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आदरणीय सचिन जी, कथानक में कुछ नयापन नहीं है अौर शिल्प के लिहाज से भी इसमें सुधार की काफी गुंजायश है । आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की बातों का संज्ञान लें । सादर
प्रदत्त विषय पर बढ़िया रचना , बस लघुकथा की परिधि से बाहर है | बधाई इस प्रयास पर आदरणीय..
कहानी एक सकारात्मक सन्देश छोड़ने में निःसंदेह कामयाब है शिल्प के विषय में आ० योगराज जी कह चुके फिलहाल मेरी और से बधाई लीजिये सचिन देव जी .
कथा बहुत अच्छी है आ० सचिन देव जी ,पर मैं चंद्रेश जी से भी सहमत हूँ
वर्ग व्यवस्था
मम्मी! पापा! आपको पता है, अपने ड्राइवर का बेटा बहुत जोरदार शॉट लगाता है, बॉल सीधे बाउंड्री पार.
“बेटा! कितनी बार तुम्हें मना किया है कि उस ओर के क्वार्टर के बच्चों के साथ मत खेला करो. वे चपरासियों, ड्राइवरों के बच्चे हैं. हमारी ऑफिसर्स कॉलोनी के बच्चों के साथ क्यों नहीं खेलते तुम?”
“मेघा! ये क्या कह रही हैं आप? आप तो जात-पांत, भेदभाव नहीं मानती हैं ना.”
“मैं जात-पांत कभी भी नहीं मानती हूँ नीरज!” आधुनिक सोच की मेघा ने तत्काल विरोध किया.
“पर मेघा! यह भी इंसानों के बीच भेदभाव ही तो है”
“लेकिन उन बच्चों के साथ ये बुरी बातें ही सीखेगा इसलिए”
“वे गरीब हैं इसलिए बुरे हैं?” कल जात-पांत के पत्थरों की बुनियाद पर हमारा विघटित समाज खड़ा था. बच्चों में ऐसा बीज बो के आज हम वर्गों के कॉन्क्रीट कॉलम बना रहे हैं.”
मनु ने वर्ण व्यवस्था की थी, समाज को उन्नत रूप से चलाने के लिये, धीरे धीरे समाज ने उसको इतना विकृत कर दिया कि वर्णों में उच्च और नीच का भाव आ गया| वर्ग व्यवस्था हमारे दिलों ने बना ली है लेकिन विकार अभी गये नहीं| गरीब के बच्चे भी ऊंचाई छू सकते हैं, यह जानते-बूझते भी हम कई बार ऐसा व्यवहार कर जाते हैं जो सही नहीं, जबकि अच्छे बुरे को परख कर ही मित्रता करनी चाहिये, चाहे वो अमीर हो चाहे गरीब| बधाई आपको आदरणीय श्रद्धा जी इस रचना के लिये|
वर्ण व्यवस्था का सृजन कर्मो पर आधारित था परन्तु हम मनुष्यों ने अपने अनुसार उसकी सरंचना ही बदल दी | कही धर्म, कहीं जाति और बहुधा आर्थिक स्थिति भी .. नित नये कालम बनते ही जा रहे है .. एक सार्थक पहल का इन्तजार आज तक कायम है | सार्थक संदेश देती हुई रचना हेतु बधाई आदरणीया श्रद्धा जी |
बहुत खूब प्रिय श्रद्धा थवाईत जी, हालांकि एब्रप्ट एंड की वजह से कुछ छूट गया लगता है फिर भी लघुकथा अपना सन्देश देने में सफल रही है। बधाई स्वीकारें।
बच्चों के मन में भी इन्हीं टोका टाकी वाली बातों व सही मार्गदर्शन के अभाव में जो भेद भाव बचपन से पनप जाता है , वही उनके व्यक्तित्व का निर्माण करता है। जो आगे चलकर समाज को भी विकृत करता है। सुन्दर संदेश देती रचना। बधाई आ. श्रध्धा जी।
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