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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 35" में प्रस्तुत सभी गज़लें, चिन्हित मिसरों के साथ ...

ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) 

मेरे हक़ में जो फ़ैसला लाया

नामे आमाल का लिखा लाया

 

मैं तेरे दर पे और क्या लाया

लब पे बस हरफे मुददआ लाया

 

इतनी ताक़त कहाँ जो हम आते

सामने तेरे हौसला लाया

 

जो तेरा ग़म है मेरे सीने में

मेरे जीने का आसरा लाया

 

ज़ुल्म सहता रहा ज़माने के

लब पे न हरफे बददुआ लाया

 

डूबते किस तरह समंदर में

न ख़ुदा जब मुझे बचा लाया

 

मुझको उम्मीद कुछ न थी जिससे

बस वही दर्द कुछ सिवा लाया

 

रिज़क देता है जब ख़ुदा सबको

क्यूँ न महमान को मना लाया

 

अच्छा चलते हैं फीअमान अल्लाह

फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया

 

यूँ तो जुगनू बहुत थे "गुलशन" में

हां मगर रोशनी दीया लाया

_____________________________________________________________

Mohd Nayab

ज़ख़्म खा कर ना पूछ क्या लाया 

जब कोई जानो दिल बचा लाया 

उन का कहना था मैं ना आऊंगा 
इश्क़ लेकिन मेरा बुला लाया

भूंख इतनी बढ़ी की वो मज़लूम 
कुछ सज़र से समर हिला लाया 

जा रहा है वो अलविदा कह कर
जो था जीने का फलसफा लाया

झूठ मकरो फरेब दुनिया के 
ख्वाहिशें आदमी भी क्या लाया

ज़ुल्म इतना हुआ की वो मज़लूम 
लब पे शिक़वा ना कुछ गिला लाया

जा रहे हैं तुम्हारी महफ़िल से 
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

मेरे हक़ मे वो आज भी "नायाब" 
कुछ दुआओं से भी सिवा लाया

______________________________________________________________________________

Saurabh Pandey 

 

 

गाँव जा कर ज़वाब क्या लाया ?
जी रही लाश थी, उठा लाया !

 

उन उमीदों भरे ओसारों को
पत्थरों के मकां दिखा लाया ॥

 

’तू मुझे माफ़ कर, अग़र चाहे..’

कह के संदर्भ फिर बचा लाया ॥

 

नम निग़ाहों से क्या तसल्ली दी
उम्र भर की सज़ा लिखा लाया ॥

 

सामयिन फिर सहम लगे जुटने
शेख फ़रमान फिर नया लाया ॥

 

हसरतें रह गयीं कई.. लेकिन

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ॥

 

ज़िन्दग़ी फिर रही न वो ’सौरभ’
प्रश्न थे मौन जो जुटा लाया ॥
___________________________________________________________________________

Tilak Raj Kapoor 

१.

नींद से क्यूँ हमें उठा लाया।
सोचकर क्या‍ नया खुदा लाया

 

जि़न्देगी में हसीन लम्हों के
ख़्वाब नादान दिल सजा लाया।

 

चाह लेकर चला मुहब्बलत की
दर्द का आस्माँ उठा लाया।

 

दर्द की इंतिहा निभाने को
सब्र बेइंतिहा लिखा लाया।

 

जानता था ज़रूरतें मेरी
वो मेरे वास्ते दुआ लाया।

 

रूह अनहद में खो गयी मेरी
मस्तियॉं जब मेरा पिया लाया।

 

खुल गये बादबाँ, खुदा हाफि़ज़
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।

 

२.

सूर्य कुहसार से उठा लाया
जीस्‍त में दिन नया लिखा लाया।

 

धूप पगडंडियों पे पसरी थी
छॉंव मैं घर तलक बचा लाया।

 

दूब की नर्म-नर्म चादर से
ओस की बूँद इक उठा लाया।

 

चॉंद बादल में मुस्‍कराता है

नींद किसकी कहो चुरा लाया।

 

कोई शिकवा गिला नहीं तुमसे
वक्‍त बदली हुई हवा लाया।

 

कल्‍पना ने उड़ान मॉंगी थी
ईद के चॉंद तक उड़ा लाया।

 

झील भरती दिखी तो वो बोला
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।

____________________________________________________________________

Dinesh Kumar khurshid

 

