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कई सारे रिसर्च गाइड ऐसे दुष्कृत्यों के लिये बहुत बदनाम हुए हैं और कई शोधार्थी भी शोध की बजाय इस तरह के पतन का रास्ता अपना कर कुछ भी लिख डालते हैं | हालाँकि अब धीरे धीरे स्थिति सुधर रही है, फिर भी समाज में बहुत जागरूकता की आवश्यकता है| बधाई आपको आदरणीय अर्चना जी, इस तरह के गुरु-शिष्य सम्बन्धों की परिभाषा में लगे कीड़ों को उजागर करने के लिये|
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, गुरू-शिष्यों के इस विषय पर बहुत बार लिखा जा चुका है। नए पैकेट में माल वही पुराना ही है। इस विषय पर इस पल से आगे भी अपनी सोचने की जरूरत है जिससे नई लघुकथा निकलकर बाहर आ सकें।
आदरणीय अर्चना जी हार्दिक बधाई,आपकी लघुकथा ने आजकल के तोता चश्म गुरुओं की सडी हुई मानसिकता की अच्छी तरह से धज्जियां उडा दी!मज़ा आ गया!पुनः बधाई!
दुषित मनोवृत्ति पर ये बेहद ही करारी चोट हुई है अर्चना जी । बहुत खूब लघुकथा का निर्माण हुआ है । बधाई स्वीकार करें ।
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