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गजब का पञ्च दिया है आपने अपनी लघुकथा में आदरणीया रीता जी. विषय पर तंत्र कि पोल खोलती बहुत बढ़िया लघुकथा. बधाई स्वीकारें
वोट बैंक की स्वार्थी राजनीति पर बहुत गहन व गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती आपकी सुगठित लघुकथा हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
पहचान
यहाँ तक पहुँचने मे उसने अपने पाँच साल लगा दिये थे लेकिन किशोर इतना तेज निकलेगा ये सोचा ही नही था । आज एहसास हुआ कि किसी अरबपति को फाँस कर काम निकालना इतना भी आसान नही होता है । पाँच साल पहले जब डिस्कोथेक में पहली बार उसकी रईसी देखी थी तभी सोच लिया था कि इससे ही शादी करना है । बाद में तलाक लेकर एक अच्छी रकम का जुगाड़ गुजारेभत्ते के रूप में ... लेकिन उस रईस जादे का वकील इतना जबरदस्त निकला कि अब कुछ और ही रास्ता .!!!
"मिश्रा जी , आप किसी काम के नहीं ! कोई उपाय बताईये केस जीतने का.अब आपकी फीस केस जीतने पर ही मिलेगी । "
"मैम , आपका केस तो दूसरा कोई वकील हाथ भी नहीं लगायेगा सिवाय अयंगर सर के ... अब कोई पहचान कायम करो उनसे और उन्हे ही दो अपना केस ... इस केस को दूसरा कोई और नहीं संभाल सकता है । "
" पहचान.... ! परन्तु कैसे ..? "
दुसरे दिन अयंगर सर के केबिन के बाहर काफी देर तक वो इंतजार करती रही , क्योंकि उनसे पहचान बेहद जरूरी जो थी ।
" मिसेज़ रागिनी , अंदर आ जाईये प्लीज़ । " - चपरासी ने कहा तो एक बार फिर से खुद को सवाँरा उसने ।
अंदर जाते ही अयंगर सर की पहली नजर उस पर उठी तो उठी ही रह गई । पहचान अब कायम हो चुकी थी ।
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मौलिक और अप्रकाशित
"पहचान अब कायम हो चुकी थी ।" पूरी लघुकथा का सार इसी पंक्ति में है..बहुत बढ़िया कहा है !!
"अंदर जाते ही अयंगर सर की पहली नजर उस पर उठी तो उठी ही रह गई । पहचान अब कायम हो चुकी थी ।" वाह , सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आदरणीया kanta roy जी ! सादर
अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हथकंडे को अपना सकते है लोग । अच्छी रचना आदरणीया कांता रॉय जी , बधाई..
झन्नाटेदार पंच " एक प्रश्न सा खड़ा करती हुई . सादर
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