आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही सुंदर लघुकथा है आ० नयना ताई, प्रदत्त विषय अच्छी तरह से परिभाषित हुआ है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है. बहुत ही कुशलता से एक वातावरण सृजित किया है जिसने रचना को ऊंचाई दी है. विद्वान लोगों का कहना है कि लघुकथा "लिखी हुई" या "कही हुई" की बजाय यदि "घटित होती" प्रतीत हो तो उसकी सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं, आपकी रचना में मुझे वैसा ही अहसास हुआ. हालाकि जैसा भाई सुनील वर्मा न्र कहा, इस रचना में अभी भी काट-छील की गुंजाइश बाकी है जिसके बाद रचना और भी निखर कर सामने आएगी. दो-दो शीर्षक भी आखर रहे हैं.
बेहतरीन लघुकथा । हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी।
आ.तेजवीर जी आभार
आ. योगराज भाई जी रचना पर आपकी सह्दय टिप्पणी से आनंदित हूँ. काट-छिल का प्रयास तो सतत प्रक्रिया के तहत अवश्य करूँगी . जहाँ तक दो शिर्षक वाली बात है मैं शीर्षक तय करने में कमजोर पड जाती हूँ इसलिए रचना पर दो शीर्षक पर विचार किया था. अंतिम समय में पता नहीं कैसे एक को हटाना छूट गया.संकलन में सुधार कर लूँगी.
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद किसी और विषय से सम्बंधित पोस्ट भी है यह| दो शीर्षक प्रायः इस तरह देखे गये हैं| एक अच्छी रचना के सृजन हेतु सादर बधाई| वरिष्ठजनों और गुरुजनों की बातें संज्ञान में लें तो निःसंदेह बेहतरीन हो जायेगी|
आ.चन्द्रेश जी किसी और विषय से इस पोस्ट का कोई संबध नहीं है यह एक महज मानवीय भूल है जो रचना पोस्ट करते हुए किसी एक शीर्पषक पर निर्णय लेकर एक को हटाने से छूट गई. बाकी रचना पर पुन: काम करूँगी. आभार आपका
बहुत ही भावपूर्ण कथा हुई है दीदी.. अंगूठी उतर कर मेज पर रखते ही सारा अनकहा प्रकट हो गया जो लड़की के मन में घुमड रहा था... हाँ कथा के आरम्भ में कुछ सम्वाद ऐसे अवश्य हैं जिनका कथा से सीधा सीधा सम्बन्ध नहीं हैं परन्तु यदि द्रश्य-चित्रण के नजरिये से देखा जाय तो आँखों के आगे फिल्म का सा द्रश्य घूम जाता है! कथा का वातावरण बनाने में वो पंक्तियाँ सहायक लग रही हैं. कथा की रवानगी बढ़ गई है.साथ ही पात्र के चरित्र की विशेषता 'उतावलापन' भी उन्ही पंक्तियों से उभर कर आया है. फिर चुंकिं संक्षिप्तता लघुकथा का अनिवार्य गुण है तो एक बार पुनः विचार अवश्य कर लें.. इस कथा के लिए बहुत सारी बधाइयाँ.
आ. सीमा बहुत-बहुत धन्यवाद जो तुम रचना के मर्म तक पहूँची. सच है आरंभिक कई संवाद सिर्फ़ इसीलिए लिखे कि रेस्टोरेंट का वातावरण निर्मित हो सके जिसे तुमने बखूबी पकडा. सुधार की सतत प्रक्रिया के तहत कुछ दिनों बाद इसपर विचार करके तराशने की कोशीश करती हूँ . अनेकानेक आभार
आ. समर कबीर जी आदाब रचना पर कुछ दिनों बाद पुन: काम करूँगी. आभार आपका
आदरणीया नयना ताई , हार्दिक बधाई बढ़िया विषय पर कलम चलाई है जिसके लिए हार्दिक बधाई | बाक़ी गुणीजन बता चुके हैं | सादर |
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