आदरणीय साथिओ,
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अच्छी सोच लिए है ये कथा , एन जी ओ के नाम पर आज कर धोखेबाजों की भी दुकाने चल पड़ी हैं ...बधाई इस कथा पर आपको राज्यवर्धन जी
आजकल अपनों को तो कोई अपनाता नहीं, गैरों की फिक्र किसे होगी बेटा!------सारगर्भित है यह पञ्च लाइन . बधाई आदरणीय .
अच्छी लघुकथा है भाई राज्यवर्धन जीI प्रयासरत व अभ्यासरत रहें तथा आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करेंI
बहुत सुंदर रचना आदरणीय राज्यवर्धन जी .
हार्दिक बधाई आदरणीय राज्यवर्धन सिंह जी। बहुत खूबसूरत लघुकथा।मेरी राय है कि अंतिम पंक्ति "मिठाई मलय के मुंह में कसैली सी हो गयी" के स्थान पर "अचानक मलय को मिठाई का स्वाद कसैला लगने लगा" होना बेहतर है।
अच्छी कथा हुई है मैं सीमा जी का समर्थन करती हूँ | शुभकामनायें |
आदरणीय साथियो ,
व्यक्तिगत कारणों से मंच से अनुपस्थित रहूंगा आज। आशा है सब साथी क्षमा कर देंगे , जिनकी कथा पर उपस्थित नहीं हो पाया वे भी और जिनकी कथाओं पर ईमानदार राय रखी ,वे भी। जिन कथाओं को सभी ने शानदार बताया , उनमें कोई त्रुटि मैंने बताई तो कथा कार को बुरा तो लगेगा ही। मन ही मन कहा भी होगा कि जब पूरा महल्ला खुश है तो तू कहां का नवाब है। मैं सच कहता हूँ कि किसी भी कथा पर टिप्पणी किसी समीक्षक की हैसियत से या ज्ञान बाँटने की नीयत से नहीं बल्कि, यह सोच कर करता हूँ कि यह रचना मेरी होती तो क्या करता। इस बहाने लिखना सीख लेता हूं। मुझे लगता है सीखने का यह सर्वोत्तम तरीका है। फिर यह गोष्ठी है, हम सब की अपनी। हम ही हर रचना को अच्छी बता कर खिसक जाएंगे तो चर्चा कौन करेगा।
आदरणीय प्रभाकर जी यह आपने बढ़िया किया इस बार गोष्ठी का कोई विषय नहीं रखा और मुझे शामिल होने का सुअवसर मिला। दिए गए विषय पर मुझसे लिखना हो नहीं पाता , यह मेरी कमज़ोरी है। दुर्भाग्य यह भी कि मन की मौज आए तो लिख लेता हूं। आशा है इस तरह के अवसर भविष्य में भी मिलेंगे। उन सभी साथियों का विशेष आभार जिन्होंने मेरी रचना पढ़ने का समय निकाला , बहुमूल्य टिप्पणी करके मुझे लेखन की दिशा दिखाई।
परम आदरणीय समर कबीर जी ने मुझे याद रखा , यह मेरे लिए बहुत ही गर्व की बात है।
फिर मिलते हैं जब ख़ुदा लाया। सब साथियों को बेहतरीन लेखन की शुभ कामनाएं
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