उसकी खुश्बू को तू उड़ा लाया
क्या मरज़ की मेरे दवा लाया


इक तख़य्युल ही बावे अक़्दस का
शअफ-ए-हिज्र की हवा लाया


चेहरे रोशन हुए की महफ़िल में
वह नए रंग की ज़िया लाया

गुन्चा गुन्चा महक उठा दिल का
जाने किस बाग की हवा लाया


उसके होठो पे अब सदाक़त है
किन बुजर्गों से तू मिला लाया


खैर है ज़ुल्मतों की बस्ती से
अपना ईमान मैं बचा लाया


राह पुरनूर हो गयी मेरी
जब वह जलता हुआ दिया लाया

जा रहे है वतन की सरहद पर
फिर मिलेंगे अगर खुद लाया


है उम्मीदों की रोशनी घर घर
देख 'खुर्शीद' आज क्या लाया

______________________________________________________

अरुन शर्मा 'अनन्त'

१.
प्यार का रोग दिल लगा लाया,
दर्द तकलीफ भी बढ़ा लाया,


याद में डूब मैं सनम खुद को,
रात भर नींद में जगा लाया,


तुम ही से जिंदगी दिवाने की,
साथ मरने तलक लिखा लाया,

चाँद तारों के शहर में तुमसे,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,


तेरी अँखियों से लूट कर काजल,
मेघा घनघोर है घटा लाया.

 

२. 

जुल्म धोखाधड़ी नशा लाया,

वक्त बर्बादियाँ उठा लाया,


तीर तलवार से नज़र पैनी,
भीड़ में भेड़िया लगा लाया,


दौर बदला बदल गई दुनिया,
भेषभूषा अलग बना लाया,


मान सम्मान भूल कर बेटा,
शीश माँ बाप का झुका लाया,

 

बाद बरसों इसी मुहल्ले में

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,

 

शबनमी होंठों का नशा खुद को,
रूह की चाह तक पिला लाया..

____________________________________________________________

कल्पना रामानी 

 

उनका ख़त आज डाकिया लाया।
फिर से भूला, हुआ पता लाया।

 

बाद मुद्दत के गुल खिला, फिर से,
फिर से सावन, घनी घटा, लाया।

 

चाँद मुझको, दिखा अमावस में,
चाँदनी को भी सँग छिपा लाया।

 

छा गए रंग फिर उमंगों के,
शुष्क मौसम, नई हवा लाया।

 

जाते-जाते वे कह गए थे मुझे,
‘फिर मिलेंगे, अगर खुदा लाया’।

 

मेरा हर शे’र गूँजकर शायद,
उनको इक बार फिर बुला लाया।

 

दर्द इतना कभी न था दिल में,
दिल कहाँ से ये ‘कल्पना’ लाया।

___________________________________________________________________

बृजेश नीरज

१.
इस जगह कौन रास्ता लाया
भीड़ में क्यूं मुझे लिवा लाया


बेख़बर ढूंढते किरन कोई
रात की, दिन ये इंतिहा लाया

 

गांव की हो गयी गली सूनी
शहर की भीड़ जब बुला लाया

 

लापता मंजिलें लगीं होने
कौन सा ख्वाब मैं उठा लाया

 

अब चलूं रूक गया बहुत दिन मैं
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

२.

खूब धन देखिए कमा लाया
साथ कितनी वो बद्दुआ लाया

 

काफिले छूट ही गए पीछे
कर्म तेरा वो जलजला लाया

 

फूस बिस्तर बना के लेटे थे
पास में चूल्हा जला लाया

 

धूप का साथ काफिला तेरे
पेड़ सारे तो तू कटा लाया

 

पीर पर्वत हुई तो क्या गम है
ढूंढकर फिर नई दवा लाया

 

बुलबुले सी ये जिंदगी ढोते
प्यार का कौन सिलसिला लाया

 

चांद उतरा जमीं कि तू आया
इस उमस में भी तू सबा लाया

 

इक सुबह की तलाश है जारी
रात ढेरों दिये सजा लाया

 

वो शमा जल के बुझ गयी होगी
वक्त ऐसी यहां हवा लाया

 

अब यहां रूक के हम करेंगे क्या
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

राम को अब किधर भला ढूंढूं
दिल में केवट उसे छुपा लाया

___________________________________________________

Abhinav Arun

१.

