आदरणीय साथिओ,
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गाय ही नहीं, सभी पालतू/दुधारू पालतू पशुओं के हित में आवाज़ उठाती और शुद्ध दूध उपलब्धता की उम्मीद जगाती पशु-प्रेम व सेवा की संदेश वाहक बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब। मुझे तीन बातें उल्लेखनीय लग रही हैं। पहली तो यह कि यह पूरी रचना केवल संवाद/कथोपकथन शैली में कही जा सकती है। दूसरी यह कि सामान्य प्रचलित शीर्षक के बजाए कोई नया आकर्षक शीर्षक सोचा जा सकता है पशु प्रेम/सेवा का इरादा या आह्वान संबंधित। जैसे "इज़हार-ए-हाल"। तीसरी बात यह कि गाय को पात्र रूप में लेकर इसे "मानवेतर लघुकथा" रूप में भी आप कह सकते हैं। सादर सुझाव मात्र।
जनाब विनय कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
भावुक आदमी को आजकल बुद्धू ही कहा जाता है. मुख्य पात्र का सटीक नाम रखा है आपने. निश्चल प्रेम और त्याग पर आधारित इस उम्दा लघुकथा हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय विनय कुमार जी. सादर.
प्रदत्त विषय पर सुन्दर सन्देश देती बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय कुमार जी।
आज भी गाँव में एेसे लोग मिल जाते है जिन्हैं धन,संपत्ति जमीन जायदाद से सरोकार नही होता ।उम्मीद का एक रूप एेसा भी बधाई आपको कथा के लिये आद० विनय कुमार जी ।
आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,
ग्रामीण वातावरण में लिखी गई उम्दा लघुकथा । हार्दिक बधाई ।
उम्मीद
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महेश ने सर पर तपते हुए सूरज को देखा और थक कर बैठ गया।
लगातार फावड़ा चलाने से उसकी हथेलियाँ लाल हो गई थी।पास ही उसकी पत्नी सरला दनताली से मिट्टी एकसार कर रही थी।
सूखी पड़ी धरती और सरला का मुरझाए चेहरे को देख कर महेश कहीं अंदर से टूटने लगा था।तभी सरला की नजर महेश पर पड़ती हैं जो टकटकी लगाए आसमान को तांक रहा था।
“क्या हुआ जी!का सोच रहे हो?”सरला ने कहा।
“कुछ नहीं सरला।”उदास सा होकर महेश बोला और खुदाई करने लगा।
“कैसे कुछ नहीं है जी।आपकी उदासी का मुझसे छिप जायेगी?इतनी चिंता काहे करते हैं।कुछ न कुछ तो होगा ही।”
“का होगा सरला!”सर पकड़कर नीचे बैठ गया।”देख तो रही हो।सर पर सूरज आग बरसा रहा है।धरती सूखकर फट गई।अब अगर बीज भी बो दिया तो पानी का इंतजाम….”बात अधूरी छूट गई और गला रूंध गया।
“सोचता हूँ कि धरती बेच दूँ और शहर चला जाऊं।कुछ मजदूरी ही कर लूंगा।”
“का कह रहे हैं आप यह!धरती तो नहीं बेचने दूंगी।आपके माँ बापूजी ने आपको दी थी ऐसे ही मैं भी अपने बच्चों को दूंगी और शहर में मजदूरी क्या ऐसे ही मिल जायेगी?वहाँ न घर न अपने।यहाँ कम से कम छत तो है और हमारा इस समय फर्ज है धरती में बीज बोना।उसे हम पूरा करेंगे और देखना पानी भी मिलेगा विश्वास है मुझे।”
“फालतू की उम्मीद छोड़ दें।सूखे के आसार हैं देख लेना कहीं फाके न हो जाए।”
“जब धरती माँ सीने पर घाव सहकर भी हमें नहीं छोड़ती तो मैं उम्मीद कैसे छोड़ दूँ!”
तभी उसके गाल पर एक बूंद गिरी।उसने ऊपर देखा।आसमान में काले बादल उसकी उम्मीद बरसा रहे थे।
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दिव्या राकेश शर्मा।
सम्मानीय लेखिका महोदय, किसान के दुःख, दर्द, चिंताएं और माटी से जुड़े परिवेश पर अच्छी लघुकथा है। लेखकीय धर्म निभाने के लिए आपको बहुत बधाई। धन्यवाद कि जो किसान आज महसूस कर रहे हैं पर लिख नहीं पा रहे हैं उसे आपने अपनी कलम से ताकत देने का प्रयास किया है। लघुकथा की व्याकरण संबंधी जानकारी तो आपको आदरणीय प्रधान संपादक महोदय देंगे, लेकिन इतना अवश्य बता दें कि आपने दिल को छूने वाली लघुकथा लिखी है। आज किसान आत्महत्या को विवश है खेती की जमीनें समाप्त हो रही हैं भूमि की उर्वरता कम हो रही है उससे हमारा मन भी व्यथित है। आपने लेखक विरादरी का भी मान रखा है। एक निवेदन है क्योंकि नियम है अंत में नाम की जगह मौलिक, अप्रकाशित लिखना होता है। हम उम्मीद विषय पर केन्द्रित लघुकथा गोष्ठी में उम्मीद करते हैं कि आप अपनी सक्रियता बनाये रखेंगे और बनाये गए नियमों का सभी पालन करें इसके लिए आप भी नियम फॉलो करेंगे। आपको पहली बार पढ़ रहे हैं। स्थानीय भाषाशैली का उपयोग करते हुए आपने लघुकथा में ये भी बताने का सार्थक प्रयास किया है कि आप देश के उस सबसे पिछड़े क्षेत्र की बात कर रहे हैं जहां आज भी सिंचाई सुविधाओं का अभाव है दबे-छिपे भाव में आपकी लघुकथा एक प्रश्न भी पूछती दिख रही है कि क्या आजादी के 71 सालों बाद भी हम हमारी अर्थव्यवस्था के मुख्य स्त्रोत को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाए हैं??ं???? तो क्या कारण हैं इसके लेकर पुरजोर आवाज क्यों नहीं उठाई गई, क्या सिर्फ इस चक्की में गरीब किसान पिस रहे हैं इस लिए खेती लाभ का व्यवसाय नहीं बन सकी?? आपको धन्यवाद
आदरणीय आशीष श्रीवास्तव सर
आपका आभार मेरी लघुकथा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए।
आदरणीया दिव्या जी, किसान की उम्मीद को पूर्णता प्रदान करती प्रवाहपूर्ण संवादों से सजी बहुत ही सुन्दर लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई.
आदरणीया अनीता जी ,आपका हृदय से आभार मेरी लघुकथा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए।
बहुत भावपूर्ण और प्रभावशाली रचना विषय पर, आज की हक़ीक़त के आस पास है यह रचना. बहुत बहुत बधाई आ दिव्या राकेश शर्मा जी
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