आदरणीय साथिओ,
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यही इस लघुकथा का सबक़ है. मुझे ख़ुशी है कि आपने इसके मूल मंतव्य को समझा. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आपने लघुकथा को बिल्कुल सही समझा है आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी. अधिक स्पष्टीकरण के लिए आ. नयना जी की टिप्पणी में मेरे द्वारा दिए गए प्रत्युत्तर का अवलोकन करें. आपका बहुत-बहुत आभार. सादर.
अच्छी कथा हुई है आदरणीय महेंद्र कुमार जी | हार्दिक बधाई आपको|
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना जी. सादर.
आपका हार्दिक आभार आ. रश्मि जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
सबक
कालोनी के लोग चोपाल में आने लगे,धीरे धीरे चोपाल लोगों से भर गई, और सभी का ध्यान गेट की तरफ किसी के आने का इंतजार में लगा ।
कालोनी में सत्ताधारी पार्टी के लीडर के आने का समाचार पहले ही फैला हुआ है ।
कालोनी का लीडर भी इधर उधर तेज़ गति से अपने लोगों को इकठ्ठा करने के लिए मोबाईल पर बातें कर रहा है।
लेकिन बहुत सारे उस के घरों के लोग अभी तक यहाँ नहीं पहुंचे हैं, ये सोचकर उस की फिक्रमंदी बढ़ गई है।
उस को आने वाले लीडरों का भी डर सता रहा है, क्यूंकि उसे लग रहा है कि अब लोग उस के कहने पे नहीं आयंगे, क्यूंकि पिछली बार उस ने दूसरी पार्टी का साथ दिया ।
अचानक ही मिन्दे का हरप्रीत वहाँ आ गया, और बोला “ कोई नहीं आयेगा, हमनें भी सबक सीख लिया, यदि आप की कोई पार्टी नहीं, तो हम भी तो अपनी मर्जी कर सकते हैं”।
ये सुन लीडर, हरप्रीत की तरफ देखता ही रह गया।
"मौलिक व अप्रकाशित"
अच्छी लघुकथा है, लेकिन इससे कहीं बेहतर हो सकती थी. निम्नलिखित पंक्ति पर दोबारा गौर करें:
//कोई नहीं आयेगा, हमनें भी सबक सीख लिया, यदि आप की कोई पार्टी नहीं, तो हम भी तो अपनी मर्जी कर सकते हैं”।//
यहाँ विरोधाभास नज़र आ रहा है, क्योंकि आपने पहले कहा:
//क्यूंकि पिछली बार उस ने दूसरी पार्टी का साथ दिया ।//
इसका सीधा सादा अर्थ ये हुआ कि वह इस बार किसी और पार्टी के साथ है. इसको दोबारा देखें.
//अचानक ही मिन्दे का हरप्रीत वहाँ आ गया//
हरप्रीत मिन्दे का हो या छिन्दे का, की फर्क पैंदा? सिर्फ हरप्रीत लिखने ही से बात बन जाएगी.
आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
संशोधन हेतु संकलन आने पश्चात ही निवेदन करें
कालोनी के लोग चोपाल में आने लगे,धीरे धीरे चोपाल लोगों से भर गई, और सभी का ध्यान गेट की तरफ किसी के आने के इंतजार में है ।
कालोनी में सत्ताधारी पार्टी के लीडर के आने का समाचार पहले ही फैल चूका हुआ है ।
कालोनी का लीडर भी इधर उधर तेज़ गति से अपने लोगों को इकठ्ठा करने के लिए मोबाईल कर रहा है।
लेकिन बहुत सारे उस के अपने घरों के लोग अभी तक यहाँ नहीं आए हैं, ये सोचकर कि उसके दिल की धडकन तेज़ हो रही है।
उस पर आने वाले बड़े लीडरों का भी डर सता रहा है, क्यूंकि उसे लग रहा है कि अगर वह भीड़ न जुटा पाया तो वो लोग नाराज़ हो जायंगे, लेकिन अब तो पिछली पार्टी का भी साथ नहीं होगा ।
अचानक हरप्रीत वहाँ पहुंचा, और बोला “ कोई न आइएगा, हम भी सबक सीख गए, यदि आप थाली का बैंगन हो, हम तो नहीं हो सकते, हम सब अपनी खातिर अपनी मर्जी तो कर सकते हैं”।
ये सुन लीडर, हरप्रीत की तरफ देखता ही रह गया।
कहानी में सम्प्रेषण को मुखर करने की आवश्यकता है . prayas hetu badhaaee saadar .
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय मोहन बेगोवाल जी हार्दिक बधाई आपको |
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