आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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एक दूसरे को नीच दिखाने के चक्कर में विवाहित बेटी की निजता पर प्रहार करने से गुरेज़ नहीं। किंतु डॉक्टर ने परदे की बात परेड में रहने दी।
बहुत सुंदर और सार्थक रचना विषय पर, कुछ नेक नियत और समझदार लोग भी हैं दुनियां में| बधाई आपको इस रचना के लिए
विद्वानों का मत है कि संक्षिप्तता, सूक्ष्मता और संयमता लघुकथा की जान हैंI इन तीनो में से यदि एक पक्ष भी कमज़ोर रह जाए तो लघुकथा अपना प्रभाव खो देती हैI इस लघुकथा में इन तीनो का बहुत ही कुशलता से पालन किया गया हैI लघुकथा में अनावश्यक विस्तार नहीं है, अत: संक्षिप्तता की शर्त पूरी होती हैI फरजाना द्वारा लेडी डॉक्टर को माँ कहना और उस डॉक्टर द्वारा फरजाना की भावनायों को समझना, लेखक की सूक्षम सोच का परिचायक हैI इस कथा में कहीं भी किसी भी पात्र के मुख से अस्वाभाविक संवाद प्रस्तुत नहीं किए गए, रचना में कहीं भी नाटकीयता नहीं हैI कहन और कथा में पूरी संयमता बरती गई है, अर्थात ऊपर कहे तीनो बिंदु इस लघुकथा के माध्यम से संतुष्ट हुए हैंI इसी कारण यह लघुकथा लगभग एक सफल लघुकथा कही जा सकती हैI "आँचल" शीर्षक भी अति-उत्तम है, जहाँ एक तरफ मैला होने की कगार पर फरजाना कांचल है तो दूसरी तरफ उस लेडी डॉक्टर का ममतामई आँचलI यदि प्रदत्त विषय की बात करें तो इस रचना में बेशतर घटनाएँ पर्दे की पीछे ही घटित हुई हैं, भले ही वह घर से भागना हो, निकाह हो या फिर फरजाना और लेडी डॉक्टर का संवादI इसी वजह से ये लघुकथा मुझे बहुत पसंद आई, जिस हेतु मैं आ० समर कबीर जी को तह-ए-दिल से बधाई देता हूँI
मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,आपने मेरी लघुकथा पर अपनी टिप्पणी दी जिसके लिये में बहुत बैचेन था,अब आपकी टिप्पणी से मुझे सुकून हासिल हुआ,आपने जिन तीन बिंदुओं का ज़िक्र किया है,इस पर आपने भोपाल आयोजन में विस्तार से रोशनी डाली थी और मैने वहीं इस सबक़ को याद कर लिया था कि ये लघुकथा के महत्वपूर्ण बिंदु है और जब भी में लघुकथा लिखता हूँ ये सबक़ सामने रख कर ही लिखता हूँ । कुछ ऐसे लोग जो हर विधा में लिखने का प्रयास तो करते हैं लेकिन सीखना कुछ नहीं चाहते और अपने आपको गुरु समझने लगते हैं । आपने मेरी हौसला अफजाई की और मेरे प्रयास की सराहना की ,में बता नहीं सकता कि मुझे कैसी ख़ुशी हासिल हुई है,लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
आ० समर कबीर साहिब - रचना का सुखद अंत अच्छा लगा , डॉ० का ह्रदय परिवर्तन इस कथा का चरम बिदु है . आपने पात्रों के साथ न्याय किया है . सादर .,
आ. समर भाई आदाब. सबसे पहने आप गोष्ठी का आगाज करने के लिए मुबारकबाद कूबूल करे. फ़रनाजा के अब्बू की पर्दे के पिछे की चाल को आपने बहूत संयत शब्दों मे जाहिर किया है और डाक्टर का "माँ" शब्द सुनते ही भाव बदलना एक माँ शब्द के वास्तविक रूप का दर्शन करा दिया. बहुत-बहुत बधाई आपको
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