तरही मुशायरे की एक और क़िस्त ख़त्म हुई| पिछले उनचास महीनों में हमने ग़ज़ल की कई बहरों पर कलम आज़माइश की है| कभी कुछ बहरें आसान लगीं तो कुछ कठिन, पर इस बार थोड़ा अंतर यह रहा कि आसान सी दिखने वाली इस बहर में भी परेशानियों का सामना करना पडा| मैं इस बहर को आसान सी इसलिए कह रहा हूँ कि हमें कुल जोड़ ही तो मिलाना था १६ गाफ़ या ३२ मात्राओं का, बस ध्यान यह देना था कि रवानी बनी रहे| कमोबेश मात्राओं का जोड़ तो सबने मिलाया पर रवानी में कई शायर गच्चा खा गए| बहरहाल जो है तो है, संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| पिछले दो मुशायरों का संकलन मैं अपनी ज़ाती दिक्कतों के कारण नहीं पेश कर पाया था, उसके लिए माज़रत चाहता हूँ, ज़ल्द ही उन्हें भी पोस्ट कर दूंगा| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल रंग उन मिसरों में जो बेबहर हैं या जिनमे रवानी नहीं है और हरे रंग जिनमे कोई न कोई ऐब है|
ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
हर एक हकीक़त कह देंगे हर एक कहानी कह देंगे
हक़ गोई करेंगे जब हम तो दुनिया को फानी कह देंगे
होंठो को सी लेंगे लेकिन अश्को की ज़ुबानी कह देंगे
'खामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे'
मानो न हमारी बात मगर उल्फत है पुरानी कह देंगे
तुम अपनी नज़र से कह देना हम अपनी ज़ुबानी कह देंगे
इक नूर से सब जग उपजा है सब एक ही रब के बन्दे हैं
इस राज़ से जो नावाकिफ हैं उनसे गुरबानी कह देंगे
ये लोग हैं कितने पत्थर दिल दुःख दर्द किसी का क्या जानें
निकले हैं जो मेरी आँखों से उन्हें बहता पानी कह देंगे
चाहे जितना खामोश रहूँ लब भी सी लूँ तो भी क्या हासिल
ये अश्क तो मेरे पागल हैं हर ग़म की कहानी कह दें गे
क्यूँ खोयी खोयी रहती हो अब होश में आओ वरना सब
हमको दीवाना कहते हैं तुमको दीवानी कह देंगे
इस ओ बी ओ के मंच पे तो कितने हैं महाज्ञानी 'गुलशन'
जो शेर पढेंगे उल्फत के ज्ञानी को ज्ञानी कह देंगें
'गुलशन' साहब इस मिसरे में हर मौजू को तुम नज़्म करो
मुश्किल जो तुम को लगता है हम बा आसानी कह देगें
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शिज्जु शकूर
हम दिल में उठती लहरों की हर वज्हे रवानी कह देंगे
क्यूँ हलचल सी है मन में इतनी क्यूँ तुग़यानी कह देंगे
हम कुछ न छुपाएँगे अब तुमसे राज़े निहानी कह देंगे
बेबाक रहेगा दिल अपना फिर हाल ज़ुबानी कह देंगे
बहलाने की खातिर दिल को ग़म आनी जानी कह देंगे
बस एक नज़र भर देखेंगे खुशियों को फ़ानी कह देंगे
हम हर्फ़े मुहब्बत से रौशन कर देंगे दिल को अपने यूँ
जज़्बात लिखेंगे फिर तहरीरों को ताबानी कह देंगे
वहशतअंगेज़ नज़ारों से मेरी आँखें भर आयी हैं
कहने वालों का क्या है वो आँसू को पानी कह देंगे
ज़ाहिर होगा जब मेरी बर्बादी का किस्सा लोगों पर
सब चौंक उठेंगे सुनकर हिम्मत को नादानी कह देंगे
धड़केगा दिल ज़ोरों से जुम्बिश भी होगी आँखों में पर
“ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे”
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Tilak Raj Kapoor
