आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
उम्दा और सन्देशप्रद लघुकथा है आदरणीय डॉ. कुमार सम्भव जोशी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरणीय कुमार सम्भव जोशी जी, बहुत ही बढ़िया सन्देश देती सूंदर लघुकथा की प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय कुमार संभव जी आदाब,
प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा । हार्दिक बधाइयाँ ।
पिता की सीख
ट्रेन में दो अपंग बच्चे घसिटते हुए यात्री परिवार की सीट के पास आकर गिड़गिड़ाने लगे,
‘‘ कुछ खाने को दे दो साब !’’
यात्री परिवार के खाना खा रहे दोनों बच्चे उन्हें अपने अपने पास से कुछ देने लगे तो पिता ने रोकते हुए कहा,
‘‘नहीं, नहीं, रुक जाओ’’
‘‘क्यों ? वे दोनों भूखे हैं, असहाय हैं ’’ बच्चों ने तर्क दिया।
‘‘ लेकिन बेटा ! उन्हें भगवान ने ही इस प्रकार का बनाया है, वही उनकी सब व्यवस्था बनाते हैं। इतना ही नहीं, सारे संसार में जो कुछ अच्छा बुरा घटित होता है यह उनकी इच्छा से ही होता है, यदि हम उन्हें कुछ करेंगे तो भगवान के कार्य में बाधा पहॅुंचेगी और वे हमसे नाराज हो जाएंगे’’... पिता ने धीरे से समझाया।
दोनों ने अपने हाथ वापस खींच लिए और वे भिखारी बच्चे दुखित हो आगे खिसकते गए। अगले स्टेशन पर उतर, यात्री परिवार ने अपने निवास स्थान पर जाकर देखा कि ताले टूटे पड़े हैं, भीतर सामान बिखरा पड़ा है, मूल्यवान वस्तुएं और धन अलमारियों से गायब हैं। पिता चिल्ला पड़े,
‘‘ चोरी हो गई , हम लुट गए, सब कुछ बर्बाद हो गया’’ और बेहोश होकर वहीं गिर पड़े।
माॅं और बच्चों ने उन्हें मुश्किल से सम्हाला और अस्पताल लाए, होश में आते ही वे डाक्टर पर चिल्लाने लगे,
‘‘ पुलिस को बुलाओ, हमारे घर में चोरी हुई है, हमें लूटा गया है ’’
उनकी परेशानी देख छोटा बच्चा बोल उठा,
‘‘ पिताजी ! अभी आपने कहा था कि सभी व्यवस्था भगवान ने बनाई है, यदि हम उनकी व्यवस्था के विपरीत कुछ करते हैं तो भगवान नाराज तो नहीं होंगे ?’’
इतना सुनते ही वे फिर बेहोश हो गए। डाक्टर कहते रहे कि पुलिस आ चुकी है, जाॅंच कर रही है, चोर पकड़े जाएंगे, चिन्ता मत करो, होश में आ जाओ... परन्तु उन्हें होश न आया।
यह देख माॅं रोते हुए छोटे बच्चे से बोली,
‘‘क्यों रे ज्ञानी की औलाद ! चुप नहीं रह सकता था?’’
मौलिक व अप्रकाशित
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, बढ़िया दिलचस्प रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई आ डॉ टी आर शुक्ल साहब
खुद की सीख ,खुद पर भारी,बेहतरीन रचना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय शुक्ल सरजी।
वाह साब। आपने भी बहुत अच्छा मुद्दा उठाया। अनुभव शायद इसी को कहते हैं। देखी हुई बात को किस तरह से लिखना है और कहना है कि सामने वाला सीधे-सीधे पढ़ते हुए भी समझ जाए। ये आपसे सीखना होगा। परंतु आपकी सक्रियता की कमी हमें बहुत खलती है। इसलिए क्षमा कीजिएगा आपको नहीं, आपकी लेखनशैली को बधाई दे रहे हैं। आपकी लघुकथा पढ़कर हमें याद आया कि अंगदान को लेकर भी लोगों की इसी तरह की कुछेक प्रतिक्रियाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन कई लोग अंगदान के महत्व को स्वीकारने भी लगे हैं। आपकी लघुकथा भी कुछ इसी तरह के दोहरे मापदंड को उजागर करती है। स्वयं के साथ ही दूसरों के बारे में सोचने की सीख देती है आपकी लघुकथा।
पर उपदेशे कुशल बहुतेरे - की तरह शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर सुकुल जी।लघुकथा विषय का चुनाव अच्छा किया मगर निर्वहन कमजोर पड़ गया लघुकथा अतिश्योक्ति की शिकार हो गयी। क्षमा करें सर।इस बार मज़ा नहीं आया।
लोग अपनी आसानी के लिए क्या क्या तर्क ढूंढ लेते हैं। बढ़िया रचना बधाई।
नयापन लिए विषयांतर्गत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. त्रैलोक्य रंजन शुक्ल साहिब। पिता की सीख वाले संवाद पिता की भाषा शैली में हैं, तो बच्चों के संवाद बच्चों की सहज भाषा शैली में और मां का अंतिम संवाद मां की सहज भाषा शैली में सहज व सकारात्मक हो, तो बेहतर। बेहोश हो जाना एक बार काफी है। इन अंतिम पंक्तियों पर पुनर्विचार किया जा सकता है मेरे विचार से :
// इतना सुनते ही वे फिर बेहोश हो गए। डाक्टर कहते रहे कि पुलिस आ चुकी है, जाॅंच कर रही है, चोर पकड़े जाएंगे, चिन्ता मत करो, होश में आ जाओ... परन्तु उन्हें होश न आया।
यह देख माॅं रोते हुए छोटे बच्चे से बोली,
‘‘क्यों रे ज्ञानी की औलाद ! चुप नहीं रह सकता था?//
(सादर सुझाव मात्र)
बढ़िया लघुकथा है आदरणीय डॉ. टी. आर. सुकुल जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी के सुझाव से मैं भी सहमत हूँ. सादर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |