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आदरणीया डॉ० नीरज शर्मा जी, आपने लघुकथा के इस प्रयास के मर्म को जाना, आपकी सकारात्मक टिप्पणी हेतु हृदय से आभारी हूँ|
आदरणीय मधूसूधन जी कथा एक सपाट सा कथन मात्र बन कर रह गई है। कथा अभ्ाी और समय व परिश्रम की मांग कर रही है। सादर
आदरणीय मधुसुदन जी आप के उक्त कथानक में एक सुन्दर लघुकथा छुपी हुई है मगर समय के अभाव में वह उभर कर बाहर नहीं आ पाई .
बात नहीं बनी भाई मधुसूदन दीक्षित जी, रचना पर अभी बहुत मेहनत करने की गुंजाइश बाकी है I
सभी साथियों ने रचना बारे ठीक ही कहा हे
मेहनत रंग अवश्य लायेंगी ...हमारी तरह आप भी चल रहें हैं अभी इस डगर पर | गुरुओं का हाथ पकड़ना जरुरी हैं राह पर दौड़ने के लिय |
अच्छा कहने का प्रयास किया आपने ..बधाई
आदरणीय मधुसुदन जी इस सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई
सुधिजनों की बात पर गौर फरमाएं आ. मधुसूदन जी
चुनाव
(प्रत्युत्तर विषय पर आधारित)
अभी अभी नयी नगरपालिका घोषित किये गये इस क्षेत्र में वार्ड मेंम्बर और अध्यक्ष के चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों में प्रतिस्पर्धा ऐंसी है जैसे वे लोक सभा या विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हों। गाडि़यों पर हो हल्ला करते, जोर जोर से गाने बजाते और लाउडस्पीकर से वोट माॅंगने का प्रचार करते दिनरात जुटे हैं।
हमारे पड़ोस में रहने वाले कुरेशी जी की लगभग अस्सी वर्ष आयु की माता जी को इस शोरगुल से कष्ट पहॅुंचा तो चिल्लाने वाले प्रचारक से बोलीं, भैया धीमें बोलो हमारी तवियत ठीक नहीं है, वह बोला कोई बात नहीं हम दूर चले जाते हैं पर बोट का ध्यान रखना हमें ही देना।
थोड़ी देर में दूसरा प्रचारक आया और उनके घर के सामने खड़े होकर जोर जोर से गाने बजाता और बोट देने के लिये नारे लगाने लगा। माताजी से फिर नहीं रहा गया, वे आकर फिर से बोलीं भैया क्यों बार बार चिल्लाते हो एक बार समझाने से समझ में क्यों नहीं आता? प्रचारक बोला, अम्माजी ! आपके मुल्ला जी तो रोज ही इससे भी ज्यादा जोर से दिन में अनेक बार कभी भी चिल्लाने लगते हैं तब हम लोग तो कुछ नहीं कहते, दो तीन दिन की तो बात है हम लोग फिर पाॅंच साल बाद ही चिल्ला पायेंगे, कुछ सब्र कर लो? अम्मा जी बोलीं वे तो अल्ला का नाम लेते हैं तुम लोग तो केवल हल्ला करते हो, हमें तकलीफ होती है यहाॅं से जाओ।
वह हल्ला करते चला गया परंतु एक घंटे वाद तीसरा आया, फिॅर से वही वार्ता, कोई प्रभाव पड़ते न देख उनकी बहु ने पुलिस को फोन लगाया और
शिकायत की कि चुनाव वाले बड़ा हल्ला गुल्ला कर रहे हैं, मना करने पर लड़ने को तैयार हो जाते हैं , कुछ उपाय कीजिये यहाॅं मरीज लोग रहते हैं। पुलिस वाले का उत्तर था, मेडम चुनाव का माहौल है हम किस किस का मुंह बंद करें , दो तीन दिन की ही तो बात है हमारी सलाह है कि हल्ला होते वक्त आप लोग ही अपने कान बंद कर लें, और फोन रख दिया ।
अभी दो दिन पहले अम्मा जी को जिला अस्पताल की आईसीसीयू में भरती कराया गया है और डाक्टरों के अनुसार उन्हें दस दिन तक वहाॅं रहना पड़ेगा।
(मौलिक और अप्रकाशित)
डॉ साहब आप की लघुकथा बहुत शानदार है. मगर कसावट थोड़ी और हो जाती तो सोने में सुहागा होता
आदरणीय अोमप्रकाशजी , बहुत धन्यवाद सार्थक प्रतिक्रिया के लिए। मेरे हित में यह उचित होगा यदि आप "कसावट" शब्द की समझाइश बिस्तार से या एकाध उदहारण सहित , देने का कष्ट करें।
आभार सहित।
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