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बढ़िया कथा | कथनी -करनी में अंतर अक्सर होता हैं ..बधाई इस कथा के लिय |
बच्चे मन के सच्चे... वो क्या जाने हाथी के दांत खाने के और ,और दिखाने के और होते हैं..
लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है भाई धीरज झा जी I अभिनन्दन स्वीकारें I
आदरणीय धीरज जी, बहुत सटीक कटाक्ष करती हुई लघुकथा लिखी है!हार्दिक बधाई!
आदरणीय धीरज जी , कल रात १२ बजे गोष्ठी खत्म होने पर तुरंत ही एक संकलन पोस्ट जारी होता है यहां OBO मंच पर। उस पोस्ट पर आप SIR JI को निवेदन स्वरुप "संशोधित कथा" रिप्लाई कीजियेगा। सर जी , आपकी संशोधित रचना को संकलन में स्थान देंगे। सादर
आदरणीय धीरज जी कथनी करनी पर बढ़िया प्रत्युत्तर वाली इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका
भाई धीरज झाजी, आपका मंच पर स्वागत है. आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ. हार्दिक शुभकामनाएँ
अन्य रचनाकारों की रचनाएँ भी देख जाएँ और उन रचनाओं पर आयी टिप्पणियाँ भी पढ़ते रहें.
शुभेच्छाएँ’
लघु कथा के लिए सामाजिक सरोकार से सम्बन्धित विषय "दहेज़ प्रथा" अच्छा विषय चुना है |
"बेटा शादी के समय लड़के वाले लड़की वालों से जो पैसे और सामान लेते हैं उसे दहेज कहा जाता है" इसमें लेते है की जगह "मांगते है" करना अधिक सटीक रहेगा | संदेशप्रद लघु कथा के लिए बधाई
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