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लघुकथा बढ़िया तो है, मगर आपके क़द से मेल नहीं खा रही है प्रिय शशि बांसल जी। बहरहाल प्रतिभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें।
यही तो होता आया है शादी के बाद अपनी पहचान अपना सरनेम भी छिन जाता है किन्तु अब ये नियम भी लडकियाँ ही तोड़ रही हैं शादी के बाद अपना सरनेम ही लगाने लगी हैं |अच्छी लघु कथा ,बधाई आपको शशि जी
बढिया लघुकथा आजकल यह भी एक फैशन सा हो गया है।
सामाजिक रूप से प्रचलित जो परम्परायें अप्रासंगिक हो गयी हैं, उनका धीरे-धीरे तिरोहण होता जायेगा.
लघुकथा के आयोजन में आपकी सहभागिता का स्वागत है, आदरणीया..
प्रश्न यह भी है कि क्या आज की नारी भी अपने पति के नाम से अपनी पहचान चाहती हाँ या फिर वह अपनी अलग पहचान बनाना पसंद करेगी , सादर .
आदरणीया शशि जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
कथानक थोड़ा विस्तार चाहता है. लघुकथा में लघु के साथ कथा भी होनी चाहिए थी ऐसा मुझे लगता है. यद्यपि यह विधा मेरे लिए बिलकुल नई है किन्तु फिर भी मुझे लगता है कि लघुकथा में यदि कथानक की कसावट में कमी हो तो दुरुस्त हो सकता है किन्तु कथा तत्व न हो तो विधा में रचना का होना सहज स्वीकार्य नहीं होता है.
ऐसा मेरा विचार है इसलिए निवेदित किया है.
सादर
नारी कुछ भी कर ले उसकी पहचान पुरुष से ही है , अब ये मिथक टूट रहा है । बहुत अच्छी लघुकथा , बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने , बधाई इस रचना के लिए.
आदरणीय शशि जी, एक बार पढ़ कर तो मज़ा आ गया, दो पंक्तियों में बहुत ही गूढ़ बात कह दी आपने| इस लघुकथा में अव्यक्त बहुत कुछ है| कुछ रूढ़ीवादिता, कुछ पुरुष प्रधानता, कुछ नये परिवेश/परिवार में आने पर डर....जो कि लघुकथा में होना ही चाहिये|
दूसरी बार पढने पर मुझे लगा कि, आज की माँ पहले की माँ की तरह केवल सेवा/संस्कार ही नहीं वरन थोड़ा बोल्ड रहना भी सिखाती है, और यह बताती है कि एक बार दब गयी तो हमेशा दबती रहोगी| आपकी इस लघुकथा में प्रोफाइल का अर्थ यदि सोशल मीडिया की प्रोफाइल है तो निश्चित ही किसी ग्रामीण परिवेश की लड़की का विवाह नहीं है और जिससे विवाह हुआ है वो भी प्रोफाइल से पूर्व से ही अवगत है, तो इतना छोटे विचार का भी नहीं होना चाहिये| यह बात अव्यक्त नहीं है, थोड़ी सी अस्पष्ट है| हाँ पति के स्थान पर यदि सास, स्टेटस अपडेट करते हुए देख लेती और उसमें पति का नाम जुड़वा लेती तो शायद यह अस्पष्टता समाप्त हो जाती और सासु माँ को कुछ कह दिया जाता कि जैसे मैं भी अपने पति का नाम ही तो लगा रही थी, फैशन जो ठहरा....आदि | (यदि सोशल मीडिया की बात ही है तो)
आदरणीया शशिजी
कुछ ज़्यादा ही संक्षिप्त हो गई। वैसे रेखा ने गलत क्या किया ... काल करे सो आज कर। बैंक खातों में और जहाँ आवश्यक हो यह काम जितनी ज़ल्दी हो करना चाहिए।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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