ये तरक्की के नाम क्या लाया,

खूबसूरत सा झुनझुना लाया ।

 

थीं नुमाइश में सूलियां सस्तीं ,
एक अपने लिए उठा लाया ।

 

छोड़ माँ बाप की चरण रज क्यों,

कैसिटों में भरी दुआ लाया ।

 

शह्र-ए-उर्दू में खूब घूमा मैं,
गालिबो मीर का पता लाया ।

 

हमको टी.वी. से ये शिकायत है,
साथ अपने ये क्या हवा लाया ।

 

दोस्तों से मिलूँ ये मन था पर ,
फोन बेटा मेरा उठा लाया ।

 

तकलियाँ नाचती मिलीं मुझको ,
प्रेम का सूत मैं कता लाया ।

 

दिल को गहरा सुकून मिलता है
माँ को मंदिर तलक घुमा लाया ।

 

ओबीओ वालों चलिए हल्द्वानी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।

 

२.

कोई दौलत न कुछ कमा लाया ,
पाँव माँ के छुए दुआ लाया ।


जब कभी मैं मिला मुझे तनहा ,
बाग़ से तितलियाँ उड़ा लाया ।


शह्र में कुछ न था कमाने को ,
गाँव की मस्तियाँ लुटा लाया ।

 

भीड़ में सिर्फ थे तमाशाई ,
लाश अपनी मैं खुद उठा लाया ।


शील आदर्श और मर्यादा
छोड़ , देने मुझे दगा लाया ।

आज नीलाम हो रहे बापू ,
या खुदा वक़्त क्या बुरा लाया ।


बागबाँ की नज़र गुलों पर थी ,
खुशबुओं को पवन उड़ा लाया ।


फूल टूटे तो तितलियों से कहा ,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।


इश्क रूहानियत का है जज्बा ,
इश्क अल्लाह का पता लाया ।

_________________________________________________________________

 

Kewal Prasad

 

अब कयामत भुला वफा लाया।

सब कहेंगे गजब अदा लाया।।

 

जब भी रहमत समझ जला शम्मा।

आंख का-जल हुआ दुआ लाया।।

 

हम न भूले कभी अदावत को।

जब कभी भी ये गमजदा लाया।।

 

तेरी कद से बड़ी जवानी है।

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।।

 

तेरी चौखट सुबह मिले ‘सत्यम‘।
शाम ढलते दगा कजा लाया।।

____________________________________________________________________

arun kumar nigam

१.
मुझसे मत पूछिये कि क्या लाया
पालकी प्यार की सजा लाया |


जागता है मेरी तरह अब वो
नींद आँखों से ही चुरा लाया |

उसने पूछा कि चाँद कैसा है
आइना बस उसे दिखा लाया |


स्वर्ग होता कहाँ , बताना था
गाँव अपना जरा घुमा लाया |


गम नहीं है हमें जुदाई का
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया |

 

२.

सिर्फ पानी का बुलबुला लाया
इस से ज्यादा बता दे क्या लाया |


लूटता ही रहा जमाने को
नाम कितना अरे कमा लाया |


कोसता है किसे बुढ़ापे में
वक़्त तूने ही खुद बुरा लाया |


तू अकेला चला जमाने से
क्यों नहीं संग काफिला लाया |


लोग कह ना सके तुझे दिल से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया |

_______________________________________________________________________________

 

HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI
कैसा मुनसिफ़ ये फ़ैसला लाया
हक़ मे मज़लूम के सज़ा लाया

 

गर्क दरिया में हो गया कोई
तह से मोती कोई उठा लाया

 

दोस्त अपना समझ रहा था जिसे
खनज़रे ज़ुल्म वो छुपा लाया

 

कोर चश्मो की आग बस्ती में
बेंचने कौन आईना लाया

 

हार बैठा है ज़िंदगी कोई
कोई जीने का हौसला लाया

 

छोड़ कर जा रहे तो हैं लेकिन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

मेरी परवाज़ का हुनर "मसऊद"
मेरे अश्आर मे जिला लाया

_____________________________________________________________________________

 

गीतिका 'वेदिका'


तूने पूछा था संग क्या लाया
ले मेरा दिल तुझे वफा लाया

 

हम तो जीते ही रहते जकडन में
कौन ये बेडिया छुड़ा लाया

 

घाव नासूर बनता पहले के
मेरा दिलदार इक दवा लाया

 

है बिछड़ना कि मेरी मजबूरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया


बीच अपने नहीं बचा कुछ भी
क्यू तू दिलदार बेवफ़ा लाया


गीत ये वेदना भरा साथी
नाम ये वेदिका रखा लाया
__________________________________________________________________________

 

shashi purwar

१.

