आदरणीय साथिओ,
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आपस में एक रहे तो किसी भी मुसीबत से लड़ा जा सकता है, बढ़िया रचना विषय पर. अंत पर थोड़ी और मेहनत की जरुरत है, बधाई इस रचना के लिए आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
बहुत बढ़िया सन्देश देश की हर समस्या का समाधान तभी निकलेगा अगर सही लोग चुन कर आगे आएंगे। हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ जी इस शानदार कथा के लिए
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय तासिक सरजी।
बढ़िया प्रयास हुआ है जनाब तस्दीक अहमद खान साहिब| मैं भी आदरणीय योगराज सर की बातों से सहमत हूँ| इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको|
आपकी लघुकथा के सन्दर्भ में आदरणीय योगराज सर की टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी. जितना "क्या कहना है" महत्त्वपूर्ण होता है उतना ही "कैसे कहना है" भी होता है. बहरहाल इस प्रस्तुति पर मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
समाधान
भोलू को रुपये की सख़्त ज़रूरत पड़ी तो वो अपने दोस्त पप्पू के पास गया और ₹5000 इस वादे पर ले लिए कि अगले महीने की 1 तारीख़ को लौटा देगा। लेकिन जब एक तारीख़ आई तो उसके पास रुपए की व्यवस्था नहीं हुई। तो उसे अपने दूसरे दोस्त चम्पू की याद आई चम्पू से उसने ₹5000 उधार लिए इस वादे पर के अगले महीने की 1 तारीख़ को लौटा देगा। फिर एक तारीख़ आ गई भोलू, पप्पू के पास गया और कहा मैंने तुम्हारे पहले रुपये दे दिए थे इसलिए मुझे ₹5000 फिर उधार दे दो, अगले महीने की 1 तारीख तक। पप्पू ने दे दिए,तो चंपू को दे दिए। फिर जब पप्पू के तकाज़े की तारीख़ आई तो चम्पू से ₹5000 व्यवहार की दुहाई देकर फिर ले लिये और पप्पू को दे दिए।
अब ये सिलसिला चालू हो गया चम्पू से पप्पू को,पप्पू से चम्पू को। कई महीने गुज़र गए। एक दिन परेशान होकर भोलू ने (समस्या का समाधान ढूंढा) दोनों को काका की होटल पर चाय नाश्ते की दावत दी। और चाय नाश्ता करने के बाद दोनों से बोला यार चम्पू जो रुपये मैं तुझसे एक तारीख़ को ले जाता हूं,वह पप्पू को देता हूं। और पप्पू से जो लाता हूं तुझे दे देता हूं। अब मैं यह करते करते थक गया यार..। लिहाज़ा तुम दोनों एक काम करो हर महीने की 1 तारीख को ₹5000 एक दूसरे से लेते देते रहना।(हाथ जोड़कर) और मुझे माफ़ कर दो यार (पप्पू,चम्पू कुछ समझते और कहते) ये कहकर भोलू चम्पत हो गया।
मौलिक / अप्रकाशित
विषयांतर्गत बहुत ही रोचक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहिब। रचना सबक़ भी दे रही है। चुटकुले जैसी रोचक रचना के संबंध में अन्य टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
जनाबे आली उस्मानी साहब शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई का सादर
भाई आसिफ जैदी जी, प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास किया है लेकिन यह नाकाफी रह गया. क्योंकि अंत तक पहुँचते-पहुँचते यह एक लतीफनुमा रचना बनकर रह गई है. इसके इलावा पढ़ने वाला पप्पू, भोलू और चम्पू में ही उलझकर रह जाता है. बहरहाल अभ्यासरत रहे और प्रयासरत रहें और आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करें.
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी तवज्जो का बहुत शुक्रिया सीखने में वक़्त लगेगा लेकिन कोशिश जारी है बस मार्गदर्शन करते रहें आभारी हूँ सादर
वाह आसिफ जैदी साहब बढ़िया लघुकथा..।।
आदरणीय शुक्रिया सादर
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