आदरणीय साथिओ,
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आद0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। लेखन, विषय और कहन् आपको पसंद आया। लिखना सार्थक हुआ। वैसे मैंने अंत मे नीड़ थोपा नहीं अपितु मेरा कथानक ही उस बात को इंगित कर रहा है। मेरे समझ से हर कोई एक समय बाद विश्राम को घर वापस आना चाहता है पर इंसान तो नकली महत्वाकांक्षा में नीड़ की ओर आना ही नहीं चाहता। यहां नीड़ का मैंने व्यापक अर्थ लिया है न् कि केवल घर, घोसला, या विश्राम स्थल।
यह लघुकथा का मेरा एक नया प्रयोग भी है
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,
वक़्त के साथ बेहतरीन विकास का संवाद करवाया मगर प्रदत्त विषय कहीं नज़र ही नहीं आ रहा । आखिर आप इस लघुकथा के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं मुझे तो समझ में ही नहीं आया । आयोजन में सहभागिता हेतु बधाई ।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। जहाँ सब कुछ साफ साफ कहा गया हो, वहाँ पर यह न् समझ मे आये कि कहना क्या चाह रहा हूँ तो सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि भाई नजरिये नजरिये का फर्क है। मैं लघुकथा में नया हो सकता हूँ, और आप जैसा इस क्षेत्र में अनुभव भले न् हो पर विषयांतर रचना भेजूँ, इतना भी अनुभहीन नहीं। खैर आपकी रचना पर उपस्थिति का शुक्रिया
सच कहा, इंसान अपने परिवेश से इतना दूर क्यों होता जा रहा है इसका सही उत्तर शायद कोई नहीं जानता. समय के साथ गांव की यह गुफ्तगू बहुत अच्छी बन पड़ी है. गाँव शायद आज भी अपने परिंदों की आशा लगाये बैठा है. प्रदत्त विषय को परिभाषित करने का यह अनूठा ढंग बेहद पसंद आया भाई सुरेन्द्रनाथ सिंह जी, कथानक का नयापन भी बेहद अच्छा लगा जिस हेतु मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
यहाँ मैं एक बात और अपने साथिओं से अर्ज़ करना चाहूँगा कि प्रदत्त विषय का अर्थ यह नहीं कि उसे एक कोण से ही देखा जाए, सुन्दरता इसमें है कि 360 डिग्री के कोण वाली सोच आपनाई जानी चाहिए, शब्दों की बजाय विषय के भाव को आत्मसात करना अधिक महत्वपूर्ण है. किसी का घर/नीड़ में वापिस आना ही "नीड़ की और" नहीं है. किसी का इंतज़ार किसी की वापसी की कसक या किसी का नीड़ के प्रति दृष्टिकोण भी अपनी रचना में शब्दांकित किया जा सकता है.
आद0 भाई योगराज जी सादर अभिवादन। आपकी रचना पर उपस्थिति ही मेरे लिए रचना के सार्थक हो जाने के बराबर है। आपके द्वारा अनुमोदन मिला तो मेहनत भी सार्थक हुआ। आपका हृदय तल से आभार । सादर प्रणाम
विषय पर प्रकाश डालते हुए मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर सर जी।
//प्रदत्त विषय का अर्थ यह नहीं कि उसे एक कोण से ही देखा जाए, सुन्दरता इसमें है कि 360 डिग्री के कोण वाली सोच आपनाई जानी चाहिए, शब्दों की बजाय विषय के भाव को आत्मसात करना अधिक महत्वपूर्ण है.// "प्रदत्त विषय" के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर. सादर.
आदरणीय सुरेन्द्र जी हार्दिक बधाई आपको इस बेहतरीन कथा के लिए| गाँव और समय को लेकर आपने बहुत ही सुंदर तरीके से विषय पर एक सशक्त लघुकथा गढ़ी है आपने जिसके लिए साधुवाद आपको| एक अलग दृष्टीकोण, बेहद प्रभावशाली | पुनः हार्दिक बधाई आपको |
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। लघुकथा आपको पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका
विषयांतर्गत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। मेरे विचार में यदि संवाद बोलचाल वाली सरल भाषा में होते और 'मैं' के स्थान पर कोई पात्र या उसका अंतर्मन होता, तो बेहतर होता; अर्थात अंतर्मन और वक्त दोनों का मानवीकरण!
आद0 शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
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