आदरणीय साथिओ,
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बेहतरीन कथानक और प्रेरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया अनीता शर्मा जी ।
चलो कोई बात नहीं
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हॉस्पिटल का लेबर रूम। और उसके बाहर का बेंच और उस बेंच के ठीक ऊपर लगी एक तख़्ती। जिसपर लिखा है “लड़का-लड़की एक समान”। ये तख़्ती मैं हूँ।
और मैंने देखा है लेबर रूम के अंदर के परिणाम से बाहर की प्रतिक्रिया को प्रभावित होते। ख़बर आते ही कभी कोई बेंच से उछल पड़ता है और कभी कोई धम्म से उसपर गिर पड़ता है।
आज भी मैंने दो डिलीवरी देखी। दोनों संभ्रांत परिवारों की महिलाओं की। दोनों की ही पहली संतान। दोनों के परिवारवाले जच्चा-बच्चा के स्वस्थ होने की कामना की ही बातें कर रहे थे। दोनों के परिजनों की बातों से पता चलता था कि लड़का-लड़की जो भी हो, दोनों समान हैं।
--पहली वाली के लड़का हुआ। बधाइयां दी जाने लगी। तुरत-फुरत में मिठाई का डिब्बा भी आ गया। फ़ोन किये जाने लगे। उल्लास फैल गया। दादी बोली “चलो, आगे की चिंता मिटी”।
--दूसरी वाली को लड़की होने की ख़बर आई। ग़म तो किसी को न था। पर उल्लास और मिठाई नहीं थी। दादी ने कहा “चलो कोई बात नहीं। आजकल क्या फ़र्क़ है लड़के-लड़की में”।
चलो कोई बात नहीं!! क्या वाक़ई?
और मेरा मन मुझे थामने वाली कीलों से निकल कर फर्श पर पसर जाने को कर रहा था।
#मौलिक एवं अप्रकाशित
भई, यह तो बहुत बड़ी बात हो गई न! बेहतरीन शैली में बेहतरीन प्रतीकात्मक सारगर्भित सृजन हेतु सादर हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता साहिब। //ये तख़्ती मैं हूँ।// .. यह कहने से बचने के लिए लेबर-रूम के 'दरवाज़े' को दूसरा पात्र बना कर 'तख़्ती' के साथ कथनोपकथन करा कर भी बेहतर "मानवेतर लघुकथा" आप कह सकते हैं मेरे विचार से। सादर।
बहुत सुंदर भाई अजय गुप्ता जी , सुंदर शैली में मानवेतर कथा का अच्छा प्रयास किया है आपने, कथ्य बहुत ही सुन्दरता से अपनी बात कहने का प्रयास करता है.... 'डिलीवरी' से पहले और बाद के दोनों परिवारों के विचार बहुत सटीक तरीके से अपनी बात कहते है... सारगर्भित सृजन हेतु सादर हार्दिक बधाई भाई जी
वाह, उस तख्ती के माध्यम से समाज की मानसिकता को बखूबी दर्शाया है आपने, बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर. बहुत बहुत बधाई आपको इस सटीक रचना के लिए आ अजय गुप्ता जी
वाह्ह्ह तख्ती का प्रतीक लेकर लेखक ने बहुत गहन बात कह दी बहुत अच्छी लघु कथा अजय जी बधाई आपको
सत्य हैं यह फर्क सदैव विद्यमान रहेगा ।और यह प्रत्येक स्तर पर हैं।हार्दिक बधाई आपको आ. अजय गुप्ता जी
तख्ती के माध्यम से समाज की मानसिकता को बहुत ही अच्छे ढंग से उकेरा है आपने आदरणीय अजय गुप्ता जी। हार्दिक बधाई।
"चलो कोई बात नहीं!! क्या वाक़ई?" ....रूढ़ियों में जकड़ी सोच द्वारा ओढ़े गए उन्मुक्तता के आवरण को दर्शाती लघुकथा के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी.