गर बात रही बस ऑंखों तक हर चोट पुरानी कह देंगे
ऑंखों का कहा समझा न अगर खुश हैं ये ज़बानी कह देंगे।
पूछा जो कभी क्यूँ उड़ते हो, रुत है ये सुहानी कह देंगे
इस जोश का कारण पूछा तो, बाक़ी है जवानी कह देंगे ।
माथे पे शिकन का कारण हम बिटिया है सयानी कह देंगे
हम डरते हैं वो दुनिया से बिल्कुल है अजानी कह देंगे।
इस रात की स्याही में बोलो जाओगे कहॉं ये पूछा तो
महबूब की ज़ुल्फ़ों में अब तो है रात बितानी कह देंगे।
लोगों ने अगर पूछा हमसे क्या दर्द बसा है सीने में
हमने भी किया था इश्क़ कभी उसकी है निशानी कह देंगे।
गर रक्स में डूबी रूह कभी उनको न समझ में आयी तो
ये रूह रही है सदियों से मीरा सी दिवानी कह देंगे।
ये अह्द हमारा है क़ायम इक लफ़्ज़ बयां होगा न कभी
"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"
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गिरिराज भंडारी
हम थोड़ा भी मुँह खोलें तो बस नाफरमानी कह देंगे
हमको मुज़रिम ठहराने को वो कोई कहानी कह देंगे
जो प्यास बुझा देगा अपनी हम उसको पानी कह देंगे
जो सुलझा दे जीवन उलझा हम उसको ज्ञानी कह देंगे
ये ठीक ज़ुबाँ पर क़ैद सही पर आँख़ों की तो भाषा है
"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"
हैं सूरज चाँद रवाँ हरदम, यों रुके-रुके से तुम न चलो
तुम आहिस्ता भी बढ़ते रहे, वो उसे रवानी कह देंगे
तुम जो पाये हो दुनिया से वो ही तो बांटोगे इक दिन
जो सवालात तुम छोड़ रहे, हम उसे निशानी कह देंगे
बेदाद गरों की महफिल में यूँ अश्क़ बहाना ठीक नहीं
बेबस के अश्क़ न समझेंगे , वो खारा पानी कह देंगे
है खून जवाँ , है गर्मी तो , आँखों से जाहिर होने दो
इन ठंडी ठंडी आहों को , क्या यूँ ही जवानी कह देंगे ?
तू रोक नही ज़ज्बात अभी, तू अश्क़ बहा हलका हो जा
समझाने वाले , जान गई तो , आनी जानी कह देंगे
इस रोज़ बदलती दुनिया में, हर लम्हा नया नया कुछ है
जिस मंज़िल पे तुम पहुँचे हो, कल उसे पुरानी कह देंगे
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Nilesh Shevgaonkar
वो बोल इबादत के सुनकर भी शोला-बयानी कह देंगे,
आँखों में उमड़े सवालों को भी नाफ़रमानी कह देंगे.
तुम लाख छुपाना चाहोगे, पर सामने सच आ जाएगा,
बस आँख मिलाकर हम तुम में कितना है पानी कह देंगे.
नमकीन क़तारें पलकों पर, क्यूँ चेहरा है मुरझाया सा,
गर लोग ये हमसे पूछेंगे, है ज़ख्म-ए-निहानी कह देंगे.
बालों में चाँदी भरने लगी, अब छनती है शीशे से नज़र,
पर मिले जो कोई सीम_बदन हम ख्व़ाब-ए-जवानी कह देंगे.
हम बंद रखेंगे चश्म-ओ-ज़ुबाँ, गोया कि ख़ुदा से जुड़ते हों,
“ख़ामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे.”
हों साथ अगरचे हम और तुम, हर शेर मुकम्मल हो जाए,
तुम मिसरा-ए-ऊला कह देना, हम मिसरा-ए-सानी कह देंगे.
दिल खोल के रख देंगे अपना, मिसरा दर मिसरा हम साहिब,
कुछ लोग हमारी धड़कन को, ग़ज़लों की रवानी कह देंगे.
यूँ “नूर” इशारा कर के फिर हम छत पे बुला लेंगे उनको,
जब दिल को शरारत सूझेगी, है ईद मनानी कह देंगे.
