आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी, बेहतरीन प्रस्तुति।दिखावा करनेवाले लोगों पर करारी चोट।सफ़ेद पोश बन कर गाड़ियों में घूमेंगे।मॉल में, होटल में,मंहंगे बिल आँख बंद कर भर देंगे मगर छोटे छोटे लोगों से मोल भाव करेंगे।कुली से,रिक्शेवाले से, फ़ेरीवाले से दो दो रुपये के लिये गाली गलौज पर उतर आयेंगे।अच्छी रचना।पुनः बधाई।
बहुत बढ़िया रचना, खास तौर पर नाक पर रुमाल रखना और फिर खुद-ब-खुद हट जाना बहुत कुछ कह रहा है| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया जानकी जी| एक विचार यदि कार वाला व्यक्ति कार ही में बैठा रहता तो? हालांकि उतरा भी जा सकता है, उसमें कुछ भी असामान्य नहीं लेकिन कई बार ठेली से कुछ खरीदने के लिए गाड़ी से उतरने की बजाय गाड़ी उसके सामने लगा कर ही मांग लिया जाता है| सादर,
बहुत उत्तम सुझाव है भाई चंद्रेश कुमार छ्तलानी जी.
आदरणीय जानकी जी, बहुत बढ़ीया लघुकथा बनी है । लघुकथा आकारगत सीमा का अतिक्रमण करती प्रतीत होती है जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं । वैसे भी लघुकथा की पहचान उसके आकार की बजाय उसकी वेधक क्षमता है । आकारीय मितव्ययता वांछनीय तो हैं परन्तु कोई अनिवार्य बाध्यता नहीं है । लघुकथा का आकार उसके कथानक पर निर्भर करता है बस ध्यान ये देना है कि कुछ अनावश्यक न हो । प्रस्तुत लघुकथा में जिस साधारण से कथानक को लेकर कथा बुनी गयी है और कथ्यों का सटीक संप्रेषण लघुकथा को अद्वितीय बना रहा है । / तुलते मीठे आमों की खुशबू साईकिल वाले की नज़रों में अपने बच्चों की मीठी हँसी के रूप में झलकने लगी। 'सुख' जिस प्रखरता से उभरा है वह प्रशंसनीय है । शीर्षक चयन कुछ कमजोर लगा । सादर शुभकामनाएं ।
बहुत अच्छी कथा बधाई जानकी जी
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