार लघुकथा की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई और हार्दिक आभार, हमें एक उत्कृष्ट लघुकथा पढने का अवसर प्रदान करने के लिए. सादर नमन
जो विरासत बोझ बन जाए पाँव की जंजीर बन जाए विकास की राह में रोड़ा बन जाए उसे कंधों से उतार फेंकना ही बेह्तर है गाँधी जी के तीन बंदरों का बिम्ब लेकर बहुत बढ़िया सार्थक सन्देश दिया है लघु कथा में | बहुत बहुत बधाई आद० योगराज जी
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी। लघुकथा पर टिप्पणी करने को जी कर भी रहा है साथ ही मन भयभीत भी है।आपने सांकेतिक शैली में जबर्दस्त लघुकथा पेश की है।आज के हालात में गांधी जी के बंदर प्रासंगिक नहीं रहे।पुनः हार्दिक बधाई।
आदरणीय योगराज सर, ग़ज़ब की लघुकथा लिखी है आपने। शीर्षक तो सीधे दिल में घर कर गया। हम लोगों को इतनी अच्छी लघुकथा का स्वाद चखाने के लिए आपका हृदय तल से आभार, सादर!
पूछ दबा कर बैठे बन्दर ने कमाल कर दिया. सारी भड़ास निकाल दी. उतरोत्तर बढ़ती इस शानदार लघुकथा के लिए बहुतबहुत बधाई आदरनीय भाई साहब जी.
वाह, प्रतीकों के इस्तेमाल से एक बेहतरीन रचना के सृजन हेतु हमारी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ योगराज सर
रचना को मान एवं अपना बहुमूल्य समय देने हेतु सभी साथियों का एहसानमंद हूँ..
बहुत खूब आ० नीता कसार जी अच्छी लघुकथा हुई हैI बधाई स्वीकार करेंI
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