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Harjeet Singh Khalsa
कुछ दूर हमारे साथ चलो, हर बात पुरानी कह देंगे,
कुछ भी न कहेंगे होंठो से, आँखों की जुबानी कह देंगे …
जो राजे हुनर सीखा तुमसे, वो आज तुम्ही पर खोलेंगे,
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे
जीवन यूँ तनहा बीता है, कुछ खास नहीं बतलाने को,
जिस शाम तुम्हारा संग मिला, वो शाम सुहानी कह देंगे,
हम कहने पर जब आएंगे, कुछ राज नहीं रह पायेगा,
होती है कैसे चाहत में, बरबाद जवानी कह देंगे,
इश्क में लुट मिट जाओगे, तुम लाख लहू भी रो लोगे,
दुनिया वाले लेकिन इसको, बस सादा पानी कह देंगे,
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AVINASH S BAGDE
दिल के जलते शोलों को यूँ हम बहता पानी कह देंगे।
गर वक्त पड़ा तो हम तुमको नैनों की जुबानी कह देंगे।
नायाब वो नुस्खे नानी के और दादी की उम्दा बातें ,
हम नए लफ्ज़ की बोतल में वो बात पुरानी कह देंगे।
सौं तन्हाई की हमको और कसम वीराने की खा के ,
"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"
चुपके-चुपके चोरी-चोरी यूँ नैन लड़ायें कब तक हम ,
हम भी अपनी जाकर उनसे ये प्रेम कहानी कह देंगे।
रात के सपनो से चलकर किरणो के दर पर आई हो ,
सुबह तेरे दीदार को हम शबनम का सानी कह देंगे।
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कल्पना रामानी
सोचा है यही उससे मिलकर, हर बात पुरानी कह देंगे।
जो बीत चुकी अब तक हम पर, अपनी ही जुबानी कह देंगे।
यदि उसने सुख-दुख पूछा तो, कुछ अपना हाल सुनाया तो,
तुम बिन अब हमको लगती है, यह दुनिया फ़ानी कह देंगे।
दिखते हैं ऐसे लोग बहुत, अपना मतलब पड़ जाने पर,
जो अनदेखी सूरत को भी, जानी पहचानी कह देंगे।
माना कि लबों पर बोल नहीं, पर हैं इंसाँ पाषाण नहीं।
खामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे।
मिल जाए अगर वो राहों में, हो गहरा प्रेम निगाहों में,
इस बार हमें प्रिय दे जाओ, कुछ नेह-निशानी, कह देंगे।
यदि हमसे वो कर ले वादा, यह जीवन साथ बिताने का,
तो शेष ‘कल्पना’ रस्म कोई, नहीं और निभानी कह देंगे।
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मोहन बेगोवाल
तेवर जो दिखाये उसने हमें, मौसम की विरानी कह देंगे I
बन आये कभी जो दुनिया पे, कैसे रुत सुहानी कह देंगे I
यादों में रखा था जो छुपा हमने, गीत लबों पे ले आये ,
अब हम न कहें जो दिल में रही, बस बात बेगानी कह देंगे I
तुम ये मानों चाहे न मानो, कुछ बदले हुए से लगते हो,
चल कोई तो हम से बात करो, हम भी वो पुरानी कह देंगे I
हम भी चलेगे अब साथ तेरे, जो बीत गई वो जाने दो,
"खामोश रहेंगे और तुम्हे, हम अपनी कहानी कह देंगे" I
हम बात कहें तुम मान भी लो, ऐसा न कभी हो पायेगा ,
जब हमने कहा तुम आग हो तो, तब साथ को पानी कह देंगे I
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laxman dhami
गर काट जुबाँ दे सोच अगर तू, सत्य ज़़बानी कह देंगे
खामोश रहेगी आँख हमारी घाव कहानी कह देंगे /1/
ये सोच न हम चुपचाप कहीं, रो दें न जमाने को जाकर
पर लोग न दुख तो बाँट सकेंगे, अश्क को पानी कह देंगे /2/
यूँ भोर लिए है साथ उदासी, रात ये आलम क्या होगा
पर झूठी तसल्ली यार हमें दे शाम सुहानी कह देंगे /3/
इस राह सुधा ही हाथ लगे, मत यार किसी की बातें सुन
जो प्यार के पथ पर जा न सके वो जह्र खुरानी कह देंगे /4/
दिन-रात गुजरते चूर हुआ , मालूम हमें है थक कर तू
मत पास हमारे बैैठ मगर अब , लोग केरानी कह देंगे /5/
कुछ बोल यहाँ खामोश न रह, क्यों जुल्म सहे तू आये दिन
खामोश रहेगी यूँ ही अगर तू , खून को पानी कह देंगे /6/
जो आँख में डूबे आ न सके वो खुद तो किनारे पर, लेकिन
फिसले जो कहीं हम और अगर नाकाम जवानी कह देंगे /7/
