आदरणीय साथिओ,
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मानव मस्तिष्क में ही दो तरह के दस्ते होते हैं जो परिस्थतियों में अपना अपना मत रखते हैं एक हाँ कहता हैं तो दूसरा ना इस द्वंद से जो सार्थक निर्णय निकल कर आता है़ वही जीवन का सही गणित है़
ये लघु कथा मस्तिष्क के उसी द्वंद की उपज है़ जिसका अंत एक सार्थक सोच को जन्म देता है़ .बधाई आद.महेंद्र कुमार जी
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
जिन्दगी के उतारचढ़ाव को व्यक्त करती सुन्दर और प्रतीकात्मक रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी। हार्दिक आभार। सादर।
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी आपकी लघुकथा पाठक को आखिर तक बांधे रखती है ।जिंदगी की कश्मकश दिखाती एक अच्छी रचना ।बधाई स्वीकार करें ।
हौसलाफजाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया रचना जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
जनाब महेंद्र कुमार साहिब, जीवन के कश मकश पर सुन्दर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ जी. हार्दिक आभार. सादर.
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय महेन्द्र सरजी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबिता जी। हार्दिक आभार। सादर।
शुरुआती कुछ पंक्तियाँ दो बार कॉपी पेस्ट हो गई हैं।कल कुछ भी होता रहा हो लेकिन आज उसका असर बेशक पड़ता हो परन्तु उसे आज कोई स्वीकारना नही चाहता और यह दस्तुर पीढ़ी दर पीढ़ी अनवरत चलता रहेगा।बढिया कथा ,हार्दिक बधाई आपको आ .मोहन बेगोवाल जी
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