आदरणीय साथिओ,
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583 शब्दों की यह रचना अति नाटकीयता, जाने पहचाने फ़िल्मी दृश्य पर आधारित और बेहद कमजोर सम्प्रेष्ण की वजह से बेहद प्रभावहीन होकर रह गई है डॉ आशुतोष मिश्रा जी. सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें.
आपने टिप्स की बात की तो मैं स्टेप बाई स्टेप अपनी बात रखूंगा डॉ आशुतोष मिश्रा जी. सबसे पहले तो सम्प्रेष्ण की दृष्टि से रचना कुछ इस तरह पोस्ट की जानी चाहिए थी (इस लघुकथा में मैंने कोई परिवर्तन नहीं किया, केवल व्यवस्थित करने ही से यह 583 से 550 शब्दों की हो गई हैI)
राम नगर की पी जी कॉलेज में रामनगर की रहने वाली टीना और छात्रावास में रहने वाली रीना की मुलाक़ात हुए चंद रोजात ही हुए थे किन्तु एक जैसे व्यक्तित्व, कद काठी और सुन्दरता जैसी खूबियों ने दोनों को इतना करीब ला दिया था मानो एक लम्बे अरसे से वो दोस्त होंI दिवाली के अवकाश के बाद आज टीना रीना से मिलने छात्रावास पहुँची तो उसकी आँखों में नमी और उसके रुख पर सूखे हुए आंसुओ की लकीरे देखकर हतप्रभ थीI
“क्या हुआ रीना? कोई बात है क्या? घर की याद आ रही है क्या या कोई और है जिसकी याद मे आँसू बहा रही हो मेरी जान?” टीना ने माहौल को सामान्य बनाते हुए कहाI
“ऐसा कुछ भी नहीं हैI“ रीना ने बड़ी दबी आवाज में कहाI
“कुछ तो होगा, तुम मुझे बताना नहीं चाहतीं, तुमको मेरे कसम हैI “
“नहीं टीना कुछ भी तो नहीं हैI“
“इसका मतलब तुम मुझे अपना दोस्त नहीं मानती होI“
“ऐसा नहीं है रीना “ रीना ने फफककर रोते हुए कहा “टीना आज रामनगर के बिधायक के कुछ गुर्गे आज आये थे और उन्होंने कहा है कि आज शाम को होटल स्वप्निल के कमरे में पहुँच जाना, बिधायक जी ने बुलाया है, यदि नहीं पहुँची तो अंजाम समझ लेनाI“
सुनते ही टीना के माथे पर लकीर खिंच गयीं, रामनगर के बिधायक? ये कैसे हो सकता है?“ मन ही मन तमाम प्रश्नों में उलझी टीना ने अगले ही पल सहज होते कहा:
“रीना तुम कहीं नहीं जाओंगीI मेरे भैया भी पुलिस में बहुत बड़े अधिकारी हैं, तुम सब मुझपर छोड़ दो, आखिर मैं किस दिन काम आऊँगी?”