यूँ रोज निगाहें फेर गये जब पास से मेरे गुजरे वो
जब बात चलेगी दोष मुझे दे, अश्क निशानी कह देंगे /8/
बरबाद हुए क्यों लोग कहेंगे बात बनाकर सौ-सौ फिर
मालूम नहीं तासीर नयी , तस्वीर पुरानी कह देंगे /9/
पर तुम जो यकीं कर हाल हमीं से पास जो आकर पूछेगी
खामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे /10/
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gumnaam pithoragarhi
भैया हम अम्मा से तेरी सब कारस्तानी कह देंगे
खूब सताते हो तुम हमको सारी मनमानी कह देंगे
जीवन की राहों की यारो सभी परेशानी कह देंगे
सुख की नादानी कह देंगे दुःख की मनमानी कह देंगे
दस्तूर यही है दुनिया का सब अपनी खातिर जीते हैं
पीर पयम्बर दुनिया को एक बुलबुला पानी कह देंगे
आओ घर की दीवारों से इक तस्वीर लगा के देखें
वरना लोग इसे कोई कोठी एक पुरानी कह देंगे
रत के आयत या चौपाई यारो सब ही बेकार हुआ
हमदर्दी को सारे मानव आदत रूहानी कह देंगे
बादल के बच्चों की नभ में हँसी ठिठोली बहुत हुई अब
प्यासी धरती की बेचैनी हम अपनी जबानी कह देंगे
जज्बातों को कहने को अलफ़ाज़ उधारी ठीक नहीं है
खामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे
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Abhinav Arun
मेरी नज़्में मेरी ग़ज़लें सब तेरी निशानी कह देंगे |
क्या चीज़ मुहब्बत होती है लफ़्ज़ों की ज़ुबानी कह देंगे |
लहरों की रवानी कह देंगे नदिया की जवानी कह देंगे |
तुम प्रेम के नग्में छेड़ो तो तुम हो लासानी कह देंगें |
रुत प्रीत की आई सावन सी बरसें बूँदें मनभावन सी ,
दो बोल सुना दे कजरी के तुझे राग की रानी कह देंगे |
लैला मजनूँ शीरीं फ़रहा सोनी महिवाल की पढ़ लेना ,
फिर भी ग़म कुछ कम कम सा लगे तो अपनी कहानी कह देंगे |
आँखें सब कुछ कह देती हैं कुछ पलकों की भी माना कर ,
इक टक तो यूं न देख मुझे सब तुझे दिवानी कह देंगे |
इक ज़ख्म हरा हो जायेगा इक आह सी दिल से उट्ठेगी ,
जब याद तुम्हारी आएगी नज़्मे-रूमानी कह देंगे |
जब चाँद गगन पर छाएगा औ' याद की ख़ुशबू आएगी ,
चुपके से छत पर खिल जाना तुम्हें रात की रानी कह देंगे |
हालात की जब तक्तीअ न हो मन उलझा हो अरकान में तो ,
तुम उला बने हमसे मिलना हम मिसरा सानी कह देंगे |
ग़ज़लों की ज़ुबां सब बोलेंगे, हर राज़ रखेंगे पोशीदा ,
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे |
ममता से सेवईं शीरीं हो तस्कीन में भींगे रूह तलक,
जहां माँ के हाथ का स्वाद मिले जन्नत की चुहानी कह देंगे |
सब नियम रखो तुम पास अपने, हमें रब से बातें करने दो ,
है इश्क़ मलंगी तो अभिनव नज़्मे-रूहानी कह देंगे |
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arun kumar nigam
थाली में कटोरी रिक्त रखो, हम दाल - मखानी कह देंगे
शिकवा न करेंगे , भात को भी हम तो बिरियानी कह देंगे
तुम राज - खजाना बाँट रहे , खैरात नहीं यह तो हक है
पुश्तैनी धन अपना बाँटो , हम तुमको दानी कह देंगे
हम शीश कटा गुमनाम रहे वो केश कटा कर हैं चर्चित
होठों से निकलती आह को भी वो नाफरमानी कह देंगे
अंदाज तुम्हारा देख तुम्हें , सब लोग शिकारी कहते हैं
नज़रों के चलाओ तीर न तुम , भौहों को कमानी कह देंगे
अंग्रेज गये पर छोड़ गये कुछ सख्त मिजाजी जेलर भी
" शोले " की तरह खुशहाल दिखे , उनको असरानी कह देंगे
खोला भी करो तुम " मेल " कभी, हर बात पता चल जायेगी
खामोश रहेंगे और तुम्हें , हम अपनी कहानी कह देंगे
अपनों को समझ कर गैर सदा , परदेश चले तौबा - तौबा
कितना भी विदेशी रूप धरो , वो हिन्दुस्तानी कह देंगे
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अजीत शर्मा 'आकाश'
खोलेंगे नहीं ये लब लेकिन अश्कों की ज़ुबानी कह देंगे
इस दिल के हर इक ज़ख़्म को हम तेरी ही निशानी कह देंगे .
