आदरणीय साथिओ,
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वाह वाह!! बहुत ही सुन्दर और अर्थगर्भित लघुकथा है आ० अर्चना गंगवार जी. अंत में कटाक्ष भी बेहद तीखा हुआ है. आपकी यह लघुकथा हर मायने में सफल और सम्पूर्ण है जिस हेतु आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है.
सभ्य समाज में गोरे काले और दहेज की मानसिकता व्यथित करती है .. कथा बहुत अच्छी है हार्दिक बधाई .. पर सास के कथन में या निशा के कथन में कहीं कुछ अनकहा छोड़ने से प्रभाव दोगुना हो जाता ...
हार्दिक बधाई आदरणीय अर्चना जी।बेहतरीन प्रस्तुति। आज के समय की ज्वल्लंत समस्या को कितने सहज़ ढंग से प्रस्तुत किया है।बहुत बढ़िया।
प्रभावशाली रचना आदरणीय अर्चना जी । ओबीओ पर आपकी पहली रचना से परिचय हुआ है और आपमें असीम संभावनाएं दिखाई दे रहीं है। प्रस्तुत लघुकथा हालांकि अनकहे को पूरी तरह परिभाषित नहीं कर पा रही पर स्वतंत्र तौर पर एक प्रभावशाली रचना है। इस रचना का शीर्षक एक बहुआयामी शीर्षक है जो रंगत के स्थूल अर्थ के साथ साथ दहेज लोभियों की बदलती रंगत को भी बाखूबी दिखा रहा है । मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
वाह ! अर्चना दीदी , बढ़िया लघु कथा हेतु बधाई स्वीकारें ।
वाह, बेहतरीन कटाक्ष, बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
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