“नहीं टीना! तुम उन लोगों को नहीं जानती होI “ रीना के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थेI
“नहीं रीना तुम कहीं नहीं जाओगीI बस मैंने कह दिया, तुमको मेरी कसम हैI”
रीना को आदेश के लहजे में कहकर टीना आनन् फानन में प्रस्थान कर गयी और ठीक शाम को सात बजे मुह पर चुनरी लपेटे होटल स्वप्निल के कमरे में पहुंचकर दरवाजे पर दस्तक दे दीI
“कम इन, दरवाजा खुला हैI“ कमरे के अन्दर से विधायक महोदय की आवाज आयी टीना बिना कुछ कहे विधायक से थोड़ी दूर रखे सोफे पर सर झुकाकर बैठ गयीI
”तुम्हे ६ बजे बुलाया था, अब आ रही होI आइन्दा से ऐसी गलती नहीं होनी चाहिएI जब से तुम्हे कालेज के कार्यक्रम में देखा है दिल को पल भर का भी करार नहीं हैI अब ये शर्म छोडो और चेहरे से ये नकाब उठाओं ताकि हम भी तो चाँद के दीदार कर सकेंI“
बेचेनी में अंगडाई लेते हुए विधायक जी ने अभी अपनी बात पूरी की भी न थी कि टीना ने अपने चेहरे से चुनरी हटा दी और विधायक की तरफ मुखातिब हो गयीI
“अरे! बेटा टीना तुम यहाँ क्या कर रही हो?“ विधायक जी अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोलेI
“हाँ पापा मैं! क्या हुआ रीना को यहाँ क्यों बुलाया था? ऐसा क्या है रीना के पास जो मुझमे नहीं है? रीना आ सकती है तो मैं क्यूँ नहीं?“
टीना के जवाबों की झड़ी लगते ही विधायक जी को ऐसा तमाचा लगा कि वो तकिया सर पर रखकर बिस्तर पर औंधे लेट गए उनके पास न तो टीना से नजर मिलाने की हिम्मत थी न ही सवालों के जवाबI बेटी के तमाचे ने उन्हें बेटियां क्या होती हैं शायद इसका अहसास जरूर करा दिया थाI
(देखकर बताएं कि सम्प्रेषण कुछ बेहतर हुआ कि नहीं?)
आपकी कथा पर बात को आगे बढाते हुए:
//राम नगर की पी जी कॉलेज में रामनगर की रहने वाली टीना और छात्रावास में रहने वाली रीना की मुलाक़ात हुए चंद रोजात ही हुए थे किन्तु एक जैसे व्यक्तित्व, कद काठी और सुन्दरता जैसी खूबियों ने दोनों को इतना करीब ला दिया था मानो एक लम्बे अरसे से वो दोस्त होंI //
//“टीना आज रामनगर के बिधायक के कुछ गुर्गे आज आये थे और उन्होंने कहा है कि आज शाम को होटल स्वप्निल के कमरे में पहुँच जाना, बिधायक जी ने बुलाया है, यदि नहीं पहुँची तो अंजाम समझ लेनाI“//
होस्टल में रहने वाली लड़कियां इतनी कमज़ोर नहीं होतीं कि उन्हें इस तरह धमकाया जा सके. लड़की को इतना कमजोर दिखाने से कोई अच्छा सन्देश भी नहीं जा रहा
//रीना को आदेश के लहजे में कहकर टीना आनन् फानन में प्रस्थान कर गयी और ठीक शाम को सात बजे मुह पर चुनरी लपेटे होटल स्वप्निल के कमरे में पहुंचकर दरवाजे पर दस्तक दे दीI//
ज़रा गौर से देखें, यह कहानी का दूसरा दृश्य हैI. (पहला दृश्य दोनों सहेलियों में बातचीत का था)I. यह एक तकनीकी दोष है जिसे लघुकथा में कालखंड दोष के नाम से जाना जाता है. क्योंकि लघुकथा एक एकांकी विधा है जहाँ बात केवल एक ही कालखंड की होनी चाहिए.
(A) //”तुम्हे ६ बजे बुलाया था, अब आ रही होI आइन्दा से ऐसी गलती नहीं होनी चाहिएI जब से तुम्हे कालेज के कार्यक्रम में देखा है दिल को पल भर का भी करार नहीं हैI अब ये शर्म छोडो और चेहरे से ये नकाब उठाओं ताकि हम भी तो चाँद के दीदार कर सकेंI“//
(B). //“हाँ पापा मैं! क्या हुआ रीना को यहाँ क्यों बुलाया था? ऐसा क्या है रीना के पास जो मुझमे नहीं है? रीना आ सकती है तो मैं क्यूँ नहीं?“//
ऊपर के दोनों संवाद बेहद अस्वाभिक लगते हैं, बहुत sसीee फिल्मो में ऐसे दृश्य हम देख चुके हैं. बेटी का इस तरह बाप के साथ यूँ पेश आना महज़ ज़बरदस्ती लादा हुआ आदर्शवाद लग रहा है जोकि हकीकत से कोसों दूर है. i
//टीना के जवाबों की झड़ी लगते ही विधायक जी को ऐसा तमाचा लगा कि वो तकिया सर पर रखकर बिस्तर पर औंधे लेट गए उनके पास न तो टीना से नजर मिलाने की हिम्मत थी न ही सवालों के जवाबI बेटी के तमाचे ने उन्हें बेटियां क्या होती हैं शायद इसका अहसास जरूर करा दिया थाI //
लघुकथा में ऐसे विवरण को भाषण या लेखक का कथा में अनधिकृत प्रवेश कहा जाता है, जिससे बचा जाना चाहिए.
