For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-65 (विषय: "उम्मीद का दामन")

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-65
विषय: "उम्मीद का दामन"
अवधि : 30-08-2020 से 31-08-2020
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 4759

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत खूबसूरत और प्रेरणादायक रचना प्रदत्त विषय पर, उम्मीद कभी भी नहीं हारनी चाहिए. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया लघुकथा के लिए

बहुत-बहुत आभार, सरजी! 

आदरणीया बबिता जी , उम्मीद के आदमी की अंदर की शकित को जगाना अति जरूरी है , जिस से उम्मीद बनी रहती है , इस लिए साथ के उन लोगों को खुद ही कोशिश करनी होगी , अपने लिए . बहुत सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो 

लघुकथा बहुत ही अच्छी हुई है बबिता गुप्ता जी, बधाई प्रेषित है. टंकण की त्रुटियाँ बदमजगी पैदा कर रही थीं, पोस्ट करने से पूर्व एक-दो दफा चेक कर लिया करें.

मिज़ाजपुरसी (लघुकथा) :
"कुछ तो बोलो नेताजी! कभी बहुत ख़ुश नज़र आते हो; कभी बहुत परेशाँ!" तरक़्क़ी के समुद्र-तट पर रखी खाली कुर्सी ने बगल वाली कुर्सी पर बैठे दिग्गज नेताजी से पूछ ही लिया। 
"तुम ख़ुश, तो मैं ख़ुश! तुम परेशान, हैरान; तो मैं भी!" नेताजी प्रत्युत्तर में बोले और फ़िर से सुनहरे सपनों की नैया में सवार होकर रंगीन दुनिया तक पहुँचने की जुगत करने लगे। 
"तुमने हमेशा मेरा ख़्याल रखा है। मुझ पर कब  किसे बिठाना है और कब उठाना है... कब किसे दोस्त बनाना है और कब किसे दुश्मन या देशद्रोही! अब मुझ पर किसे बिठालोगे... किसी विकसित देश वाले दोस्त को, या अपने देश में क़हर ढाती  महामारियों का इलाज़, वैक्सीन देने वाले दोस्त को या....?" उस खाली कुर्सी ने डगमगाते हुए यूँ कहा कि नेताजी भी हिल उठे। 
"हे, हे हे! तुम भी मेरी तरह तज़र्बेकार होती जा रही हो! तुम्हारा ये नॉटीपन भी मुझे भाता है!" लम्बी सी साँस लेते हुए और लयबद्ध छोड़ते हुऐ नेताजी ने अपना वाक्य पूरा कहा।
"ये मेरी बात का जवाब नहीं! जनता परेशान और हैरान है! देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुझ पर अब किसे बिठाओगे; जनता जानना चाहती है और मैं भी! हम सबको आप पर सचमुच बड़ा विश्वास है; बड़ी-बड़ी आस लगाये बैठे हैं हम सब!" उस कुर्सी ने नेताजी के ही लहज़े में उनसे कहा।
"मैं भी तो किसी पर विश्वास कर रहा हूँ और करना होगा विकास के लिए बड़ी आस लिए हुए!" नेताजी ने फ़िर लम्बी साँस लेकर और लयबद्ध छोड़ते हुए कहा, "लेकिन अभी तुम धीरज धरो और मुझे डिस्टर्ब मत करो! तुम्हें मालूम होना चाहिए कि इन आपदाओं के काल में अवसर पकड़ते हुए सुधरे हुए पर्यावरण में मैं प्रकृति का आनंद ले रहा हूँ।" यह कहते हुए नेताजी ने अपनी मित्र-तुल्य खाली कुर्सी को यूँ सहलाया जैसे कि किसी पालतू प्रिय ख़ूबसूरत पक्षी को स्नेहपूर्वक  सहला या बहला रहे हों।
"प्रकृति का आनंद ले रहे हो या कुछ बड़े देशों के शासकों के इतिहास और उनकी संस्कृति-संस्कारों में ख़ुद को रँग कर देश की जनता को रँगने का!" उस कुर्सी की यह बात सुनकर पहले तो नेताजी की त्योरियाँ चढ़ गईं, लेकिन फ़िर ख़ुद को सँभालते हुए तरक़्क़ी के समुद्र पर उठती-गिरती लहरों को निहारते हुए वे उस खाली कुर्सी को अपने नज़दीक़ सटाते हुए बोले, "दरअसल मैं उम्मीदों का आनंद ले रहा हूँ और तुम्हें ... और देश भर को भी रहा हूँ; हे हे हे!"
(मौलिक व अप्रकाशित)

