आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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संतान की ज़िम्मेदारी साझी होनी चाहिए। सुंदर कथा बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
" महाराज की गादी"
पुलिस के गाड़ियों की आवाज़ व शोरगुल से उसकी नींद टूटी। जल्द से खिड़की के बाहर झांका तो वहाँ कोई नहीं था अलसाई सी पिछे के आँगन का द्वार खोलते ही शोरगुल व रोने चीखने की आवाज़ से समझ गई पीछे वाले महाराज जी के यहाँ कुछ लोचा हुआ है। मुँह पर पानी के छिंटे मारते ही पिछले गुजरे दिनों के संवाद याद आ गये.तब नये नये ही तो इस घर मे आये थे वो लोग।
"प्रणाम बहन जी! लगता है आप नये-नये आए है क्या हुआ. इतने दिनो मैं आज ही देख रही हूँ आप को यहाँ काम करते हुए वर्ना तो सुबह-सुबह कुछ आवाजें आती है और फिर दिन भर सन्नाटा पसरा रहता हैं। "--शुक्लाइन ने सुजाता से पूछा था।
" जी ,जी बस कुछ ही दिन हुए है धीरे-धीरे स्थिर हो रहे हैं. "सुजाता ने कहा था ।
" आपको भजन संगीत का शौक हो तो आइए ना , हर शुक्रवार को महाराज की गादी लगती है हमारे यहाँ. बडे पहुँचे हुए है,उन पर देवी माँ की बडी कृपा है। सुना है आप के बच्चा नही हो रहा. बार-बार गर्भपात हो जाता है। क्या समस्या है। जब धरती पर गिरने वाला बीज खराब हो ना तो... एक बार आओ उपासना में। माँ ने चाहा तो जल्द ही गोद भर जाएगी महाराज साहब के आशीर्वाद से। "
सुजाता हतप्रद रह गई ये तो सारी जन्मकुडंली जानती है। अपने आप को संयत करते हुए बोली थी , "कुछ नही बहन जी सब ठीक है आगे प्रभु इच्छा हमे कोई जल्दी नहीं है। "
सुजाता मन ही मन ग्लानी से भर गई थी । उसे अपने आप से शर्म महसूस होने लगी की वह माँ नही बन और सारी कहानी सासू माँ के सामने उडेल दी थी। यह कहते हुए कि माँ हम लोग जल्द से जल्द चलेगे उनके यहाँ। मुझे भी लालसा है कि मेरी भी गोद हरी हो जाए
सासू माँ पढी-लिखी सुलझी हुई महिला थी। उसे समझाते हुए बोली थी, "देखो बेटा तुम समझदार हो अपने मन पर काबू रखो। ये लोग हमारी भावनाओं से खेलते है जब मेडिकल जाँच मे सब पता चल गया है तो इनके बहकावे मे मत आना। हम जल्द ही घर मे सबसे सलाह कर एक बच्चा गोद ले लेंगे।
सुजाता ने कई बार चाहा था कि एक बार कोशिश करने मे क्या हर्ज है पर घर मे सबने उसकी ना सुनी। सासू माँ से तो कई बार बहस भी हो गई थी पर वे जरा ना डिगी अपने निर्णय पर अडी रही.
"क्या हुआ सुजाता! ये शोर कैसा। " माँ ने पूछा
"मम्मा! वो पिछे वाले गादी वाले महाराज को पुलिस..सुजाता बोलते बोलते अचानक माँ के चरणों मे झुक गई।
मेरी असली पूज्य माँ तो आप है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
एक बार देख लेने में क्या जाता है ? की मानसिकता को उजागर करती लघुकथा के लिए बधाई . बहुत अच्छी लघुकथा बनी है .
लोगों की भावनाओं से खेलकर अपना उल्लू सीधा करना ही इनकी चाल होती है, सुंदर रचना| बधाई आपको
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