आदरणीय योगराज सर .सर्वप्रथम तो मेरे निवेदन पर आपने अपना बहुमूल्य समय देकर लघु कथा की बारीकिया समझाते हुए लघुकथा की त्रुटियों का निवारण करते हुए जो मार्गदर्शन दिया है उसके लिए मैं ह्रदय से आपका आभारी हूँ / एक क्या , तमाम रचनाएँ लिखने के बाद और एक से एक बढ़िया रचनाओं को पढ़कर भी मैं इस दिशा में मुझे लगता है सोच भी नहीं पाता / अपने अगले प्रयास में मैं कसौटी पर खरा उतरूंगा की नहीं ये तो नहीं कह सकता लेकिन कम से आपके मार्गदर्शन के अनुरूप दूसरी रचनाओं को पढ़ते समय एक दृष्टिकोण मेरे पास रहेगा और अपने लेखन में भी क्रमिक सुधार की दिशा में मुझे मदद अवश्य मिलेगी / अगर यह मार्गदर्शन मुझे नहीं मिलता तो मैं कालखंड जैसे दोष , अतार्किक बातों का रचना में समावेश , और भी तमाम बारीकियों की तह तक नहीं पहुँच पाता / लघु कथा लेखन के इस सफ़र पर आप सबके साथ चलते हुए शायद कभी कुछ ठीक ठाक लिख सकूंगा और इसके लिए आपसे ऐसे ही मार्गदर्शन की कामना मुझे सतत रहेगी / एक बार पुनः हार्दिक धन्यवाद देते हुए सादर प्रणाम के साथ
अपनी इस विषद टिप्पणी से हम सभी का मार्गदर्शन करने के लिए आपका हार्दिक आभार सर. सादर.
स्वागत है आदरणीय
आदरणीय डॉ. आशुतोष जी, आपकी इस लघुकथा में आदरणीय योगराज सर की विषद टिप्पणी के बाद कुछ कहने को शेष ही नहीं रह जाता. हाँ, आपके अन्दर सीखने की ललक है जो बहुत अच्छी बात है. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
रचना प्रदत्त विषयाधारित न होने के कारण आयोजन से हटा दी गई है.
(मंच संचालक)
(२) गले में रस्सी
© बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर
आँगन में बिछी हुई खाट पर सोते हुए कलुआ के मुख पर, सूरज की पहली किरण ने जैसे ही दस्तक दी, कलुआ की नींद खुल गयी. उसने आँगन में बंधी गाय का दूध निकालने के लिए बछड़े को रस्सी से खोला, बछड़ा तुरत अपनी माँ के थन से जा लगा, उसके मुंह में दो चार बूँद ही गयी थी कि कलुआ ने उसे हटा कर पुन: रस्सी से बाँध दिया और बाल्टी लेकर गाय का दूध निकालने लगा.
उसी समय कलुआ का छोटा बेटा वहाँ आकर दूध पीने की जिद करने लगा, कलुआ उसे भी गाय के थन से सीधे ही दूध पिलाने लगा, गाय माता उसे भी दूध उसी तरह पिला रही थी, जैसे उसने अपने बछड़े को पिलाया था.
उधर पास में रस्सी से बंधा नवजात बछड़ा ये सोच रहा था कि मेरे गले में ये रस्सी क्यों है ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
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