जब आग के दरिया में दोनों डूबेंगे उतरायेंगे तो
हम खुद को प्रेम दीवाना, तुम को प्रेम-दीवानी कह देंगे .
ये आकर्षण सा कैसा है क्या दिल की कशिश को नाम दें अब
तुम सोचते ही रह जाना हम पहचान पुरानी कह देंगे .
अब इतने भी नादान नहीं हम जितना आप समझते हैं
बिन सोचे-समझे क्यूँ अच्छा दिन, रात सुहानी कह देंगे .
जिसके दिल में सच्चाई है, भोलापन भाईचारा है
तुम चाहे कुछ दो नाम उसे हम हिन्दुस्तानी कह देंगे .
धीरज तो रक्खो थोड़ा सा तुम भी सब जान ही जाओगे
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे .
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Ashok Kumar Raktale
कहने पे आये तो दिल की हर बात जुबानी कह देंगे,
राज छुपा ना पायेंगे हम हर एक कहानी कह देंगे |
अच्छे दिन का कहकर हम पर जो लाद रहे हो ये दिन तुम,
बाजारों का क्या हाल हुआ सब आम खुबानी कह देंगे.
आज नहीं तो कल ही मानो मतदान करेंगे हम अपना
“खामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे.
मान कहाँ पर ठहरा कह दो सीमा पर रहने वालों का
देश कहाँ तक सिमटा बोलो या हिन्दुस्तानी कह देंगे.
जाग सको तो अब भी जागो हाँ देर हुई पर देर नहीं,
शुरुआत करो सच्चे मन से या हम मनमानी कह देंगे |
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Amit Kumar "Amit"
कब डरते हैं इस दुनिया से, जो दिल में ठानी कह देंगें I
या फिर बातों बातों ही में, जो बात छुपानी कह देंगें I I
अब क्या बतलायें सबको हम, बस कह देंगें जो कहना है I
खामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगें II
गर दुनिया बाले पूंछेंगे क्यों तन्हा - तन्हा रहते हो I
कुछ यादों की कुछ वादों की है चिता जलानी कह देंगें I I
ता-उम्र रहेगी याद तेरी अब साथ हजारों जन्मो तक I
हर किस्से और अफ़साने को अनमोल निशानी कह देंगें I I
इस मयख़ाने से दूर रहें अब और नहीं होगा हमसे
हर प्याले मैं दिल जानी की सूरत है लुभानी कह देंगें I I
दर्द- ए-दिल जब- जब महफ़िल में तुम खोलोगे तो ये होगा
कुछ लोग छलकते आंसू को बारिश का पानी कह देंगें I I
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Dr Ashutosh Mishra
तुमने जो दिया है दर्द हमें उल्फत की निशानी कह देंगे
ओंठों से अगर कुछ कह न सके आँखों कि जुवानी कह देंगे
मुद्दत के बाद मिले हमको सब यार पुराने महफ़िल में
यादों को पुरानी ताजा कर कोई ग़ज़ल पुरानी कह देंगे
ढल चुका शबाब मगर जालिम इतरा के अभी भी चलते हैं
राहों में किसी दिन दीवाने इन्हें मदिरा पुरानी कह देंगे
उल्फत ने सिखायी है यारों इक ऐसी कला हमें जादू भरी
खामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे
नन्ही सी उमर में बातें गर सबसे जो करोगी ऐसे तुम
सुनकर के तुम्हारी बाते सब बचपन में सयानी कह देंगे
महके फूलों जैसा शबाब जो शर्माती हो छुइमुइ सा
उस शोख को हम जैसे शायर मदमस्त जवानी कह देंगे
इक चाँद जमी पर बांहों में दूजा हो फलक पर तारों संग
हो काश अगर कोई ऐसी शब हम उसको सुहानी कह देंगे
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नादिर ख़ान
जब हाल है कैसा पूछोगे हम दिल की कहानी कह देंगे
हर इक पल हमको डसती है, मुश्किल में जवानी कह देंगे
हम दर्द भी अपना सह लेंगे और आँख के आँसू पी लेंगे
जो ज़ख्म मिले हैं हम उनको, है तेरी निशानी कह देंगे
जब राह हमारी सच्ची है, क्यों बदलें हम इन राहों को
गंगा जमुनी तहज़ीब है जो, है शान पुरानी कह देंगे
