आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी, आपने प्रदत्त विषय पर एक छोटी घटना को संवाद के माध्यम से इसतरह प्रस्तुत किया है कि पढ़कर आनंद आ जाता है| लघुकथा के मानकों पर बिलकुल खरी| कथा का अंतिम सन्देश जो कहा गया और जो अनकहा रह गया वह सचमुच में अभिभूत कर देता है | ताज़ा खबर या ताज़ी खबर मैं इसमें संदेह के बीच झूल रहा हूँ |
रोड टैक्स
‘‘ क्यों जयन्त ! तुम्हारे शहर में सड़क के किनारे खड़े होने पर भी टैक्स लगता है?‘‘
‘‘ क्या बात है नीरज! ‘‘
‘‘ अरे ! बस से उतरकर पिछले बीस मिनट से तुम्हारे आने की प्रतीक्षा यहाॅं कर रहा था, इतने में पाॅंच भिखारियों को एक एक रुपया दे चुका हॅूं‘‘
‘‘ अच्छा ! तो ये बात है, हः हः हः हः, हमारे देश ने भिखारी ही तो पैदा किये हैं ।‘‘
‘‘ देखो ! वह छठवाॅं इसी तरफ आ रहा है , अब मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं, जल्दी स्कूटर स्टार्ट करो ... ‘‘
इसी बीच भिखारी ने अपने कटोरे को जयन्त की ओर बढ़ाया जिसे देख नीरज ने अपना मुॅंह दूसरी ओर करते हुए कनखियों से उसे देखा।
वह मटमैला सा कटोरा हिलाते हुए कहने लगा, ‘‘ अरे साब, कुछ तो दे दो ! ! किसी को कुछ न देने के कारण ही मेरी यह दुर्दशा हुई है.... ‘‘
जयन्त ने एक्सीलरेटर घुमाया और स्कूटर फुर्र हो गया। लगभग पचास मीटर ही चला होगा कि अचानक उसने स्कूटर मोड़ा और उसी स्थान पर आकर उस भिखारी को खोजने चारों ओर नजर दौड़ाने लगा पर भिखारी वहाॅं से गायब हो चुका था।
अचरज में पड़े नीरज ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘ क्या हुआ जयन्त ! बापस क्यों आ गए?’’
‘‘ अरे यार, उस भिखारी से मिलना था, वह पता नहीं कहाॅं चला गया’’
‘‘ लेकिन क्यों, ये सब तो घूमते ही रहते हैं, मैं तो इन लोगों से तंग आ चुका हॅूं’’
‘‘ तुम नहीं समझोगे’’
‘‘ पर कुछ बताओ तो सही ?’’
‘‘ उसने मेरी आखें खोल दी हैं। ’’
मौलिक व अप्रकाशित
आभार , आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी ! आपने ठीक कहा।
मेरा यह मानना है कि भिखारी हमसे कुछ मांगते नहीं हैं वह तो हमें यह अवसर देते हैं कि जो भी हमारे पास अतिरिक्त है उसे जरूरतमन्द को दे सकें।
आभार और धन्यवाद आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी।
अच्छी रचना, सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन.
आभार और धन्यवाद आदरणीय।
आभार , आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्र जी ! रचना ने आपको प्रभावित किया यह जानकर प्रसन्नता हुई।
अन्य रचनाकार क्या कहते हैं या क्या कहेंगे उससे मेरे रचनाकर्म में उत्तरोत्तर निखार ही होगा। सादर।
आभार और धन्यवाद आदरणीय तस्दीक अहमद जी।
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