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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-40 (विषय: दृष्टि)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-40 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गोष्ठी के पिछले 39 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव में हर्ष का विषय हैI पिछले कुछ आयोजनों में हमारे वरिष्ठ साथिओं की लगातार अनुपस्थिति हालाकि पीड़ादायक रही है. फिर भी हमारे लघुकथाकार अनवरत उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. और बहुत से साथी उन पर सार्थक चर्चा भी कर रहे हैं जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन भी हो रहा है. बहरहाल, इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-40
"विषय: "दृष्टि" 
अवधि : 30-07-2018  से 31-07-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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रचना पर आपकी भाव-भीनी उपस्थिति और गहन दृष्टि के लिये हार्दिक आभार भाई शहज़ाद उस्मानी जी।  रचना को आफिस में बैठ कर फाइनल किया और पोस्ट करते समय ही शीर्षक तय किया। बाद में ध्यान दिया कि त्रुटिवश आउटलुक शब्द के साथ 'एन'  की जगह 'ए' लिखा गया। रचना पर मुक्कमल ध्यान देने के लिये दिल से शुक्रिया उस्मानी भाई। सादर।

अंर्तद्वंद्व से जूझते व्‍यक्‍ित का बहुत ही सटीक चित्रण है इस लघुकथा में । मानव में मानवीयता का जिन्‍दा होना इस लघुकथा के सफल होने की मुहर लगा रहा है। काम, मन्‍िदर, आॅपरेशन, टेंशन आदि शब्‍दों को उद्धरण चिन्‍हों में देना का अर्थ समझ में नहीं आयाा इसी प्रकार

‘......’ वह चुप था।“ यहां वह चुप था लिखने की आवश्‍यकता नहीं थी खाली डॉट्स यह बात अपने आप कह रहे थे । शीर्षक के बारे में शेख उस्‍मानी जी के कथन से सहमत । बाकी लघुकथा अपने विषय को पूर्णरूपेण सार्थकता से परिभाषित करने में सफल सिद्ध हुई है, हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित हैं।

हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी।प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा।"जब आँख खुले तभी सवेरा" कहावत को चरितार्थ करती बेहतरीन प्रस्तुति।

रचना पर प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी। शुक्रिया। 

  • सर्वप्रथम रचना पर आपकी भाव भरी और विस्तृत समीक्षा के लिये दिल से आभार आदरणीय रवि भाई जी। रचना में टेंशन और ऑपरेशन शब्दो के अंग्रेजी शब्द के लिहाज से चिन्ह लगाए थे, जबकि मंदिर और काम शब्द को उनकी महत्वता दर्शाने के मकसद से चिन्ह लगाए थे। शायद साहित्यिक दृष्टि से ये उचित नहीं या शायद ये एक तरह का भृम पैदा कर रहे हैं। "..." खाली डॉट के साथ कुछ न लिखने का आपका सुझाव सुंदर है। शुक्रिया।  शीर्षक की त्रुटि के विषय मे पहले ही 'उस्मानी भाई' की टिप्पणी में लिख चुका हूं। रचना पर आपके शब्दों के लिये फिर से शुक्रिया रवि भाई। सादर। 

  • सर्वप्रथम रचना पर आपकी भाव भरी और विस्तृत समीक्षा के लिये दिल से आभार आदरणीय रवि भाई जी। रचना में टेंशन और ऑपरेशन शब्दो के अंग्रेजी शब्द के लिहाज से चिन्ह लगाए थे, जबकि मंदिर और काम शब्द को उनकी महत्वता दर्शाने के मकसद से चिन्ह लगाए थे। शायद साहित्यिक दृष्टि से ये उचित नहीं या शायद ये एक तरह का भृम पैदा कर रहे हैं। "..." खाली डॉट के साथ कुछ न लिखने का आपका सुझाव सुंदर है। शुक्रिया।  शीर्षक की त्रुटि के विषय मे पहले ही 'उस्मानी भाई' की टिप्पणी में लिख चुका हूं। रचना पर आपके शब्दों के लिये फिर से शुक्रिया रवि भाई। सादर।

आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी आदाब,

                 बहुत ही शानदार लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

आदरणीय मोहम्मद आरिफ भाई रचना पर आपकी हौसला देती टिप्पणी के लिये दिल से शुक्रिया। सादर। 

जनाब वीरेन्द्र वीर साहिब   , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

आपकी स्नेह भरी टिप्पणी के लिये दिल से शुक्रिया जनाब तस्दीक अहमद जी। सादर। 

मैं नास्तिक सही दोस्त, लेकिन इन शब्दों को मैं नकार नहीं सकता क्यूंकि ये शब्द मेरे भगवान् ने अपने आख़िरी समय में कहे थे।“ उसके चेहरे पर दर्द उभर आया।//  ईश्वर की सही पहचान अंततः हो ही गई। ... बहुत सुन्दर कथा   हार्दिक  बधाई आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी 

बहुत बढ़िया , बधाई 

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