तुम दूर सही पर दिल में हो, अंजान नहीं मै बातों से
तुम लाख छुपाओगे हमसे आँसू तो कहानी कह देंगे
ये आँख मिलेगी जब तुमसे फिर आँख जुबां बन जाएगी
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे
तुम क्या जानो तुम क्या समझो क्या राज़ छुपा है इस दिल में
तुम गीत हमारे सुन लेना हम इनकी ज़ुबानी कह देंगे
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भुवन निस्तेज
कहने से है कब बाज आए जो दिल ने है ठानी कह देंगे
ये लोग हमारे अश्कों को दरिया का पानी कह देंगे
उल्फत में हर कुर्बानी को ये इक नादानी कह देंगे
कारस्तानी कुछ भी कर लो ये बात पुरानी कह देंगे
अपने दिल का है हाल जो ये अरमां तूफानी कह देंगे
खामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे
ऐ रात बता मेरे आंसू किस ओर बहे तारीक़ी में
शबनम की बूंदों से पूछो वो मेरी ज़ुबानी कह देंगे
जब तू है अपना हमसाया हर सफ़र है आसाँ अपना तो
हम अपना सबकुछ छोड आना तेरी कुर्बानी कह देंगे
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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
राणा प्रताप सिंह
मंच संचालक
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जी ठीक है ! कुछ और सुधार करता हूँ. सादर.
एक से बढ़कर एक ग़ज़ल पढ़ने को मिलीं बहुत 2 आभार सभी रचनाकारों का
आयोजन के दौरान एक एक पढ़कर उन पर की गयी टिप्पणियों से सीखने का सुख इन दिनों नहीं मिल रहा इस बात का दुःख है
मंच से सादर निवेदन है कि आयोजन को एक रविवार भी मिले क्योंकि हमें सिर्फ यही छुट्टी मिलती है और सितम्बर तक कमोबेश यही हाल रहता है
सभी ग़ज़लों का संकलन अच्छा लगा, वक़्त की कमी के कारण इस बार मुशायरे में भाग नहीं ले सकी ,कुछ की ग़ज़ल भी नहीं पढ़ पाई थी सो अब पढ़ पाई हूँ |आ० राणा प्रताप जी के साथ सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई|
यथा संशोधित
एक से बढ़कर एक ग़ज़ल पढ़ने को मिलीं बहुत 2 आभार सभी रचनाकारों का इस सफल आयोजन के लिये बहुत बहुत बधाई।
राणा साहिब ने कितनी मेहनत से पहले तो रचनाओं को संकलित किया, फिर उसके बाद उन मिसरों को चिन्हित किया जिनमे ऐब थे. मुझे यह देखकर अति प्रसन्नता कि हमारे कई संजीदा शायरों ने न केवल अपने गलत मिसरों के बारे में पूछताछ ही की बल्कि उन मिसरों को दुरुस्त भी करवाया। लेकिन दूसरी तरफ, अभी तक संकलन में शामिल उन ३ शुअरा (सर्वश्री मोहन बेगोवाल जी, गुमनाम पिथौरागढ़ी जी एवं अशोक कुमार रक्ताले जी) की तरफ से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली जिनकी ग़ज़लों पर सब से ज़्यादा लाली छाई है. निजी तौर पर मेरे लिए यह बेहद निराशाजनक है.
ऐसे सुधि साथियों की उदासीनता देखते हुए ही मैने कुछ समय पहले संकलन की इस परिपाटी को समाप्त कर देने की बात भी उठाई थी. क्योंकि यदि वे लोग जिनकी रचनाएँ दोषपूर्ण हैं, वही इस श्रमसांध्य प्रक्रिया को नज़रअन्दाज़ करते हैं तो इसका क्या अर्थ लिया जाये ? और भविष्य में क्या किया जाये ?
१. क्या संकलन की यह परिपाटी बंद ही कर देनी चाहिए ?
२. क्या केवल संकलन ही किया जाये और त्रुटियाँ इंगित ही न की जाएँ ?
३. क्या जिन ग़ज़लों में एक-चौथाई मिसरे दोषपूर्ण पाये जाएँ तो उन्हें संकलन में स्थान ही न दिया जाए ? या फिर,
४. ऐसे रचनाकारों पर अंकुश लगाया जाए जोकि आदतन संकलन में चिन्हित त्रुटियों को नज़रअंदाज़ करते है ?
