आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया संगीता गांधी जी आदाब,
बहुत ही उम्दा लघुकथा ।प्रदत्त विषय का सही प्रवर्तन करती लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ संगीता गाँधी जी।बेहतरीन लघुकथा।बहुत सुंदर संदेश के साथ कटाक्ष पूर्ण प्रस्तुति।
शीर्षक आधारित उम्दा कथाके लिये बधाई आद० संगीता गांधी जी ।
बढ़िया कथा हुई है आदरणीया संगीता जी| हार्दिक बधाई |
फिर से
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-फिर क्या हुआ?
-होता क्या?उसने दूसरी बीबी रख ली।
-बस ऐसे ही?
-और क्या?फिर मैं मायके आ गयी।
-.....पर सच कहना पाप तो नहीं है,काली।
-सच है बाली।पर सच कटु होता है न, बरदाश्त के बाहर....है कि नहीं?
-सो तो है।
-पराई नारी-प्रसंग का बखान,वह भी सगी पत्नी के मुँह से,कितने मर्द बरदास्त करेंगे?...बोली तो।
-सो तो है।
-छोड़ी भी यह सब।अपनी कहो।
-उसके दिल में शायद कोई दूसरा देवता बस था।किंचित अभी शादी करना भी नहीं चाहती थी।
-और घरवालों ने जल्दी कर दी।यही न?
-सही समझ तूने काली।
-फिर?
-बच्ची हो जाने और कहाँ वह कुछ स्थिर होती,और ही चंचल-मन होने लगी।दिमाग से पैदल हो गयी।
-फिर?
-फिर क्या ?तब तो हद ही हो गयी,जब बच्ची को लेकर वह घर से निकल गयी।
--और अब?
-बगल में फुआ के घर पर थी।घर लायी गयी।फिर इसके मायकेवाले ले गए।सारी दवाएँ भी अब उन लोगों ने छुड़वा दी हैं।हमें मिलने भी नहीं देते।
-बच्ची?
-माँ के पास दिल्ली में है।दादी को ही माँ मानती है।
-हमारे नियम भी एकतरफा हैं।लड़कीवालों के पक्ष में ज्यादा मजबूत हैं वे सब।और लंबे इतने कि जिंदगी लग जाये,इंसाफ की आस में।
-पर क्या करेंगे?नियम नियम हैं।बस पालन करना है हमें।
-तोड़ तो सकते हैं न?
-वह सब मजबूत लोग करते हैं।
-हम हैं।
-क्या?
-मजबूत।
काली ने बाली के गले में बाजूहार पहना दिया।
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जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,मुझे तो ये लघुकथा प्रदत्त विषय अनुरूप नहीं लगी,शिल्प भी कमजोर है,कथानक भी उलझा ह् है, "वह भी सगी पत्नि के मुंह से" क्या सौतेली पत्नि भी होती है?बहरहाल आयोजन में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।
आदरणीय समर जी,मैं भी महसूस कर रहा हूँ ,ऑफिस जाने में ट्रेन की लिखाई भला कैसी होगी।भाषा के साथ न्याय नहीं हो पाया है जो मुझे खेदजनक प्रतीत हो रहा है।रही बात शिल्प और कथानक की तो उनके बारे में आश्वस्त हूँ।आज की ज्वलन्त समस्या क्या है .....शादी और विछोह......तलाक मिलने में लगता है शादी की उम्र निकल जाएगी।और कानून कितना किसका साथ देता है,यह किसीसे छिपा हुआ नहीं है।ऐसी स्थिति में यदि ड़ो ठुकराए हुए ठीकरे एक घर की दीवार बनना चाहते हैं,तो कथा का विषय बन जाते हैं,सादर।
आ० मनन कुमार सिंह जी. संवादात्मक शैली में कही गई इस रचना के अंत में काली और बाली द्वारा समाज के विरुद्ध विद्रोह का निर्णय करना विषय दिवास्वप्न से न्याय कर रहा है. लेकिन इस रचना का कथ्य बहुत उलझा हुआ है, जिसकी वजह से कथा कई बार पढ़कर समझ आई. इसका संज्ञान लें और मेरी बधाई स्वीकार करें.
वस्तुतः जल्दीबाजी का नतीजा कुछ विचित्र हो जाता है।ट्रेन,मोबाइल और लिखाई में क्या गुल खिला,अब पता चला।भाषागत त्रुटियाँ स्पष्ट हैं।कथा दुबारा लिखे जाने का आग्रह कर रही है।हाँ, इसकी जड़ में एक विकट और जटिल घटना है जिसके चलते जटिलता इस लघु कथा में रच-बस गयी है।आपके स्नेहिल उद्गार के लिए आपका सादर आभार।
परिमार्जित रूप में लघु कहा,यदि स्वीकृति हो तो
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फिर से
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फिर क्या हुआ?
-होता क्या?उसने दूसरी बीबी रख ली।
-बस ऐसे ही?
-और क्या?फिर मैं मायके आ गयी।
-.....पर सच कहना पाप तो नहीं है,काली।
-सच है बाली।पर सच कटु होता है न, बरदाश्त के बाहर....है कि नहीं?
-सो तो है।
-पराई नारी-प्रसंग का बखान,वह भी सगी पत्नी के मुँह से,कितने मर्द बरदास्त करेंगे?...बोलो तो।
-सो तो है।
-छोड़ी भी यह सब।अपनी कहो,बाली।
-मेरी बीबी के दिल में शायद कोई दूसरा देवता बसा था।किंचित अभी शादी करना भी नहीं चाहती थी।
-और घरवालों ने जल्दी कर दी।यही न?
-सही समझा तूने,काली।
-फिर?
-एक बच्ची हो जाने पर कहाँ वह कुछ स्थिर होती,और ही चंचल-मन होने लगी।दिमाग से पैदल हो गयी।
-फिर?
-फिर क्या ? इलाज शुरू हुआ।न्यूरो सर्जन के यहाँ भेद खुला कि शादी के पहले भी उसका इलाज चल चुका था।
-अच्छा!और तुम लोगों को उस बावत बताया नहीं गया था।
-बिलकुल नहीं।
-और आगे वह कुछ ठीक हुई, कि नहीं?
-वही कभी कुछ ठीक लगती,कभी वही हाल। तब तो हद ही हो गयी,जब बच्ची को लेकर वह घर से निकल गयी।
--और अब?
-बगल में फुआ के घर पर थी।घर लायी गयी।फिर इसके मायकेवाले ले गए।सारी दवाएँ भी अब उन लोगों ने छुड़वा दी हैं।हमें मिलने भी नहीं देते।
-बच्ची?
-माँ के पास दिल्ली में है।दादी को ही माँ मानती है।
-हमारे नियम भी एकतरफा हैं।लड़कीवालों के पक्ष में ज्यादा मजबूत हैं वे सब।और लंबे इतने कि जिंदगी लग जाये,इंसाफ की आस में।
-पर क्या करेंगे?नियम नियम हैं।बस पालन करना हमें',बाली बोला।
-तोड़ तो सकते हैं न?
-वह सब मजबूत लोग करते हैं।
-हम हैं।
-क्या?
-मजबूत।
काली ने बाली के गले में बाजूहार पहना दिया।
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संवादात्मक शैली में लिखी कथा में संवाद आपस में उलझ गये है।जल्दबाज़ी में एेसा हो जाता है ।बधाई कथा के लिये आद० मनन कुमार सिंह जी ।
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