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बहुत बढ़िया लघुकथा कही है भाई मिथिलेश जी I स्वर्ग-नर्क की परिभाषा को बखूबी बयान किया है, हार्दिक बधाई प्रेषित है I
आदरणीय योगराज सर, लघुकथा का प्रयास आपको पसंद आया, जानकार आश्वस्त हुआ हूँ, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, नमन
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, स्वर्ग-नर्क का तो पता नहीं होता है या नहीं। लेकिन सुख-सुविधाओं को स्वर्ग और दुख-तकलीफ को नर्क का जीवन समझा जाता है। अगर कोई परलोक होगा भी तो वहाँ शायद ऐसी ही व्यवस्था होगी। लघुकथा में वार्तालाप के क्रम को कहीं भी टूटने नहीं दिया जिसके कारण लघुकथा बहुत रोचक बन गई है। अमीर हो या गरीब स्त्री के प्रति हमारे समाज की सोच जस की तस ही बनी हुई है बस उसके रूप बदल जाते हैं। मुझे आपकी लघुकथा बहुत अच्छी लगी। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय विनोद जी, लघुकथा के प्रयास पर सार्थक प्रतिक्रिया पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
स्वर्ग नरक के धरातल को और अधिक स्पष्ट करने के लिए लघुकथा के उचित आकार लिया है | इस सुंदर सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई श्री मिथिलेश वामनकर जी | सादर
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज सर, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया ज्योत्स्ना कपिल जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
बाजी मारने के लिए बधाई।
एक अनपढ़ स्त्री के द्वारा उम्दा परिभाषा स्वर्ग -नर्क की। और पढ़ी लिखी स्त्री द्वारा न चाहते हुए भी परिस्थितिओं वश स्वीकार कर लेना उस परिभाषा को , स्त्री तो ज्यादातर चाहे किसी भी घर की हो एक सा नरक भोगती है। बहुत उम्दा रचना आ. मिथिलेश वामनकर जी। समस्त जीवन दर्शन ही समा गया है इस परिभाषा में। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी, कथ्य के मर्म के सापेक्ष आपकी सार्थक प्रतिक्रिया पाकर आनंदित हूँ. लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
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