दिल का पैगाम साहिबा लाया
छंद भावो के फिर सजा लाया।


बात दिल की कही अदा से यूँ
प्यार उनका मुझे लुभा लाया।


आज कैसी हवा चली मन में
तार दिल में कई बजा लाया।


नियति का खेल जब करे सृजन
ये कहाँ प्यार में सजा लाया।

 

सात वचनों जुडा था ये बंधन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।

प्यार मरता नहीं कभी दिल में
याद तेरी सदा जिला लाया।


धूप में जल रहे ज़माने की
याद उनकी नर्म दवा लाया।


कल्पना में सदा रहोगे तुम
रात ये चाँद से हवा लाया।


आज जीने का रास्ता देखा
चाँद उनसे मुझे मिला लाया।

 

२.

 

फूल राहों खिला उठा लाया
नाम अपना दिया जिला लाया


भीड़ जलने लगी बिना कारण
बात काँटों भरी विदा लाया


लुट रही थी शमा तमस में फिर
रौशनी का दिया बना लाया


शर्म आती नहीं लुटेरों को
पाठ हित का उसे पढ़ा लाया


बैर की आग जब जली दिल में
आज घर वो अपना जला लाया


गिर गया मनुज आज फिर कितना
नार को कोख में मिटा लाया

 

प्यार से सींचा फिर जिसे मैंने
उसका घर आज मै बसा लाया


खुश रहे वो सदा दुआ मेरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .

____________________________________________________________________

 

Ashok Kumar Raktale
कौन बोलो तुम्हे बुला लाया |
घर दुआरा सभी छुडा लाया ||

 

है बडा शोर जानता हूँ मैं |
जान लो तुम जहाँ भुला लाया ||


लोग बदनाम से यहाँ सारे |
जानकर भी तुम्हे उठा लाया ||

भूल जाना मुझे मिला था मैं |
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ||


जानते हो ‘अशोक ‘खुश क्यों है |
जान उसकी वही बचा लाया ||

 

मांग कर भी हुई न थी हासिल |
मौत लेकर कोई पता लाया ||

_____________________________________

आशीष नैथानी 'सलिल' 

 

शहर हर रोज हादिसा लाया
जान अपनी मैं फिर बचा लाया ॥

 

मुफलिसी में कभी बिके कंगन
आज बाजार से उठा लाया ||

 

ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥

 

और थोड़ी सी बढ़ गयी साँसें
एक बच्चे को मैं घुमा लाया ||

 

देखकर फेर दी नजर उसने
वक़्त कैसा ये, फासला लाया ||

 

लाख कोशिश करो बिछुड़ने की

"फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया" ||


रात चुप थी, सितारे भी गुमशुम
चाँद जलती हुई शमा लाया ॥

__________________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल
जीत कर वो क्या नशा लाया
भीड़ में तन्हा की सजा लाया

 

राह में जो मिटा गया मुझको

याद में फिर सदा बुला लाया

 

वो न मेरा, केसे कहूँ उसको
दिल के बीमार की दवा लाया

 

ऐ ! जनाजे जरा बता मुझको
तुम जलाने मेरी खता लाया

 

पाँव छुए माँ सदा दुआ निकली
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

घर बगीची में फूल थे उसके ,
हाथ पत्थर मगर उठा लाया |

_________________________________________________________________________

 

ram shiromani pathak 

 

प्यार उनका मुझे बुला लाया

साथ जीने का मन बना लाया

 

बेच डाला है रूह को अपने
रोग चाहत का यूँ लगा लाया !


आंधियों से कभी ना समझौता
आग मै अब तलक बचा लाया !

है मुझे इंतज़ार तुम्हारा 
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया !


तीरगी से ना डरा करो भाई 
देख जुगनू ने भी डरा लाया !

भूख से रो रहा था जो बच्चा
आज मैंने उसे खिला लाया !


मार पत्थर की पड़ रही फिर भी
देख लो अपना सर बचा लाया!

_________________________________________________________________________________

 

SANDEEP KUMAR PATEL 

1.
गाँव की ख़ाक जो उठा लाया
वो मेरे वास्ते दवा लाया

 

वो लुटाने चला था दिल लेकिन
और कितने ही दिल चुरा लाया

 

दिल लगाना ही खेल उसका है
क्‍या गज़ब हौसला लिखा लाया

 

आज पतझड़ है कल बहारों में
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

जालसाजी फरेब बेअदबी
शह्र से किसलिये कमा लाया

 

पत्थरों के शहर से आईना भी
बुत बने रहने की अदा लाया

 

गर्दिशें रूठने लगीं हमसे
“दीप” तू रौशनी ये क्या लाया

 

2.