माननीय श्री योगराज सर इस बारे में मैं यही कहूँगा कि संकलन बंद नहीं होना चाहिये यदि ऐसा हुआ तो मेरे जैसे सीखने वालों को निराशा होगी। हाँ ऐसा ज़रुर किया जा सकता है कि कुछ समय बाद दोषपूर्ण रचनाओं में यदि रचनाकार द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं आती या यथोचित संशोधन नहीं करवाया जाता तो एडमिन द्वारा रचना को संकलन से हटा दिया जाये। ये सिर्फ मेरा निजी विचार है।
नहीं मेरे ख्याल से संकलन बंद नहीं होने चाहिए ये तो एक बेहतरीन कार्यशाला की तरह है हाँ आपकी बात सही है की जिनके मिसरों में त्रुटी है वो समझ लें और ठीक करने की कोशिश करें यही तो इस पोस्ट का मकसद होता है|हो सकता है कि किसी कारण वो अभी नेट पर उपलब्ध ना हो और फिर आकर पढ़ें |
आदरणीय योगराज भाई , इतनी मेहनत से किये गये संकलन को रचना कारों द्वारा नज़र अन्दाज़ किया जाना सच मे निराशा जनक है, कम से कम इस सीखने सीखाने के मंच के लिये ये एक गम्भीर मामला है । लेकिन संकलित न करना उन रचनाकारों के लिये अन्याय होगा जो सीखने की प्रक्रिया को गम्भीरता से ले रहे हैं । लेकिन कुछ न कुछ किया जाना भी ज़रूरी है । मै आप के तीसरे नम्बर के विचार से सहमत हूँ , ३. क्या जिन ग़ज़लों में एक-चौथाई मिसरे दोषपूर्ण पाये जाएँ तो उन्हें संकलन में स्थान ही न दिया जाए , या उन अश आर को हटाने के बाद अगर ग़ज़ल कह सकने के लायक शे र बाक़ी हैं तो संकलन मे स्थान दिया जाय ( कम से कम 5 शे र ) अन्यथा संकलन मे स्थान नही दिया जाये । ये एक बीच का रास्ता हो सकता है, ऐसी मेरी राय है ।
आदरणीय प्रभाकर सर राणा सर की यह मेहनत वाकई प्रणाम के योग्य है जहाँ मुझ जैसे लोग अपनी रचना के लिए टाइम न होने का रोना रोते रहते हैं वहां प्रबुद्धजनों का कच्ची पक्की रचनाओं का पढना व उन्हें सही राय देना बहुत महत्वपूर्ण है
पिछले दो आयोजनों में यह कमी बहुत खली ,आदरणीय आपसे एवं आदरणीय राणा सर से सादर निवेदन है कि इस परम्परा को चलने दीजिये और हम लोगों को सीखने का मौका दीजिये
नदियों के प्रति स्वार्थी लोग सदा से बेहद लापरवाह रहे हैं. क्या उन्होंने स्वयं बहना छोड़ दिया ? फल लगे वृक्षों पर पत्थर फेंके जाते हैं. वृक्ष क्या फल देने बन्द कर देते हैं ?
वृक्ष न कबहुँ फल चखै, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरे शरीर ॥
आपकी भावनाओं को समझता हूँ, आदरणीय योगराजभाईजी, क्योंकि अपना संवाद बदस्तूर बना रहता है.
आपने एक महीने पूर्व अपनी उपरोक्त टिप्पणी के विन्दु मुझसे साझा किये थे. मैं तब भी प्रतिकार किया था और आज भी प्रतिकार कर रहा हूँ. ओबीओ मंच का विशिष्ट उद्येश्य है - ’सीखना-सिखाना’. इसी उद्येश्य के अंतर्गत यह तमाम बाधाओं के बावज़ूद आज चार वर्षों से अग्रसर है. हालाँकि, चार वर्ष का काल-खण्ड साहित्य-संस्कार के सापेक्ष न्यूनातिन्यून पल हुआ करता है. फिर भी, इन चार वर्षों में छोटी सोच के कई-कई अहमन्य-सदस्य ’शिष्यत्व’ का दिखावा करते हुए उभरे, और अपनी क्षमता भर लाभ उठा कर या तो पूरी तरह से शांत हो गये, या फिर, जैसे भी बन पड़ा, जैसे-तैसे क्रियाशील रहकर, कहीं और अपने-अपने कक्ष खोल लिए. या, उस हेतु प्रयासरत हो गये. आदरणीय, हमें भी भान है कि उनकी वही सोच है, उतनी ही सीमा है. इन चार वर्षों में हमने-आपने क्या-क्या नहीं देखा है ? वे कहाँ हैं आज ? फिर भी, यह मंच एक प्रारम्भ से ईर्ष्यालुओं की गिद्धदृष्टि में है. ये आप भी जानते हैं ऐसा क्यों है ! किन्तु, हमारी सर्वसमाही धारा निरंतर प्रवहमान रही है ! इसका मूल कारण है हमारे सदस्यों के बीच तमाम विन्दुओं के निर्पेक्ष ’वैचारिक एका’. हम सबों के लिए मंच का उद्येश्य सर्वोपरि है. अपने बीच, आदरणीय, ज्ञान का थोथा प्रदर्शन नहीं, आधिकारिक नम्रता और वैचारिक पारिवार का संबल है. जिन्हें यह समझ में नहीं आता यह उनकी सांस्कारिक दिक्कत है.
