आदरणीय साथिओ,
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मी टू - लघुकथा -
"अरी सुभद्रा, आज चाय मिलेगी कि नहीं। सुबह से अखबार लेकर बैठी है। एक एक पन्ना चाट लिया। कौनसी खास खबर खोज रही है?"
"कुछ नहीं बस ऐसे ही, अभी चाय लाई बुआजी।"
सुभद्रा ने बुआजी को चाय की प्याली दी और फिर अखबार लेकर बैठ गयी।
"सुभद्रा, क्या हुआ?, तू तो कभी अखबार में इतनी रुचि नहीं लेती थी।"
"अब आपको क्या बताऊँ बुआजी? मुझे तो बड़ी शर्म आती है। कल मंदिर में भी कुछ औरतों ने पूछ लिया था।"
"क्या पूछ लिया? मुझे भी तो पता चले। मैं निबट लूंगी उन औरतों से।"
"यही पूछ रहीं थी कि तेरे पति का नाम क्यों नहीं आया अखबार में जबकि वह तो एक बड़ी नामी कंपनी के डाइरेक्टर के पद से रिटायर हुआ है? वहाँ तो बहुत सारी औरतें भी काम करती थीं। और उसकी तो पी॰ ए॰ भी एक खूबसूरत सी लड़की थी |"
"अरे किस बात में नाम नहीं आया?"
"वही किस्सा बुआ जी, "मी टू" वाला। जो आजकल टी वी अखबार सब जगह छाया हुआ है| इनकी कंपनी के कई लोगों के नाम आगये अखबार में|"
"अरी बाबरी, तेरे लिये तो यह तो खुशी की बात है कि तेरा पति एक शरीफ़ आदमी है।"
"पर मुहल्ले की औरतें तो कुछ और ही सोचती हैं। कहती हैं कि ऐसा मर्द किस काम का जिसके दो चार "मी टू" के किस्से ना हों।"
"चल तू ही बता, तेरी खुद की सोच क्या है, इस बारे में?"
" बुआजी, मेरे विचार से मर्द जाति का कुछ तो प्यार मुहब्बत और छेड़छाड़ का अतीत होना ही चाहिये।"
"पर तेरा मर्द तो बचपन से ही बहुत झेंपू किस्म का था। लड़कियों से तो हमेशा ही दूर भागता था।"
"मुझे भी कभी कभी इनकी यह आदत बहुत अखरती है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय तेजवीर जी। सादर नमस्कार। मीटू के शोर में आपकी मीटू लघुकथा में हास्य का पुट देखने को मिला। बहुत साधे हुए वाक्यों में आपने मीटू कैंपेन को नया मोड़ दे दिया। इंसानी मनोवृत्ति या मानसिकता का चित्रण करते हुए आप डगमगाए नहीं और चर्चा के रूप में आपने भी अपनी बात कह दी। ये मुश्किल तो है कि जो फंस गए हैं उन्हें उनकी बदकिस्मती बताया जा रहा है पर जो बच गए हैं वे.....? मीटू ने कई प्रश्नचिंह लगा दिये हैं। महिला सशक्तिकरण, या महिला आजादी पर नया मंथन प्रारंभ हो गया.....। लघुकथा प्रस्तुति पर बधाई। सीखने के क्रम में आप सभी पढ़ते हुए हमने भी लिखने की कोशिश की है। कृपया सुधारों से अवश्य की अवगत कराने की कृपा कीजिएगा। धन्यवाद। दुआओं का तलबगार
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , अरे वाह। बधाई , सादर।
आदरणीय तेज वीर जी आजकल मी टू बहुत चलन में हैं. विदेशी राग की इस तर्ज़ पर आप ने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी हैं. अंतिम पंक्ति ने लाजवाब कर दिया.
आदाब। किशोर/पुरुष-विमर्श की बहुत ही महत्वपूर्ण विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। आभार इसलिए कि मेरे अनुभव में बहुत से छात्र-छात्राओं और किशोरों/युवकों के ऐसे उदाहरण मिले हैं, जिन्हें लड़कियों या औरतों ने ऐसे ताने मारकर यौन संबंधित ग़लत राह पर चलवाया है। मज़ाक/प्रैंकिंग/रैगिंग की भी एक हद होती है। पीड़ित कभी-कभी गंभीरता से ले लेते हैं। विवाह पूर्व प्रेम-प्रसंग/यौनाचार/यौन-संबंधों की ओर धकेलने में लड़कियों और औरतों का हाथ पहले होता है, यौन-व्यावसायीयों और मीडिया का बाद में।
विचारोतेजक प्रश्न पर बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सरजी।
ऐसी इच्छा पुरुष और महिला दोनों में ही होती है, बस महिलाएं क़ुबूल नहीं करतीं. आजकल के प्रचलित मी टू पर बढ़िया रचना, बधाई आपको आ तेज बीर सिंह जी
मुझे तो कभी कभी इनकी यह आदत बहुत अखरती है इस पंक्ति से ही पत्नी की पीड़ा की अभिव्यक्ति हो गई।कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी।
बेहतरीन लघुकथा भाई जी। बस और कुछ नहीं। बधाई।
आ. भाई तेजवीर जी, सुंदर कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, मी टू के नाम पर अच्छी हास्य लघुकथा का सृजन हुआ है। हार्दिक बधाई।
इस आयोजन में मीटू पर एक और कथा पढने मिली. ख़ुशी की बात यह है कि सभी ने इसे अलग ढंग से व्यक्त किया है. पिछली कथा में आदरणीय मनन जी ने जहाँ पुरुषों का पक्ष रखा वहीं आपने इस कथा के माध्यम से महिलाओं के मनोविज्ञान का एक अलग पहलू को दर्शाया. बहुत ख़ूब. इस उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तेज वीर सिंह जी. सादर.
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