उसको आँखों में फिर बसा लाया

जख्म सूखा था फिर हरा लाया

 

दर्दे दिल, इंतज़ार, बेदारी
इश्क कैसा ये जलजला लाया

 

जब यकीं था तो कुर्बतों में रहे
शक तो बस फासला खला लाया

 

गम में आया शरीक होने को

साथ में काफिला बड़ा लाया

 

दोस्त मत हो उदास जाते वख्त 
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

है पुराना ख्याल ये लेकिन

मैं अभी काफिया नया लाया

 

न कभी शह्र ही घुमाया जिसे
ख्वाब में चाँद तक घुमा लाया

 

आज खाना मिला था कूड़े में
जिससे आधा वो घर बचा लाया

 

जब चकाचौंध जुगनुओं से है
“दीप” ये कौन फिर जला लाया

___________________________________________________________________

 

Shijju S.

 

आशिक़ी के तुफ़ैल ये क्या लाया

सोज़ को ताबे दिल बना लाया

 

राह तारीक रात काली थी
हौसलों से जली शमा लाया

 

हुस्न अफ़्ज़ाई के लिये तेरी

इश्क से पैरहन सजा लाया

 

ज़िन्दगी की तलाश जाँ को थी
जाँसिपार खुद को बना लाया

आखिरी शाम देख लूँ, तुझको
इसलिये मैं नज़र बचा लाया

शाइरों के जहाँ में बेसाख़्ता
खींच के ये मुशायरा लाया

 

जा-ए वस्लो फ़िराक़ में ''तनहा''
''फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया''

_____________________________________________________________________________

 

Satyanarayan Shivram Singh


यार फिर आज दिल चुरा लाया।
खास अपना समझ उठा लाया।


यार की थी मगर खता इतनी।
प्यार का मर्ज दिल लगा लाया।

रंज बाकी नहीं बचा दिल में

सादगी से उसे लुभा लाया।

 

नर्म आँखें यही दुवा चाहें।
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।


बात दिल की मगर जुबां बोले।
प्यार का आसरा जिला लाया।

__________________________________________________________________________

 

sanju singh 

 

मेरे महबूब तू ये क्या लाया ,
दिले -बीमार की दवा लाया .

 

उसे तो बख्श दी जहाने-ख़ुशी

मेरी किस्मत में क्यूँ फ़ना लाया

 

शाम ढलते ही दिल उदास हुआ ,

मेरे दिल क्यूँ ये सिलसिला लाया

.

चाँद फिर उग रहा है आँगन में ,
मेरे घर में कोई वफ़ा लाया .

 

राह तकती रही मैं मरने तक ,
फिर वही कब्र पे अना लाया .

 

हमने भी कह दिया ख़ुदा-हाफिज़,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .

___________________________________________________________________________

 

VISHAAL CHARCHCHIT

ये मेरे मर्ज की दवा लाया

वो कई मुद्दई बुला लाया

 

हमने सोचा न था कभी इतना
जितने तोहफे तू ये उठा लाया

 

ख्वाब था तुझसे रोशनी होगी
तू तो आया दिया बुझा लाया

 

खैर अब जा रहे यहां से हम
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

 

चैन अब भी नहीं तुम्हें चर्चित
दिल ये कितना तुम्हें घुमा लाया

 

______________________________________________________________________________

 

Dr.Prachi Singh . 

 

याद का अनथका सिला लाया
प्यार तेरा मुझे कहाँ लाया 

तोहफ़े रौंदते हैं रिश्तों को
संग लब पे तभी दुआ लाया

 

वो निगाहों से क़त्ल करने की
आज अपनी वही अदा लाया

 

हो गये अजनबी यहाँ खुद से
वक़्त टूटा सा आईना लाया

 

रुखसती यों हुई है मर्जी से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

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Replies to This Discussion

वाह,राणा भाई,इस तेज़ी के सदके.सभी को शुभकामनाएं !

सभी चिन्हित गजलें पथ प्रदर्शक का कार्य करती हैं, एक जगह होना अति सुविधाजनक है.आपके इस त्वरित सुन्दर कर्म के लिए कोटि कोटि आभार.

कल रात शीघ्र ऑफ़-लाइन हुआ था. और आज सुबह जो देख रहा हूँ उससे अपने सहयोगियों पर गर्व हो रहा है. भाई राणा जी आपके संकलन पर बार-बार बधाई.

इस बार लाल रंग के मिसरे पिछले आयोजन की अपेक्षा तो कम दिख रहे हैं लेकिन कई-कई शायरों के मिसरों को तथ्यात्मकता छलती दिखी है.  कारण बिला शक़ ’तरह’ का रदीफ़ है. इस ’लाया’ रदीफ़ पर सामान्य ढंग से मिसरे नहीं आयेंगे, यह तय था. और यही हुआ भी है. शेर हुए हैं, यह ठीक है, लेकिन शेरों के होने में कितनी मशक्कत हुई है यह पता भी चलता है. कई-कई शायरों के साथ सावधानी हटी, दुर्घटना घटी वाली बात हुई है.

इस हाइ-स्पीड प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक साधुवाद

आदरणीय यदि थोडा समय लेकर उन दुर्घटनाओं पर , उनकी वजह पर मार्गदर्शन भी जानकार जन दे दिया करें तो आगे से ऐसा नहीं होगा या कम तो ज़रूर होगा ! मैं जिन वजहों का पता चला है उन्हें समझ कर अगली बार दूर करने का प्रयास करूंगा ! सादर !!

जी सौरभ जी लाल रंग कम दिखने से बड़ा सुकून सा लग रहा है :) वाकई अब ऐसा लग रहा है यह मंच पहले क्यूँ नहीं मिला , यहाँ आकर हम बाकी सब भूल गए और इस खेल में आनंद आने लगा .बचपन में जैसे परीक्षा की तयारी करते थे ,आज रिजल्ट को लेकर आनंद लेते है , यह हवा वाकई बेहद नशीली है . इस लेखन का नशा उतरता नहीं , पर अच्छा है

आदरणीया शशिजी, आपको यह ’खेल’ ’मज़ेदार’ या ’नशीला’ लग रहा है यह जान कर हमें तो दिली संतोष हुआ है. ईश्वर आपकी सकारात्कता को ऐसे ही अदम्य बनाये रखे.  लेकिन आपसे साझा करूँ .. तो कई भैंसे (भैंसा के पुल्लिंग) अपने सिंघ कटा कर पड़रू बने फिरते हैं और टोकने पर तुनक कर बिफर जाते हैं कि मेरी भैंस (ग़ज़ल) को डंडा क्यों मारा.. !!

:-)))

हा हा हा ..ऐसा करने से तो भैंस पानी में गयी फिर :))))) .
वैसे मेरी यह सोच है की रचनाकार को सकारात्मक ही होना चाहिए , जहाँ अहम् भाव आया , कलम  भी गयी पानी पानी में :) नरमता तो रचनाकार के लिए अत्यंत जरूरी है , फिर हर बात के दोनों पहलू  होते है , हमें तो वैसे भी पढने का नशा है और हम तो उम्र भर विद्यार्थी रहेंगे , तो क्या कहते है आप भैस तैर गयी पानी में :) हा हाहा

आदरणीय सौरभ भाई जी एवम् आदरेया शशि पुरवार जी, वार्तालाप में भैंस के मुहावरों का सुंदर प्रयोग हुआ है.........

काला  अक्षर  भैंस  बराबर

खुद को खुद ही करे उजागर ||

अब ऐसे भी लोग होते हैं जो सोचते हैं कि अपनी दीवार गिरे तो गिरे, पड़ोसी की भैंस मरना ही चाहिये, अब ऐसों  समझाना माने

भैंस के आगे बीन बजाये

भैंस खड़ी पगुराये..........................

:))) ha ha ha  अरुण जी भैंस की तो अब निकल पड़ी भैया .

मैं बता नहीं सकता आप लोगों की सकारात्मक अनुमोदन ने कितना आनन्दित किया है. ईश्वर मंच की यह सकारात्मकता बनाये रखे. यही अपना अभीष्ट हो.

शुभ-शुभ

 सौरभ जी तथाअस्तु .............. :)) ईश्वर ने आपकी सुन ली ...... जहाँ हम सभी मित्र आपस में चर्चा करेंगे सकारात्मकता सभी तक पहुच जाएगी और वे खीचें चले आयेंगे  :)) अति शुभ शुभ ही  होगा .

मंच की सकारात्मकता बनी रहेगी आदरणीय.................यह पारिवारिक आनंद है, अक्षुण्ण ही रहेगा............

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11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
yesterday

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