उम्मीदें जीवन का पर्याय हैं,यह सर्वविदित है।कुर्सी की अपनी उम्मीदें है कि कोई काबिल व्यक्ति उसपर आसीन हो,जो उसकी मर्यादा को बरकरार भी रखे,और उससे (कुर्सी से) जुड़ी जवाबदेही का निर्वहन भी करे।उसपर बैठने वाले आदमी की मज़बूरी है कि वह उसपर बरकरार रहने की जुगत भी भिड़ाता रहे,कुछ करता भी रहे जो उसके कर्तव्यों का बोध सूचक हो। फिर कुर्सी पर किसीको कोई बिठा ता है।तो बिठानेवाले को आंखों में बिठाना कुर्सी पर बैठनेवाले की जरूरत में शुमार हो जाता है,जिसे वह चाहकर भी भुला नहीं सकता।इन्हीं बैठने,बिठाने,बैठे रहने की क्रियाओं के बीच उम्मीद भी जिंदा रहती है। प्रतीकात्मकता  के धागों में पिरोई  संदेशपरक लघुकथा हेतु बधाई भाई उस्मानी जी।

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। आपकी चिर परिचित लेखन शैली में एक और बेहतरीन लघुकथा ।आजकल मेरा इंटरनेट और लैपटॉप दोनों ही तंग कर रहे हैं।

आदाब। सभी के साथ एक सी समस्याएं हैं। फ़िर भी आप रचना पर व गोष्ठी में इतना समय दे पा रहे हैं, यह हमारा सौभाग्य है। बहुत बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब।

सादर नमस्कार। मेरी प्रविष्टि पर भी इतना समय देकर अपने विचार विस्तार से साझा करते हुए मुझे यूँ प्रोत्साहित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद जनाब मनन कुमार सिंह। ऑनलाइन क्लास तथा पारिवारिक व्यस्तता के कारण यहाँ समय नहीं दे सका दोपहर तक।

आदरणीय उस्मानी जी

व्यवस्था और विशेषकर वर्तमान शासन पर तंज करती आपकी चिरपरिचित शैली में एक और रचना। चुस्त संवाद लघुकथा को पठनीय और जीवंत बना रहे हैं। हार्दिक बधाई। पर अंत की पंक्ति में उम्मीदों की बात विषय को देखकर जोड़ी गई लगती है ।

आदाब। मंच पर व गोष्ठी में सार्थक सक्रियता के साथ मेरी इस रचना पर भी इतना समय देकर अपनी राय साझा करने और अंतिम पंक्ति पर ध्यान आकृष्ट कराने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा। सही कहा आपने। अंतिम पंक्ति से ऐसा आभास पाठक को यहाँ हो सकता है। अन्यत्र नहीं, मेरे विचार से।

इशारों इशारों में और वर्तमान राजनीति पर बढ़िया तंज करती बढ़िया रचना लिखी है आपने आ शेख शहजाद उस्मानी साहब. बस जनता को उम्मीद का दामन दिखलाकर अपना उल्लू सीधा करना ही राजनीति का ध्येय रह गया है. बहुत बहुत बधाई इस विचारोत्तेजक रचना के लिए

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
4 minutes ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
12 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service