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जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समर जी नमस्ते!बहुत बहुत आभारी हूँ।
गीत
गाँव के बधार बीच बाँस की मचान है ।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।
रोपनी के गीत सुन देव भी लुभाए ।
हरी हरी धरती पे काली घटा छाए ।
स्वर्ग से सुरूप गाँव का सिवान है ।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।
झुक गया धान उस पे लद गई बाली ।
धनवा के झुरमुठ से झाँकती है लाली ।
चंदन सा गम गम महकत बिहान है ।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।
चुने चले महुआ गोरी मेहंदी रचाई के ।
तितली के झुंड उमड़े सरसो पे आई के।
होरहा के आगे फीका छप्पन पकवान है।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।
लोरिकायन-बिरहा जब गूँजे खलिहान में ।
फिर भला लोग रुके काहें को मकान में ।
होली का धमाल कहीं चइता की तान है ।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।
( मौलिक एवम अप्रकाशित )
आदरणीय सतीश मापतपुरी जी आदाब,
क्या ख़ूब चित्रण किया है आपने । बहुत ही उम्दा गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मोहतरम जनाब आरिफ साहिब , आपकी सराहना से उत्साहित हूँ .....नमन ।
आ. भाई सतीश जी, पर्दत्त विषय पर सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
ह्र्दयतल से आभार आदरणीय धामी साहेब .... नमन ।
जनाब सतीश साहिब ,प्रदत्त विषय पर गाँव की भाषा से सजा सुन्दर गीत हुआ है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं।
आदरणीय तस्दीक साहेब , आदाब , आपकी स्नेहिल टिप्पणी से संबल मिला है ।
आदरणीय सतीश जी मंत्रमुग्ध करने वाली रचना को पढ़कर मन झूम उठा बहुत बहुत बधाई
हौसला अफजाई के लिए आभारी हूँ आदरणीय छोटेलाल जी .... सादर नमन ।
//झुक गया धान उस पे लद गई बाली ।
धनवा के झुरमुठ से झाँकती है लाली ।
चंदन सा गम गम महकत बिहान है ।
झूमता खेत जहाँ गाता खलिहान है ।//
वाह वाह! बहुत ही प्यारा गीत कहा है आ० सतीश मापतपुरी भाई जी. पढ़कर एक ताजगी का अनुभव हुआ. इस सुंदर और सरस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई प्रस्तुत है.
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