बहुत ही सशक्त , सारगर्भित और विषयानुकूल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी ।
उम्दा मानवेतर कथा रची है भाई अजय गुप्ता जी। भाई उसमानी जी की बेशकीमती सलाह का स्ंग्याँ अवश्य लें। इस सुंदर प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
कैसी माफ़ी-लघुकथा
पूरे घर में तनाव का माहौल था, पिछले दस दिन से घर का कोई भी व्यक्ति अपने आप को उस घटना से उबार नहीं पाया था. ड्राइंग रूम में रौशनी के माता पिता और एक पुलिस अफसर गंभीरता से बैठे हुए सोच विचार कर रहे थे. घर के अंदर रौशनी एक कमरे में बदहवास हालत में पड़ी हुई थी और उसका भाई जिसे अंदर ही रहने की ताकीद की गयी थी, वह भी दूसरे कमरे में उदास बैठा था.
कुछ ही देर में वह लड़का ड्राइंग रूम में आया जिसका इंतज़ार सभी लोग कर रहे थे. उसके पीछे पीछे उसके पिता भी थे और दोनों के चेहरे उड़े हुए थे. कमरे में घुसते ही सबने उनपर निगाह डाली और दोनों पास के सोफे पर चुपचाप बैठ गए.
"तो क्या सोचा है तुम लोगों ने", पुलिस अफसर ने कड़कती आवाज़ में पूछा.
लड़के ने डरते हुए अपनी निगाह उठायी और बोला,
"सर मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ और रोशनी से शादी करने के लिए तैयार हूँ".
उसके पिता ने भी सहमति में अपना सर हिलाया. पुलिस अफसर ने रोशनी के पिता की तरफ देखा और उनको समझाने के लहजे में बोला "मुझे लगता है आपको इसकी बात मान लेनी चाहिए, आखिर आज दस दिन बाद यह वापस तो आ गया है, वर्ना इसे हम कहाँ कहाँ ढूंढते. और इसके शादी कर लेने से लड़की और आपके परिवार की प्रतिष्ठा भी बच जाएगी".
रोशनी के माता पिता को भी इससे बेहतर कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. पिछले दस दिनों में उन लोगों ने समाज का वह रूप भी देख लिया था जिसकी वह कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे.
'ठीक है, अगर यह अपनी गलती सुधारने के लिए तैयार है तो हमें भी कोई आपत्ति नहीं है. बस एक बार रौशनी को भी पूछ लेते हैं, फिर आगे बात करते हैं", रौशनी के पिता ने मद्धम आवाज में कहा. रौशनी की माँ अंदर जाकर रौशनी को बुला लायी और सबके सामने उससे भी पूछा गया "बेटा रौशनी, इस लड़के ने अपनी गलती मान ली है और तुम लोग एक दूसरे को पहले से जानते भी हो. अब यह शादी के लिए कह रहा है तो तुम भी हाँ कर दो, सारी चीजों पर पर्दा पड़ जाएगा और समाज में भी कोई दिक्कत नहीं होगी".
रौशनी ने अपना सर उठाया और गुस्से से कांपते हुए लड़के के मुंह पर थूक दिया. फिर चीखते हुए बोली "इस हैवान को माफ़ करके इसके साथ शादी कर लूँ, इसपर भरोसा करके ही उस पार्टी में गयी थी और इसने मेरी इज़्ज़त को तार तार करने में एक बार भी नहीं सोचा. ऐसे गलीज़ और हैवान लोगों के लिए माफ़ी जैसा शब्द होना ही नहीं चाहिए. मेरे एफ आई आर के आधार पर इसे गिरफ्तार कीजिये, इसको इसकी नीचता का परिणाम भुगतना ही होगा".
ड्राइंग रूम में मौजूद हर व्यक्ति अवाक था, रौशनी उठकर वहां से जा चुकी थी.
मौलिक एवम अप्रकाशित
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