आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदाब। आदरणीय तेजवीर सिंह जी और आ. अजय गुप्ता जी ने सब कुछ कह दिया है। सबसे अलग बहुत बढ़िया विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय ओमप्रकाश सरजी।
अधिकार
वैसे तो बंटवारे के बाद से ही दादी ने घर बार संभाल लिया था जिससे हौंसला और भी बढ़ गया था l यूँ तो दादे के होते ही दादी अपनी खूब चलाती थी l वहअपनी बात मनाने व् हक लेने के लिए किसी से भी भिड़ जाती थी l
नए नए इस गांव में आए थे, जब पहली बार मेरी माँ पानी भरने के लिए गई, तो गाँव के रिवाज़ अनुसार ऊँचे घर वाले पानी नींवे घर वालों के बर्तनों में भरते थे, उनको सीधे पानी भरने का अधिकार नहीं था l मगर दादी डट गई, उसने गाँव वालों से कहा था, "मेरी बहु पानी खुद भरेगी, वह नीचे बर्तन नहीं रखेगी तांकि कोई और इस में पानी डाले l"
ऐसा करके उस दिन दादी ने सांझे जगह से खुद पानी भरने का हक प्राप्त क्र लिया l
मगर आज जब सुबह जब मम्मी ने अपनी बात रखी कि वह बाज़ार जा कर कुछ अपने लिए खरीदना चाहती है, तो दादी के तेवर एक दम बदल गए l
" देख यहाँ जो भी चाहिए, अमर को या मुझे बता दो, हम आप को जो चाहिए ला देंगे l
मगर उस दिन तो बात कुछ और ही रूप धारण कर गई, जब मम्मी ने दादी से कहा, " झाई जी, इन को क्या पता मुझे क्या चाहिए? मेरी चीजों का मुझे ही पता होगाl कि मुझे क्या चाहिए l
ये सब आप के माँ-बाप के घर चलता होगा, मगर यहाँ नहीं चलेगा, यहाँ तो चीज़ें बाज़ार से हम ही ला कर देंगे, जो आप को चाहिए, अगर ऐसा नहीं करना तो अपने माँ-बाप के घर जा सकती हो l ये सुन कर मैं भी अचंभित रह गया l
मैं सोचने लगा जो लोग अधिकार प्राप्त कर तो लेते हैं, वह वही अधिकार दूसरों को क्यूँ नहीं देना चाहते!
"मौलिक व अप्रकाशित"
वास्तव में समाज वास्तव में समाज का सोचनीय पहलू है जिसे आपने बखूबी उभारा है बहुत-बहुत बधाई मोहन बेगोवाल जी
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , दूसरों के अधिकार के प्रश्न पर हम अक्सर कुंठित हो जाते हैं , विषय को सार्थक करती रचना के लिए बधाई ! सादर।
अच्छा प्रश्न उठाती रचना विषय पर, आखिरी पंक्ति अनावश्यक है. बहरहाल बधाई इस सुंदर रचना के लिए आ मोहन बेगोवाल जी.
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। विषयांतर्गत बेहतरीन लघुकथा। अधिकतर परिवारों में यह एक ज्वलंत समस्या है।
आदरणीय तेजवीर जी, शुक्रिया
आदरणीय विनय जी, बहुत शुक्रिया
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय मोहन सरजी।
आदाब। अतीत, वर्तमान और संभावित भविष्य के पलों को समेटती विषयांतर्गत बहुत बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई जनाब मोहन बेगोवाल साहिब। पंक्ति // ये सुन कर मैं भी अचंभित रह गया l// के शुरू में शब्द 'आज' जोड़कर यदि यह कहा जाये, तो? : //आज यह सुन कर मैं भी अचंभित रह गया!// या अंंतिम पंक्तियों के भाव समेट कर यह कहा जाये : //आज यह सुन कर मैं अचंभित हो कर अधिकार पाने और देने की कथनी और करनी की पारम्परिक विसंगति से शर्मसार हो गया!// (ऐसा कुछ?)
“क्यों कहाँ है तुम्हारा लाड़ला बेटा ?घर नहीं आया ,दुकान से तो कब का निकल गया । “मनोहर ने घर आकर पत्नी सुषमा से पूछा ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |