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हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी.रचना पटल पर समय देकर अनुमोदन और प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु।
बढ़िया कथा के लिए हार्दिक बधाई आ. शेख शहजाद उस्मानी जी
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा अर्चना त्रिपाठी साहिबा।
प्रदत्त विषय पर उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई, सरजी।
हार्दिक धन्यवाद मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा।
तिरंगा - लघुकथा -
लॉक डाउन के चलते कोलोनी के कुछ बच्चे खेलने कूदने के लिये सोम्या जी की छत पर एकत्र हो जाते थे। बच्चे आपस में मिली हुई छतों के जरिये उनकी छत पर आ जाते थे।वहीं तरह तरह के खेल खेलते थे। सोम्या जी भी घर में अकेली थी।अधेड़ अवस्था में सुनसान घर काटने को दौड़ता था। अब दिन भर घर में रौनक रहती थी। सोम्या जी भी छत पर ही बैठी कुछ ना कुछ करती रहतीं।
आज कुल तीन ही बच्चे आये थे।वे तीनों खेल कूद में मशगूल थे। तभी एक तिरंगा एक सरकारी भवन की इमारत की छत से किसी शरारती बंदर ने खींच कर फेंक दिया, जो उड़ता हुआ सोम्या जी की छत पर आ गिरा।तीनों बच्चों का खेल से ध्यान भंग हो गया।तीनों ही तिरंगे पर झपट पड़े।
"पहले मैंने देखा।"
"पहले मैंने पकड़ा।"
"मैं पहले भागा |"
इन आवाजों के साथ तीनों बच्चे तिरंगे की छीना झपटी करने लगे।सोम्या जी वास्तविकता को समझ कर कुछ हस्तक्षेप कर पातीं तब तक खींचातानी में तिरंगे के तीन हिस्से हो गये।चूंकि तिरंगा तीन रंगों की पट्टियों से जोड़ कर बनाया था। अतः वही तीनों पट्टियाँ, सिलाई उधड़ने से अलग हो गयीं।अब हर बच्चे के हाथ में एक एक रंग की पट्टी थी।तीनों बच्चे मिलकर इस घटना क्रम पर ठहाके लगा रहे थे। जैसे कोई बड़ा मैदान मार लिया हो।
सौम्या जी उनकी इस हरकत से थोड़ी चिंतित हुईं।उन्हें लगा कि इन बच्चों को तिरंगे की क्या हैसियत और अहमियत है, शायद किसी ने इन्हें नहीं समझाई।
"लाओ बच्चो ये टुकड़े मुझे दे दो।मैं इन्हें सिलाई करके फिर तिरंगा बना देती हूँ।"
"नहीं माँ जी, हमको तो ऐसे ही अच्छा लग रहा है। इसको अपने अपने घर पर लहरायेंगे।"
"नहीं बच्चो, यह तिरंगे की शान के विरुद्ध है। इसके तीन रंग मिलकर ही हमारे देश की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक अखंडता के प्रतीक हैं। यह तिरंगा हमारी मातृभूमि के भाल का सौंदर्य है|"
इधर सोम्या जी छत पर उन बच्चों को तिरंगे के तीन रंगों की एकात्मकता का महत्व समझा रहीं थीं।
उधर नीचे सड़क पर मुफ्त राशन बांटने वाले सरकारी कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता अलग अलग जाति और धर्म के अनुसार लोगों की लाइनें लगवा रहे थे।
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत ही बढ़िया उम्दा कथानक लेकर देशभक्ति का प्रेरक कथ्य सम्प्रेषित किया है आपने। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब। हमारी सोसाइटी में भी लॉकडाउन में केम्पस पार्क में बच्चे यूँ खेलते रहे हैं। अंत में //सरकारी कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता// वाली बढ़िया कटाक्ष वाली बात न जोड़ें, तो यह "बालमन" की बेहतरीन लघुकथा हो जायेगी। अथवा उसे बीच में कहीं रखा जा सकता है मेरे विचार से। शीर्षक से पहले से ही रचना का आइडिया सा समझ आ जाता है। दूसरा कोई उम्दा शीर्षक भी दिया जा सकता है। //सोम्या//..के स्थान पर सही शब्द //सौम्या// कर लीजियेगा।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
हालात पर पैनी दृष्टि जमाती और करार वार करती इस संदेशपरक लघुकथा हेतु आपको बहुत बहुत बधाइयां आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
देशभक्ति की भावना जाग्रत करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।
आदरणीय TEJ VEER SINGH साहिब, इस बेहतरीन लघुकथा पर दाद और बधाई स्वीकार करें!
अपना देश
***
प्रवासी मजदूर वापस आने लगे। प्रकृति जनित आपदा मूल में कही गई।कुछेक लोग इसे मानव निर्मित भी कहते।सर्वत्र अफरातफरी व्याप्त रही। जांच - इलाज के दौर चलते रहे। 'गांव घर में ही रहेंगे।खेती किसानी या कुछ रोजी रोजगार कर घर परिवार के पेट पालेंगे ', वापस लौटे लोग ऐसी घोषणायें करते।
'ये करेंगे, वो करेंगे,रोजगार देंगे ',ऐसा सरकारें भी दावा ठोकतीं। कुछ सूबों में कुछ रोजगारों का ऐलान हुआ भी।
लगता जैसे मजदूर अब संगठित हो जाएंगे। उद्यम से अपनी रोजी कमाएंगे।पर चंद दिनों के बाद ही जत्थों में घर वापस आए मजदूर छिटफुट तौर पर वापस जाने लगे।बबली महंगू मास्टर से पूछने लगी,
' मास्साब, ये लोग तो फिर बाहर जाने लगे।'
' हां री!लगा था अब ठहर जाएंगे।'
' आप तो कहते थे कि अब गांव रजगज हो जाएंगे।उद्योग धंधे शुरू होंगे।गैर मजूरवा जमीनें दबंगों के कब्जे से छूट जाएंगी। सरकारी जमीन होगी,सरकारी उद्योग और ग्रामीण मजदूर होंगे। मेहनत खूब फलेगी फूलेगी।' बबली एक ही सांस में सबकुछ कह गई।
' जरूर कहा था,पर इन बहरवासुओं के मन की कौन जाने? मैं भी कैसे जनता? कहते थे, अपना गांव,अपना देश सबसे प्यारा है।अपनी माटी से सोना उपजाएंगे। बाहर जाकर धक्का क्यूं खाएं?'
' जी मास्साब!और अब बाहर जाने से मिली इज्जत इन्हें पसंद आने लगी।कल कल्लू काकी अपने बेटवा से बाहर जाने को कह रही थी।उसका तर्क था कि यहां न रोजी होगी,न रोजगार होगा।सरकार ऐसे ही ऐलान करती रही है,करती रहेगी।'
' हाहाहा!जैसे लोग,वैसी ही न सरकार होगी।वोट के समय लोग सब भूल जाते हैं।बस मुट्ठी गर्म हो जाए,तो अच्छा।'
' मतलब?'
' यानी पैसे लेकर वोट देंगे,तो और क्या होगा?
' वोट और पैसा?ऐसा लोकतंत्र?? हे भगवान!मैंने तो ऐसा सुना ही नहीं था।'
' आ रहा है वोट का सीजन।सब पता चल जाएगा बिटिया रानी!' मास्टर जी बोले।
' कलंक है यह बिकना।' बबली ने माथा पीट लिया।
" मौलिक व अप्राकाशित"
......
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