परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 76 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह साक़ी फारुकी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए "
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन/फेलुन
1212 1122 1212 112
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २९ अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय समीर कबीर साहिब आदाब |
ग़रीब लोगों के तन पर तो चीथड़े भी नहीं
उधर हैं रेशमी कपड़े किलाब पहने हुए ..... समाज पर जबरजस्त व्यंग
तमाम उम्र गुज़ारी थी जिस ने काटों पर
जनाज़ा निकला है उसका गुलाब पहने हुए... जिंदगी की हकीकत बयाँ ....बहुत सुन्दर
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय | आपकी तबियत अब कैसी है आदरणीय ?
सादर
आदरणीया शुचि जी आदरणीय शिज्जु भा्ई सही कह रहे है सही थ्रेड में आपकी गजल नहीं हैै गजल के लिये आपको बधाई मकते के शेर में हमें कुछ बहर में अटकाव लग रहा है पुन: देख लेने का निवेदन है
आदरणीय समर साहब वाह वाह । हकीकत को बयान करते मतले के साथ एक बेहतरीन गजल से आपने मुशायरे में शिरकत की हैै और मकता भी उनता ही खुबसूरत मासूम सा बहुत बहुत बधाई आपको इस गजल के लिये । वाह
बेहतरीन ग़ज़ल कही है मोहतरम जनाब समर कबीर साहिबI सभी अशआर पुरनूर और पुरकशिश हुए हैं, मेरी दिली दाद हाज़िरI
सुना है उनकी कहानी का ये हुवा अंजाम
वो दोनों सो गये इक दिन चिनाब पहने हुए.....
........वाह ........वाह ........वाह ........वाह ........वाह ........वाह ........वाह ........वाह
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