आदरणीय साथिओ,
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पत्र शैली में प्रदत्त विषय पर क्या ख़ूब लघुकथा हुई है आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी । सादर ।
हार्दिक आभार आदरणीय सतविंद्र कुमार जी । सादर ।
पत्र लेखन में सदियों से यह झूठ प्रचलन में है सो मैंने भी बोल दिया // मुग्ध कर दिया आपकी इस पंक्ति ने . पत्र शैली में लिखी कथा तो लाजवाब है ही हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से सफल बनाने का बहुत-बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी ।
//वर्तमान जी, आशा है आप सकुशल एवं खुश होंगे, हालाँकि यह झूठ है // - बहुत गहरा तंज। सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय मोहम्मद आरीफ जी सर, इस सार्थक सृजन हेतु
लघुकथा पर प्रतिक्रिया देकर सफल बनाने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय चंद्रेश छतलानी जी ।
फ्रेंड रिक्वेस्ट
"अरे ! ये क्या , शिवी और फेसबुक पर ?"
फ्रेंड सजेशन में भाई की तस्वीर देख काज़ल ने हर्ष से उसकी प्रोफाइल खोली । सारे कजिन्स को भाई की फ्रेंड लिस्ट में देखकर वह एक पल को सकते में आ गई ।" हमारे बीच तो कोई लड़ाई - झगड़ा नहीं है फिर इसने मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट क्यों नहीं भेजी ? कोई बात नहीं , मैं ही भेज देती हूँ ।" स्वयं से कहते हुए उसकी तर्जनी माउस को दबाने ही वाली थी कि तेजी से अहम का करंट लगा और तर्जनी दूर छिटक गई ।
" क्या बात है भाई ? न न करते आखिर तू भी सोशल साइट पर आ ही गया ।मुझे तो बहुत मना किया करता था , सोशल साइट पर लोग बिगड़ जाते हैं, मैं तो कभी नहीं आऊँगा इस पर ।" राखी पर मायके जाना हुआ तो काजल ने छेड़ने के अंदाज़ में मन की भड़ास निकाल दी ।जवाब में भाई हँसकर रह गया । काजल ने पूछना तो बहुत चाहा " क्यों रे शिवी ! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है जो तूने अभी तक मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेजी ? परन्तु पुनः अहम ने प्रतिहारी बन शब्दों को कंठ से ही वापस लौटने का आदेश दे दिया ।
दो वर्ष गुज़र गये । काजल के भीतर ये बात फाँस की तरह चुभी हुई थी । जब भी मित्रता का नोटिफिकेशन देखती पुलकित हो जाती लेकिन अगले पल मायूसी छा जाती ।उसका अहम समय के साथ सिमेंटेड हो चुका था ।
टप...टप...हाथों पर गर्म बूँदें गिरीं तो आँखों की धुंध छँट गई ।कम्प्यूटर स्क्रीन पर शिवी की मुस्कुराती तस्वीर सामने थी ।काजल ने एक दृष्टि ऊपर दीवार पर परसों टाँगी माला चढ़ी तस्वीर पर डाली फिर कर्सर को "एड फ्रेंड" पर स्थिर कर तर्जनी से माउस को दबा दिया और टेबिल पर औंधा सिर कर फफक कर रो पड़ी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
इतिहस गवाह है कि ये अहं व वहं कितना दुखी करते है।समझदारी पर निर्भर करता है कि आज मे ही जिये,बधाई कथा के लिये आद० शशि बंसल जी ।
रचना पर उपस्थित होकर बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने हेतु हृदय से आभार आद0 नीता कसार जी ।
प्रदत्त विषय को समसामयिक सोशल मीडिया का आयाम देते हुए बहुत बढ़िया भावपूर्ण विचारोत्तेजक और समसामयिक महत्वपूर्ण संदेश वाहक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया शशि बंसल जी।
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