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"हैं" (बहुवचन) के साथ "इमारत" (एकवचन) लगाने से तो बात बिगड़ जाएगी आदरणीय तसदीक़ अहमद खान साहिब.
मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,आपने सही फरमाया ,मिसरा यूँ करना पड़ेगा ।"बन रही हैं कोठियाँ भी खेत औ खलिहान में "
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और नेक सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,
किसानों की बेबसी-लाचारी और फस्ल के सही दाम न मिलने और तमाम विवशाताओं को रेखांकित करती बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आ. भाई आरिफ जी, गजल को इतना मान देने के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण जी, सामयिक स्थितियों का सुंदर चित्रण हुआ है गजल में। चिंतन भी है, पीड़ा भी है। वाह!!!!
आ. भाई अरूण जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया ग़ज़ल हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । आपकी स्नेहमय प्रतिक्रिया लेखन को सम्बल मिला । हार्दिक आभार । मार्गदर्शन करते रहिए ।
आख़री शैर में 'नियामत'कोई शब्द नहीं,सही शब्द है "नेमत" देखियेगा ।
आ. भाई समर जी, नियामत अरबी भाषा का शब्द है जिसकी शाब्दिक अर्थ नेमथ से ही है । कई जगह पढ़ा भी । कुछ शब्द कोषों में भी देखा था ,इसलिए प्रयोग किया । शेष मार्गदर्शन करें ।
भाई लक्ष्मण धामी जी मैं जब भी कोई बात कहता हूँ पूरे वसूक़ से कहता हूँ,अरबी भाषा में "नियामत" कोई शब्द ही नहीं है,"नेमत" शब्द है जो अरबी भाषा का है,और इसके अर्थ हैं, माल-ओ-दौलत,सर्वत,बख़्शिश,अतिय्या,लज़ीज़ चीज़,और इसका बहुवचन है 'निअम',नि'अमात" ,और इसका उर्दू में बहुवचन है 'नेमतों',नेमतें ।
आपने पता नहीं किस शब्दकोष में ये शब्द देख लिया, और रही पढ़ने की बात तो कई लोग इसे 'नियामत' लिखते हैं,उनके लिखने से ग़लत शब्द सही नहीं होजायेगा,हमारे ओबीओ पर भी इसे 'नियामत' ही लिख देते हैं,क्योंकि उन्हें सही शब्द की जानकारी नहीं होती, और उन्हें ओबीओ का ये सेवक जब बता देता है तो वो मान लेते हैं,उम्मीद है आप समझ गए होंगे?
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