हमने इन चार वर्षों में क्या-क्या नहीं भोगा है ? आपको ही नहीं, आदरणीय, हम जैसे छोटे किन्तु अति संलग्न सदस्यों को भी इस ’सीखने-सिखाने’ की पद्धति को अपनाने और उसपर पालन करने के कारण ’मठाधीश’ तक घोषित करने का निर्घिन प्रयास हुआ है. क्यों ? जबकि यह मंच इस तरह के किसी आचरण का मुखर विरोधी रहा है ! क्योंकि, हम सात्विकता की सक्षम ओज पर ’गलत को गलत कहने’ की ताकत रखते हैं. इस मंच पर रचनाकार नहीं रचनाएँ सम्मान पाती हैं. हम यदि ऐसे ही बने रहे तो इस भाव से हमें कोई बदल नहीं सकता. न कोई बदल पायेगा.
मैं ये बातें क्यों कह रहा हूँ, आदरणीय ? क्योंकि, आज संकलन जैसे अति कष्टसाध्य प्रक्रिया के प्रति सदस्यों में निर्लिप्तता व्याप रही है. अपने बीच ’येस मोगैम्बो’ का हास्यास्पद किन्तु निरंकुश उद्घोष नहीं बनता ! जैसा कि ब्लॉगों की दुनिया में हुआ करता है. लेकिन असंप्रेषणीय होना भी उचित नहीं. तथाकथित कुछ शुभचिंतक इसे ’अनावश्यक की कवायद’ का नाम देने लगे हैं. ’इस तरह से सीखने-सिखाने से क्या होने वाला है?’ जैसी नकारात्मक भावनाओं को खूब हवा दी जारही है आजकल. क्या हमें नया-नया जानकार होना है, आदरणीय ? कान आपके भी बन्द नहीं हैं न !
मंच का माहौल जो एक समय उत्साह-ऊर्जा से सराबोर हुआ करता था, आज डॉ. आशुतोष जैसे आत्मीय सदस्य को मुँह खोल कर कहना पड़ रहा है, कि वो दिन फिर से कब आयेगा, जब मंच के सभी वरिष्ठ सदस्य दायित्वबोध से भरे हुए सतत क्रियाशील होंगे ? डॉ. आशुतोष की सीखने की आवृति और उनके इस आत्मीय प्रश्न को एक साथ न रखा जाय.
अपनी व्यक्तिगत व्यस्तता से आप-हम भी गुजर रहे हैं. यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है. किन्तु, क्या इससे पार नहीं पाया जा सकता ? अवश्य, यदि हम संप्रेष्य बने रहें.
देखिये आदरणीय, आयोजनों की रचनाओं के संकलन की प्रासंगिकता पर जो बातें हमने आपको एक महीने पहले कही थीं, आज मंच पर हम घोषित रूप से कह रहे हैं. ऐसा करना आपकी टिप्पणी के सापेक्ष उचित लगा है. सदस्यों की जागरुकता बननी आवश्यक है.
हमने अभी जो कहा है, इसके ’क्या’ से अधिक इसके ’क्यों’ पर विचार किया जाय. इस पर सभी गहनता से मनन करें, तो मेरे कहे का निहितार्थ क्रिस्टल-क्लीयर महसूस होगा.
बाकी रहे आपके विन्दु.. उस पर चर्चा प्रारम्भ रहे. मगर, यह भी सच है कि यह परम्परा अनायास ही प्रारम्भ हुई थी. किन्तु, यह आजके तीनों आयोजनों का अन्योन्याश्रय भाग है अब.
सादर
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