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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-70

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 70 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह शायर-ए-इन्किलाब जनाब जोश मलीहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए"

1222   1222    1222    1222

मुफाईलुन मुफाईलुन  मुफाईलुन मुफाईलुन

(बह्र: हजज़ मुसम्मन सालिम  )
रदीफ़ :- जाये
काफिया :- अर (किधर, नज़र, मर, संवर, असर आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 अप्रैल दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय गिरिराज जी बहुत खूब अशआर कहे है आपने कभी चौखट न लांघे याद रखना बात कमरे की
जो घर से बात निकली तो, न जाने फिर किधर जाये
औरअगर तय है बिखर कर बीज वृक्षों में बदलते हैं
दुआ करता हूँ मैं, मेरी वफ़ा टूटे, बिखर जाये
इन दोनों शेर में प्रभावित किया इनके लिए अलग से दाद क़ुबूल करें । सादर
बहुत सुंदर ग़ज़ल कहि है आदरणीय गिरिराज भंडारी सर।सादर नमन
कोई तन्हाई की हद से न इतना भी गुज़र जाये
कि अपनी शक़्ल देखे आइने में और डर जाये

लहर जैसे कोई साहिल से टकराये उतर जाये
मुझे छूकर तेरी यादों की ख़ुश्बू यूँ बिखर जाये

हमेशा भागता क्यों दिखता है इंसान सड़कों पर
ज़रा देखे तो औरों को वो इक पल तो ठहर जाये

ख़यालों को ज़रा पर खोलने दो खुल के उड़ने दो
नहीं दुनिया फ़क़त उतनी जहाँ तक ये नज़र जाये

वो जिस फन्दे में जकड़ा है उसे तो़ड़े नहीं तो फिर
कहो उससे किसी पत्थर से टकराये बिखर जाये

कहाँ तक कोई डूबे खुद को पाने के लिये, बोलो
‘जिसे है जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाये’

जहाँ देखो वहाँ पर भुखमरी, लाचारी, घोटाले
कहो आँखें कहाँ खोले ये बचपन अब किधर जाये

कोई मतलब से उठकर सोचता दिखता नहीं है आज
यही मतलब परस्ती गंध फैलाये जिधर जाये

-मौलिक,अप्रकाशित

आ. शिज्जु भाई , खूब सूअत गज़ल हुई है , दिली दाद कुबूल कीजिये ।

लहर जैसे कोई साहिल से टकराये उतर जाये
मुझे छूकर तेरी यादों की ख़ुश्बू यूँ बिखर जाये

ख़यालों को ज़रा पर खोलने दो खुल के उड़ने दो
नहीं दुनिया फ़क़त उतनी जहाँ तक ये नज़र जाये    --  इन दो अशार के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ , बढिया ख़याल को शेर मे बान्धा आपने ।

बहुत बहुत शुक्रिया सर

जहाँ न पहुँचे रवि....
.
ख़यालों को ज़रा पर खोलने दो खुल के उड़ने दो
नहीं दुनिया फ़क़त उतनी जहाँ तक ये नज़र जाये... क्या  बात  है ..बहुत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए  बधाई ..

बहुत बहुत शुक्रिया आ. निलेश भाई

लाजवाब मतला कहा आपने शिज्जू भाई.... इस शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद स्वीकारें !!!

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आकाश जी
जनाब शिज्जु "शकूर" जी आदाब,वाह वाह,बहुत ख़ूब, शानदार ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
बहुत बहुत शुक्रिया मुह्तरम जनाब समर कबीर सहब

आ० भाई शिज्जु "शकूर" जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. हार्दिक   बधाई l

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